भारत के पड़ोसी देशों में भारी सामरिक और कूटनीतिक हलचल है। लेकिन भारत सक्रिय नहीं! मानों भारत के पास सामरिक और कूटनीतिक मोर्चा संभालने का तंत्र नहीं हो। पूरा तंत्र सिर्फ चुनाव लड़ाने या सत्तारूढ़ दल को जिताने की मशीनरी बन खोया हुआ है। चीन ने इस साल एक जनवरी से नया सीमा कानून लागू किया है। पाकिस्तान ने अपनी नई सुरक्षा नीति जारी की है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने इसे तैयार किया है। इसके बरक्स पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपना एक विजन पेश किया है। उन्होंने पिछले दिनों रियासत ए मदीना नाम से एक लेख लिखा, जिसमें देश और शासन-प्रशासन को लेकर अपना नजरिया जाहिर किया। उनका यह लिखना निश्चित रूप से सेना के साथ चल रहे टकराव की वजह से था। लेकिन वह उनका आंतरिक मामला है।
चीन ने नया सीमा कानून लागू किया, जिसका सीधा, पहला निशाना भारत है। उसने इस कानून को भले एक जनवरी से लागू किया लेकिन पिछले साल अक्टूबर में ही जब उसे मंजूर किया गया था तभी से इसका असर दिखने लगा था। भारत के साथ लगती सीमा पर चीन मजबूत बुनियादी ढांचा बना रहा है। वह बस्तियां बसा रहा है, सड़कें और रेल लाइन का जाल बिछा रहा है और सैन्य तंत्र को मजबूत कर रहा है। वह मुश्किल हालात वाली जगहों पर रोबोटिक सैनिक तैनात कर रहा है और गांव के लोगों को सैन्य प्रशिक्षण देकर उनको हथियार से लैस कर रहा है। यह उसके नए कानून के अनुरूप है, जिसमें उसने अपनी जमीनी सीमा को पवित्र बताते हुए उसकी रक्षा का संकल्प जाहिर किया है।
ध्यान रहे चीन की सीमा 14 देशों के साथ लगती है वह कोई 22 हजार किलोमीटर लंबी है। लेकिन मध्य एशिया के ज्यादातर देशों के साथ वह अपना सीमा विवाद सुलझा चुका है। असली मसला भारत के साथ लगती साढ़े तीन हजार किलोमीटर की सीमा है और भूटान के साथ लगती करीब पांच सौ किलोमीटर की सीमा। यानी भारत को इस चार हजार किलोमीटर की सीमा पर चीन की गतिविधियों पर नजर रखनी है और दूसरी ओर चीन को जो कुछ करना है इसी सीमा पर करना है। मध्य एशिया के देशों के साथ लगती सीमा पर भी चीन की थोड़ी चिंता बढ़ी है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन बनने के बाद उसे आतंकवाद बढ़ने का खतरा दिख रहा है लेकिन पाकिस्तान के सहारे वह इसे नियंत्रित करने के भरोसे में है। लेकिन भारत और भूटान, म्यांमार के इलाके में वह बेहद आक्रामक तरीके से सैन्य गतिविधियां कर रहा है।
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उधर पाकिस्तान में आंतरिक और सीमा सुरक्षा को लेकर बहुत कुछ हो रहा है। मोईद यूसुफ की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति हो, इमरान की रियासत ए मदीना हो या सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का सिद्धांत हो। बाजवा डॉक्ट्राइन को लेकर भी पिछले कुछ दिनों से चर्चा हो रही है। उन्होंने ‘पीस विद इन एंड रीजन’ यानी पाकिस्तान में आंतरिक और बाहरी शांति का सिद्धांत दिया है। क्या यह इस सिद्धांत का नतीजा है, जो पिछले साल फरवरी में भारत और पाकिस्तान दोनों ने फिर से संघर्षविराम संधि को लागू करने का ऐलान किया और उसके बाद सीमापार से फायरिंग की घटनाएं कम हुई हैं? इसके पीछे तीसरे देश की मध्यस्थता भी एक कारण है। लेकिन सवाल है कि जब पाकिस्तान और चीन में इतना कुछ हो रहा है तो भारत में क्या हो रहा है?
भारत में तीनों सेनाओं के पहले प्रमुख यानी पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की मृत्यु के डेढ़ महीने हो गए और भारत अभी तक दूसरा सीडीएस नियुक्त नहीं कर पाया है। क्या मौजूदा समय में सामरिक मामले को वैसे ही संचालित किया जा सकता है, जैसे दूसरे विभागों को किया जा रहा है? सीडीएस कोई लोकसभा का उपाध्यक्ष या किसी विभाग का सचिव या किसी विश्वविद्यालय का कुलपति नहीं होता है, जो कार्यवाहक से काम चलाते रहें। लेकिन भारत में चल रहा है। भारत में सुरक्षा को लेकर जब चिंता हुई तो एक डिफेंस प्लानिंग कमेटी बनी थी, जिसका अध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल को बनाया गया था। इस कमेटी में रक्षा, विदेश और वित्त सचिव भी सदस्य थे और सीडीएस व तीनों सेनाओं के प्रमुख भी इसमें रखे गए थे। लेकिन मई 2018 में पहली बैठक के बाद इसकी कोई मीटिंग नहीं हुई। क्या दुनिया के हालात को देखते हुए भारत को नई सुरक्षा नीति की जरूरत नहीं महसूस हो रही है?
भारत की सुरक्षा नीति लगभग पूरी तरह से पाकिस्तान केंद्रित रही है। चीन भी भारत की सीमा में घुस कर जमीन कब्जा करता है तो भारत के नेता पाकिस्तान को गालियां देते हैं। भारत में सुरक्षा नीति का इस्तेमाल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने और चुनाव जीतने के लिए किया जाता है। हालांकि पिछले कुछ दिनों में इसमें बदलाव आया है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीज ने चीन को भारत का दुश्मन नंबर एक और सबसे बड़ा खतरा बताया था। हालांकि वह समाजवादियों और साम्यवादियों के पुराने वैचारिक झगड़े की वजह से था, लेकिन फिर भी वह दूरदर्शिता की बात थी। पिछले दिनों सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने भी इस बात को माना है। तभी पाकिस्तान की सीमा से हटा कर सेना के कुछ अतिरिक्त डिवीजन चीन की तरफ तैनात किए गए हैं। अब दो लाख भारतीय सैनिक चीन की सीमा पर तैनात है। भारत को अब नए हालात के मुताबिक अपनी सुरक्षा नीति बनानी चाहिए और चारों तरफ से सीमा पर बढ़ते दबाव से निपटने के नए उपाय सोचने चाहिए। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने अपने देश की नई सुरक्षा नीति में सबसे ज्यादा ध्यान आर्थिक सुरक्षा पर दिया है। यह भारत के लिए भी एक सबक है। देश की सीमा को सुरक्षित रखना है तो अपनी आर्थिकी को बेहतर बनाना होगा, उसे मजबूत करना होगा और चीन पर से निर्भरता कम करनी होगी। अब पारंपरिक युद्ध का जमाना नहीं रहा। युद्ध तकनीक, बायो हथियार या आर्थिकी के जरिए लड़े जाएंगे।