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कर्नाटक में शह-मात का खेल

कर्नाटक में चुनाव से पहले दोनों पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस में जिस तरह का शह-मात का खेल चला है वह कमाल का है। दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को नचाया हुआ है। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व तो खैर कमजोर है लेकिन भाजपा का नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह संभाल रहे हैं। बावजूद इसके उनके लिए प्रादेशिक क्षत्रपों को काबू करना मुश्किल हुआ है। भाजपा के शीर्ष नेता कर्नाटक में गुजरात फॉर्मूला लागू करने में लगे थे लेकिन हालात हिमाचल प्रदेश जैसे हो गए है। भाजपा आलाकमान को लग रहा था कि बीएस येदियुरप्पा ने जितनी आसानी से मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था उतनी ही आसानी से राजनीतिक जमीन भी छोड़ देंगे। लेकिन वे धरती पकड़ नेता हैं। वे अड़ गए और मोदी-शाह को मजबूरी में उनकी सारी बातें माननी पड़ी।

कई नेता इस फिराक में थे कि येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को वरुणा सीट पर सिद्धरमैया के खिलाफ लड़ा दें तो शुरू होने से पहले ही उनका राजनीतिक सफर समाप्त हो जाएगा। पर येदियुरप्पा अड़ गए और बेटे के लिए अपनी पारंपरिक शिकारीपुरा सीट ली। इसके अलावा उत्तरी और तटीय कर्नाटक के लिंगायत बहुल इलाकों में अपने तमाम समर्थकों के भी टिकट कराए। पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की जरूरत पड़ी तो वे दिल्ली में चल रही बैठक छोड़ कर वापस लौट गए। नतीजतन उनके सभी लोगों को एडजस्ट करना पड़ा। इसी तरह बेलगावी के इलाके में भाजपा नेतृत्व को मजबूरी में जरकिहोली परिवार के हिसाब से टिकट देनी पड़ी। दो सगे भाई रमेश और बालचंद्र जरकिहोली भाजपा की टिकट से लड़ रहे हैं और उनके सभी समर्थकों को टिकट दी गई है।

जरकिहोली परिवार की वजह से भाजपा को दिग्गज नेता लक्ष्मण सावदी की टिकट काटनी पड़ी। पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी मजबूत लिंगायत नेता हैं। सो टिकट काटे जाने से नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ने का ऐलान किया है। पार्टी के नेता उनको मनाने में लगे हैं। उधर बेल्लारी में विवादित रेड्डी बंधुओं के हिसाब से भाजपा को टिकट बांटनी पड़ी। सोमशेखर रेड्डी को बेल्लारी शहर से टिकट दी गई। पिछले चुनाव से पहले अलग पार्टी बनाने वाले बी श्रीरामुलू को भी बेल्लारी देहात से लड़ाया गया है। वे रेड्डी बंधुओं के करीबी हैं। सो, येदियुरप्पा, जरकिहोली परिवार और रेड्डी परिवार ने अपने हिसाब से टिकट तय कराए हैं। शह-मात के खेल में प्रादेशिक क्षत्रपों ने बाजी मारी।

भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री पद छोड़ने वाले पार्टी के कद्दावर नेता केएस ईश्वरप्पा तो पार्टी की बात मान कर लड़ाई से हट गए लेकिन अपने बेटे को टिकट देने की बात पर अड़े रहे। पार्टी के एक और विधायक एमपी कुमारस्वामी ने टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ दी। पार्टी ने गुजरात फॉर्मूले से अलग बहुत कम विधायकों की टिकट काटी। कुल 19 विधायकों को टिकट नहीं दिए जाने की खबर है लेकिन उसमें भी कई नेताओं के बेटे-बेटियों, पत्नी या दूसरे रिश्तेदारों को टिकट दिया गया है। जिनके रिश्तेदारों को टिकट नहीं मिली है वे कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं या निर्दलीय लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

कांग्रेस मे भी शह-मात का कमाल का खेल चला है। सिद्धरमैया ने इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव बताया है और मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश की है तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार अपने बंदोबस्तों से चुनाव लड़ा रहे हैं तो उनकी भी दावेदारी है। लेकिन उनको लगा कि वे सिद्धरमैया के मुकाबले कमजोर पड़ रहे हैं तो उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर दिया। शिवकुमार ने कहा है कि उनको खड़गे के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं है। ध्यान रहे इससे पहले खड़गे तीन बार मुख्यमंत्री बनने से चूके हैं। उनकी दावेदारी बता कर शिवकुमार ने एक तीर से दो शिकार किए हैं। उन्होंने दलित वोट सुनिश्चित किया है तो साथ ही सिद्धरमैया की दावेदारी कमजोर की है। ध्यान रहे सिद्धरमैया लंबे समय से खड़गे के करीबी रहे हैं। अभी कांग्रेस ने चुनाव जीता नहीं है लेकिन अभी से पार्टी नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए शह-मात का खेल शुरू हो गया है। इस तरह का खेल जेडीएस में भी चल रहा है लेकिन वह मुख्य रूप से देवगौड़ा परिवार के अंदर का खेल है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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