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चीन को भारत बताए हमलावर

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चीन को भारत बताए हमलावर
पता नहीं क्यों भारत ने अभी तक चीन को हमलावर नहीं कहा है, जबकि हकीकत है कि चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ की है। वह गलवान घाटी में भारत की सीमा में घुसा था, खबर है कि पैंगोंग झील के पास उसने भारतीय जमीन कब्जाई है और देपसांग के पास वाई जंक्शन के नजदीक उसके सैनिक तैनात हैं। दोनों देशों के बीच पुरानी सहमति के हिसाब से भारत पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 तक पहले गश्त करता था पर चीन के दबाव में भारत को वहां तक गश्त रोकनी पड़ी है। दोनों देशों के बीच तय था कि फिंगर चार भारत की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा, एलएसी और फिंगर आठ चीन की ओर से है। पर उसने फिंगर पांच तक अपनी पहुंच बनाई है। वह दबाव डाल कर भारत को अपने हिस्से में बफर जोन बनाने पर मजबूर कर रहा है। इसके बावजूद पता नहीं क्यों भारत ने अभी तक उसको हमलावर, आक्रांता देश नहीं कहा है। हैरानी की बात है कि अमेरिका यह बात कह रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कई बार कहा कि भारत के प्रति चीन हमलावर है। उन्होंने कहा कि चीन भारतीय सीमा में घुस कर यथास्थिति बदलने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका ने यह भी कहा है कि चीन को इस तरह का हमलावर बरताव नहीं करना चाहिए। इसके बावजूद भारत ने उसको हमलावर नहीं कहा है। गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया उसमें चीन को हमलावर नहीं कहा गया है और न यथास्थिति बरकरार रखने की कोई बात कही गई है। भारत की ओर से चीनी सैनिकों की गतिविधियों का तो जिक्र किया गया है पर यह नहीं कहा गया है कि अप्रैल से पहले की यथास्थिति हर हाल में बहाल होनी चाहिए, नहीं तो भारत सैन्य पहल करेगा। सोचें, अमेरिका के विदेश मंत्री कह रहे हैं कि चीन हमलावर है और भारतीय सीमा में घुस कर यथास्थिति बदलने का प्रयास कर रहा है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। पर भारत के विदेश मंत्री सिर्फ इतना भर कह रहे हैं कि दोनों देश बातचीत के जरिए सीमा विवाद सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत को समझना होगा कि यह सीमा विवाद नहीं है। सीमा विवाद सुलझाने के लिए तो एक तंत्र है, जिसकी 22 बार बैठक हो चुकी है और कोई नतीजा नहीं निकला है। अभी लद्दाख में जो कुछ भी हो रहा है वह सीमा विवाद नहीं है, बल्कि भारतीय सीमा में चीन का हमला है। चीन भारत की सीमा में घुसा है और उसने भारतीय सैनिकों के साथ हिंसक झड़प की, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए। इस घटना के बाद रणनीतिक रूप से चीन ने गलवान घाटी में सेना हटा ली। ध्यान रहे हिंसक झड़प गलवान घाटी में ही हुई थी। इसलिए चीन को लगा कि वहां सैनिक जमाए रखने या टकराव बढ़ाने से भारत में आम लोगों की धारणा भी बदलेगी और सेना भी कार्रवाई के लिए ज्यादा तत्पर रहेगी। सो, उसने गलवान घाटी से कदम पीछे खींचे पर बाकी जगहों पर पीछे नहीं हटा, जबकि सैन्य और कूटनीतिक दोनों वार्ताओं में उसने इस पर सहमति दी थी। सो, भारत को इस बात पर जोर देना चाहिए कि चीन यथास्थिति बहाल करे। भारत की ओर से जारी बयान में इस बात पर जोर दिया गया है कि डिसएंगेजमेंट हो और डिइस्कैलेशन हो। इन दोनों में बड़ा फर्क होता है। पहले भारत सिर्फ डिसएंगेजमेंट पर जोर दे रहा था, जिसकी सहमति चीन ने तत्काल दे दी थी। इसका मतलब है कि दोनों देशों के सेनाएं तत्काल टकराव की स्थिति खत्म करते हुए पीछे हटें। पर डिइस्कैलेशन का दायरा बड़ा है। उसके तहत दोनों देशों को हमेशा के लिए तनाव खत्म करने का प्रयास करना होगा। चीन इसके लिए किसी हाल में तैयार नहीं होगा। उसकी रणनीति भारत को उलझाए रखने की है। वह उत्तर से लेकर पूर्वी हिस्से तक कहीं न कहीं विवाद पैदा करता रहेगा और सीमा विवाद को नहीं सुलझाएगा। मध्य एशिया के सारे देशों के साथ उसने अपना सीमा विवाद सुलझाया है पर भारत के साथ विवाद वह हमेशा बनाए रखेगा।
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