Independence Day 2021: भारत ने यों 1947 से ही झूठ में जीना अपनाया हुआ है लेकिन पिछली 15 अगस्त से इस 15 अगस्त का सबसे बडा अनुभव बतौर कौम झूठ में जीना और झूठ में मरने का है। सौ टका झूठ और दुनिया के नंबर एक झूठे। इसका प्रमाण, अनुभव है 2020-21 की महामारी। अनुभव से गुजरे है लेकिन उसे आप याद करें तो विश्वास नहीं होगा कि हम झूठ में इतना जी सकते है। कोरोना महामारी को हमने इतनी तरह से, इतने तरीकों व ऐसे नैरेटिव में अनदेखा, हल्का और नजरअंदाज किया कि 140 करोड लोग सचमुच इस झूठ में जीते रहे कि वायरस भारत में फेल! हम विश्वविजयी, हम विश्व रक्षक!
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भारत ने वायरस को नजरअंदाज किया और वह भारत की जमीन पर ऐसा घातक वैरिएंट रूप बना बैठा कि जब वह फैला तो रफ्तार के आगे सब औचक! झूठ में जीना घातक प्रमाणित और उससे जब धड़ाधड़ मौते हुई तो लोगों का बेमौत मरने का सत्य भी झूठ में परिवर्तित। लोग ऑक्सीजन नही मिलने से फडफाडा कर मरे तो संसद के जरिए भारत राष्ट्र का यह वैश्विक झूठ कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा हैं। श्मशानों-कब्रिस्तानों में लावारिश संस्कार के वीडियों-फोटो दुनिया के आगे लेकिन सरकार का तब भी अलग-अलग अंदाज के झूठों से सत्यता को दबाना था। नदी में लाशे बही, गंगा किनारे लाशे दफन हुई तब भी मौतों के साथ यह झूठ कि खबरे असत्य है और ये लाशे, मौते वायरस से मरे लोगों की नहीं है!
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सवाल है भारत बिना झूठ के क्या चल सकता है? इसका जवाब ईमानदारी से देने में समर्थ सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है। 2014 में उन्होने अच्छे दिनों के वायदे के साथ प्रधानमंत्री पद की कुर्सी संभाली थी तब मैं भी मानता था, सब मानते थे कि वे सच्चे है और हिंदुओं की सच्ची सरकार है तो शायद सच्चा रामराज्य बनना संभव हो। पर फिर ज्यों-ज्यों वक्त गुजरा तो उन्हे भारत के अफसरों-तंत्र का या तो यह सत्य समझ आया कि यहां तो झूठ और पैसे के बिना काम नहीं चलता या उन्होने जनता का यह सच समझा कि उनसे झूठ बोले बिना लोकप्रियता नहीं बनी रह सकती है तो उनका झूठ का वह संकल्प बना कि वहीं करना है जिसमें हिंदू जीते है। इसलिए 75वां स्वतंत्रता दिवस और उसके साथ हीरक जयंती के साल में देश की चिंता करने वाले हर सुधी जन को सोचना-लिखना चाहिए कि भारत का मौजूदा अस्तित्व झूठ का क्या-क्या अनुभव लिए हुए है!
झूठ में जीना, झूठ में मरना!
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