nayaindia Hindenburg report धन शोधन और वित्तीय गड़बड़ी के आरोप गंभीर
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धन शोधन और वित्तीय गड़बड़ी के आरोप गंभीर

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शेयर बाजार में अपनी कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए जोड़-तोड़ करने के आरोप न अदानी समूह पर नए हैं और न ऐसा है कि यह पहली कंपनी है, जिस पर ऐसे आरोप लगे हैं। इसी तरह नियमों को ताक पर रख कर बैंकों से कर्ज लेने का मामला भी नया नहीं है। पहले भी जिन कंपनियों पर सरकार की कृपा होती थी उनको क्षमता से ज्यादा कर्ज मिलता था। लेकिन अदानी समूह के ऊपर हिंडनबर्ग रिसर्च की ओर से जो आरोप लगाए गए हैं उनमें इन दो आरोपों यानी शेयर बाजार में मैनिपुलेशन और बैंकों से बेहिसाब कर्ज लेने के आरोपों के अलावा धन शोधन और वित्तीय गड़बड़ियों का बड़ा आरोप है। ये आरोप मुख्य रूप से दो तरह के हैं। पहला तो यह कि अदानी समूह ने टैक्स हैवन समझे जाने वाले छोटे छोटे देशों में दर्जनों फर्जी कंपनियां खोलीं, जिनके जरिए पैसों का निवेश अदानी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में किया गया। ये अदानी ही की निजी कंपनियां हैं, जिनसे जरिए सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश किया। दूसरा आरोप यह है कि ऐसी ही लिफाफा कंपनियों से अदानी समूह की निजी और सूचीबद्ध कंपनियों को कर्ज दिलाया गया।

दोनों आरोपों में खास बात यह है कि निवेश करने या कर्ज देने वाली कंपनियां कोई काम नहीं करती हैं, उनके पास कर्मचारी नहीं हैं, उनमें से कई कंपनियों का पता एक ही जगह का है, उनकी वेबसाइट पर भी कुछ खास नहीं है और कई कंपनियों की वेबसाइट्स तो लगभग एक ही समय बनाई गईं। इससे यह संदेह होता है कि काले धन को सफेद करने और लिफाफा कंपनियों या समूह की निजी कंपनियों के जरिए सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों के भाव ऊंचा करने का काम हुआ है। इसका दो तरह से फायदा कंपनी को हुआ है। पहला यह कि शेयरों के भाव ऊंचे होने से कंपनी की बाजार पूंजी बहुत हो गई। दूसरे इन शेयरों को गिरवी रख कर वह आसानी से कर्ज ले सका। हिंडनबर्ग रिसर्च के मुताबिक पिछले तीन साल में अदानी समूह के शेयरों की कीमत औसतन 819 फीसदी बढ़ी है। यानी कंपनी की बाजार पूंजी आठ गुना से ज्यादा हो गई।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने ये आरोप हवा में नहीं लगाए हैं या सुनी सुनाई बातों पर नहीं लगाया है। उसने अदानी समूह में काम कर चुके लोगों से बात की है। आधिकारिक दस्तावेज हासिल कर उनका अध्ययन किया है। सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी हासिल की है और कम से कम छह देशों में जाकर उन कंपनियों का पता लगाया है, जिनके जरिए अदानी समूह में निवेश किया गया है। इस अमेरिकी रिसर्च संस्था की पूरी रिपोर्ट की बजाय कुछ चुनिंदा हिस्सों से भी गड़बड़ियों का अंदाजा हो रहा है।

