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गपशप

क्या जवाब देंगे अदानी?

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हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अदानी समूह के सामने दो रास्ते हैं। पहला तो यह है कि वह दुनिया की प्रतिष्ठित रिसर्च संस्था की ओर से लगाए गए आरोपों का बिंदुवार जवाब दें। हिंडनबर्ग ने शेयर बाजार में जोड़ तोड़ करने से लेकर, नकली तरीके से शेयरों के भाव बढ़ाने, ऑफशोर लिफाफा कंपनियों से निवेश कराने और धन शोधन सहित कई गंभीर आरोप लगाए हैं। कंपनी तथ्यों के साथ इनका जवाब दे सकती है, जो कि एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है। दुनिया के सभ्य देशों में ऐसा होता है कि किसी कंपनी पर ऐसे आरोप लगते हैं तो वह अपने दस्तावेजों के साथ जवाब देती है। हालांकि अदानी समूह ने बिंदुवार जवाब देने की बजाय मोटे तौर पर जवाब दिया है। कंपनी की ओर से एक पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया गया है, जिसमें उसने बताया है कि हिंडनबर्ग रिसर्च के 21 सवालों का जवाब अदानी पोर्टफोलियो प्रेजेंटेशन 2015 में दिया गया है। सोचें, हिंडनबर्ग ने दो साल रिसर्च करके 24 जनवरी 2023 को रिपोर्ट दी है, जिसमें सवाल उठाए गए हैं और कंपनी आठ साल पहले का डाटा पेश कर रही है!

हिंडनबर्ग रिसर्च का एक बड़ा आरोप यह है कि जो निजी ऑडिटर अदानी की शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों की ऑडिट करते हैं वे बहुत रेपुटेड या साख वाली नहीं हैं। अदानी समूह की ओर से इसके जवाब में कहा गया है कि उसकी नौ सूचीबद्ध कंपनियों में से आठ की ऑडिटिंग बिग 6 ऑडिटर्स द्वारा की गई है, जबकि एक अदानी टोटल गैस की ऑडिटिंग भी बिग 6 में से एक ऑडिटर द्वारा की गई है। कंपनी ने यह भी कहा है कि उसकी छह सूचीबद्ध कंपनियां संबंधित सेक्टर की नियामक संस्थाओं की निगरानी में हैं। हालांकि अदानी समूह के इस जवाब से हिंडनबर्ग रिसर्च संतुष्ट नहीं है। उसका कहना है कि उसके 88 सटीक सवालों का जवाब कंपनी नहीं दे रही है।

अदानी समूह के सामने दूसरा रास्ता यह है कि वह हिंडनबर्ग के साथ सीधी टक्कर करे। उसके ऊपर कंपनी की छवि बिगाड़ने, आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिए साजिश रचने आदि के आरोप लगा कर मुकदमा करे। अभी तक ऐसा लग रहा है कि अदानी समूह दूसरा रास्ता अपनाने की तैयारी में है। कंपनी की ओर से कहा गया है कि वह कानूनी कार्रवाई के लिए राय ले रही है। उसने हिंडनबर्ग के आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है और इसे आधा अधूरा व दुर्भावनापूर्ण बताया है। दूसरी ओर हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट को पूरी तरह से सही बताया है और कहा है कि वह कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार है। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट के अंत में अदानी समूह से 88 सवाल पूछे हैं। उसका कहना है कि उसने 88 स्पष्ट सवाल पूछे हैं, जिनका जवाब कंपनी को देना चाहिए। रिसर्च एजेंसी ने रिपोर्ट को आधा अधूरा बताए जाने का भी जवाब दिया है। उसने बताया कि उसकी रिपोर्ट 106 पन्नों की है, जिसमें 32 हजार शब्द हैं और 720 संदर्भ दिए गए हैं। उसने दो साल तक इस पर काम किया है इसलिए उसके काम को ‘अनरिसर्चड’ नहीं कहा जा सकता है।

सवाल है कि यदि अदानी समूह हिंडनबर्ग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करता है तो वह कहां होगी? रिसर्च एजेंसी ने अडानी समूह को चुनौती दी है कि वह उसके खिलाफ अमेरिका में कानूनी कार्रवाई शुरू करे, जहां उसका कार्यालय है या जहां से वह काम करती है। हालांकि इसकी संभावना कम है कि अदानी समूह इस अमेरिकी रिसर्च संस्था के खिलाफ अमेरिका में कार्रवाई करेगी। ऐसा मानने की एक वजह यह भी है कि हिंडनबर्ग ने कहा है कि उसके पास ऐसे दस्तावेजों की लंबी सूची है, जो उसे अदानी समूह से चाहिए। असल में अमेरिका से इस किस्म के मामलों में विवाद होने पर कानूनी कार्रवाई के दौरान ‘लीगल डिस्कवरी प्रोसेस’ की व्यवस्था है। यानी बिना जांच एजेंसी के कानूनी प्रक्रिया के तहत दस्तावेजों की रिकवरी की व्यवस्था है। सोचें, दो साल तक रिसर्च के बाद एजेंसी ने रिपोर्ट तैयार की है तो निश्चित रूप से उसके पास और भी बहुत सी जानकारी होगी, जिनकी पुष्टि अदानी समूह से दस्तावेज मिलने के बाद हो सकती है। तभी सवाल है कि क्या अदानी समूह यह जोखिम लेगा कि अमेरिका में कानूनी कार्रवाई शुरू करे, जहां उसे और दस्तावेज रिसर्च एजेंसी को देना पड़े और उसकी मुश्किल बढ़े? तभी अगर कानूनी कार्रवाई शुरू होती है तो भारत में ही होगी, जहां पूरी प्रक्रिया को प्रभावित करना बहुत आसान होगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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