मिसाल के तौर पर अदानी समूह की कंपनियों को कर्ज देने वाली कंपनियों का ब्योरा देते हुए हिंडनबर्ग रिसर्च ने लिखा है- विनोद अदानी के नियंत्रण वाली मॉरीशस की एक कंपनी ने अडानी समूह की एक निजी कंपनी को 11.71 अरब यानी 1,171 करोड़ रुपए का कर्ज दिया। आगे इस निजी कंपनी ने इसमें से 984 करोड़ रुपए अदानी इंटरप्राइजेज को कर्ज दे दिया। अडानी समूह की निजी कंपनी को कर्ज देने वाली मॉरीशस की कंपनी के कोई खास कामकाज करने का रिकॉर्ड नहीं है। इसी तरह हिंडनबर्ग ने विनोद अदानी के ही नियंत्रण वाली मॉरीशस की एक दूसरी कंपनी का जिक्र किया है, जिसका नाम इमरजिंग मार्केट इन्वेस्टमेंट डीएमसीसी है। इस कंपनी का लिंक्डइन पर कोई कर्मचारी नहीं है और ऑनलाइन मौजूदगी भी मामूली है। कंपनी ने कोई क्लायंट होने या किसी तरह के करार की भी कोई जानकारी नहीं दी है और यह संयुक्त अरब अमीरात, यूएई के एक अपार्टमेंट में स्थित है। इस कंपनी ने अदानी पावर की एक सब्सिडियरी कंपनी को एक अरब डॉलर यानी करीब आठ हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिया है।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा है- हमने मॉरीशस की 38 लिफाफा कंपनियों की पहचान की है, जिन्हें विनोद अदानी या उनके करीबी सहयोगी नियंत्रित करते हैं। हमने ऐसी कंपनियों की भी पहचान की है जो संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, साइप्रस और कैरेबियाई द्वीपों में विनोद अदानी द्वारा संचालित की जाती हैं। इसने आगे कहा है- विनोद अदानी और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित कई कंपनियां क्या काम करती हैं, इसका कोई अता पता नहीं है। इसके अलावा इन कंपनियों के पास कोई कर्मचारी होने का सबूत नहीं है। इनमें से कई कंपनियों का स्वतंत्र पता और फोन नंबर तक नहीं है। इनकी कोई सार्थक ऑनलाइन प्रेजेंस भी नहीं है। इसके बावजूद इन कंपनियों ने भारत में अदानी समूह की सूचीबद्ध या निजी कंपनियों में अरबों डॉलर का निवेश किया है या कर्ज दिया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है- भारत में सेबी ने अदानी इंटरप्राइजेज का भाव बढ़ाने और शेयर मैनिपुलेशन के मामले में पिछले कुछ सालों में 70 के करीब लोगों के खिलाफ जांच और कार्रवाई की है।

इसकी रिपोर्ट में एक ऑफशोर फंड एलारा की जानकारी दी गई है, जिसके पास अदानी समूह में करीब तीन अरब डॉलर यानी करीब 24 हजार करोड़ रुपए के शेयर हैं। इससे जुड़े एक ट्रेडर ने रिसर्च संस्था को जानकारी दी कि यह शेयर अदानी समूह ही कंट्रोल करता है। इस फंड को जान बूझकर इस तरह से स्ट्रक्चर किया गया है कि किसी को पता न चले कि इसका लाभार्थी कौन है। इस कंपनी के एक लीक ईमेल से पता चला है कि इसके सीईओ ने एक भगोड़े चार्टर्ड अकाउंटेंट धरमेश दोषी के साथ काम किया है। धरमेश दोषी बड़े शेयर घोटाले में शामिल रहे केतन पारेख के साथ काम कर चुका है और गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गया था।

एक दूसरी कंपनी है मोन्टेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स, जिसके नियंत्रण में पांच स्वतंत्र फंड है। इस कंपनी के पास अदानी समूह के साढ़े चार अरब डॉलर यानी करीब 36 हजार करोड़ रुपए के शेयर हैं। इस कंपनी मोन्टेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स के चेयरमैन और सीईओ ने तीन कंपनियों में बतौर निदेशक काम किया है, जिनसे एक भगोड़ा हीरा कारोबारी भी जुड़ा रहा है। इस भगोड़े हीरा कारोबारी के ऊपर अमेरिका में आठ हजार करोड़ रुपए की चोरी या घोटाले का आरोप है। हिंडनबर्ग रिसर्च के मुताबिक भगोड़े हीरा कारोबारी के बेटे से विनोद अदानी की बेटी की शादी हुई है। इस तरह के अनेक खुलासे और आरोप हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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