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नेता उभरेंगे, विपक्ष नहीं

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नेता उभरेंगे, विपक्ष नहीं
सन् 2020 में विपक्ष में, विपक्ष का कंफ्यूजन बढ़ेगा मगर विपक्ष के क्षत्रपों, मुख्यमंत्री और नेताओं का रूतबा बढेगा। वैसे ही जैसे सन् 2021 में ममता बनर्जी की जीत से हुआ। पांच राज्यों में चल रहे चुनाव नतीजों से विपक्षी राजनीति की दिशा तय होने की संभावना कम है। इन पांच राज्यों के चुनावों में अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की हैसियत बढ़ेगी मगर विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने और 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए चेहरा बनने का मसला उलझा रहेगा। अरविंद केजरीवाल जरूर बड़ा नेता बन कर उभर सकते हैं यदि उनकी पार्टी पंजाब में सरकार बना ले। फिर आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस के बाद देश की तीसरी पार्टी बन जाएगी, जिसकी एक से ज्यादा राज्य में सरकार होगी। यह स्थिति केजरीवाल को बाकी प्रादेशिक क्षत्रपों से अलग और ऊपर कर देगी। Leaders will emerge opposition केजरीवाल और अखिलेश के अलावा बाकी क्षत्रपों का इन चुनावों में कुछ भी दांव पर नहीं है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस चुनिंदा सीटों पर गोवा में चुनाव लड़ेगी और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने पार्टी को एक सीट दी है। इसी तरह शरद पवार की पार्टी एनसीपी गोवा में दो-चार सीटों पर लड़ेगी और उनकी पार्टी को भी अखिलेश ने उत्तर प्रदेश में एक सीट दी है। तभी इन चुनावों में अगर इन दोनों बड़े प्रादेशिक नेताओं के दो-चार उम्मीदवार जीत भी जाते हैं तो उससे कुछ नहीं बदलेगा। दोनों की हैसियत वहीं रहनी है, जो अभी है। यानी इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के आधार पर वे अपनी हैसियत बढ़ाने और विपक्ष की कमान थाम लेने का दावा नहीं कर सकेंगे। Read also नए नेताओं के उभरने का वक्त! केजरीवाल के अलावा जिस दूसरे नेता को इस चुनाव में फायदा हो सकता है वो अखिलेश यादव हैं। अगर उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतती है तो वे सबसे बड़े प्रादेशिक क्षत्रप होंगे। हालांकि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे, इसमें संदेह है। उनकी उम्र उनके साथ है और वे अभी उत्तर प्रदेश की ही राजनीति करना चाहेंगे। लेकिन अगर वे चुनाव जीत जाते हैं तो उनकी हैसियत बहुत बड़ी हो जाएगी और जिस तरह 1989 में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत वाली सरकार को चुनौती देने वाले वीपी सिंह के लिए देवीलाल या एनटी रामाराव ने भूमिका निभाई थी वैसी भूमिका में वे आ सकते हैं। फिर यह तय होगा कि उनकी मर्जी के बगैर न तो विपक्ष का चेहरा तय होगा और न गठबंधन अंतिम रूप ले पाएगा। उधर बिहार में पहले से तेजस्वी यादव एक मजबूत ताकत बन चुके हैं। उनके नेतृत्व में बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़ा दल है। तेजस्वी और अखिलेश यादव दोनों की राजनीति एक जैसी है और दोनों करीबी रिश्तेदार भी हैं। अगर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा जीतती है तो उसके बाद विपक्ष की राजनीति तय करने में इन दोनों नेताओं की बड़ी भूमिका रहेगी। कह सकते हैं कि सबसे अहम भूमिका ये दोनों नेता निभा सकते हैं। दूसरी किसी पार्टी के लिए इनका स्वाभाविक रूझान कांग्रेस के साथ होगा। वैसे भी बिहार में राजद और कांग्रेस का तालमेल है। कांग्रेस के लिए जरूर ये पांचों चुनाव बेहद अहम हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश छोड़ कर बाकी चार राज्यों में कांग्रेस या तो सत्ता में है या मुख्य विपक्षी पार्टी है। उसको कम से कम अपनी यह हैसियत बचानी है और ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस इसमें कामयाब हो जाएगी। क्योंकि अलग अलग कारणों से उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भाजपा की स्थिति कमजोर है। कांग्रेस को बड़ी चुनौती पंजाब में आम आदमी पार्टी से है। इसके बावजूद वहां भी कांग्रेस से ही सबकी लड़ाई है। उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सीधी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस की है। हार-जीत कांग्रेस या भाजपा की होनी है। इसका फायदा एनसीपी या तृणमूल कांग्रेस नहीं उठा सकते हैं। कांग्रेस अगर अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो ममता बनर्जी और शरद पवार सक्रिय होंगे और कांग्रेस में तोड़-फोड़ की कोशिश होगी। लेकिन उसमें समय लगेगा। Read also नए नेताओं के उभरने का वक्त! कांग्रेस के नेता गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव का भी इंतजार करेंगे। उन दोनों राज्यों में भी विपक्ष का नेता बनने की कोशिश कर रहे क्षत्रपों जैसे ममता बनर्जी या शरद पवार का कुछ भी दांव पर नहीं होगा। हां, अगर पंजाब में केजरीवाल की पार्टी जीतती है तो वे गुजरात में बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभर सकते हैं। केजरीवाल पंजाब जीते तो वे गुजरात का रुख करेंगे। फिर वहां कांग्रेस टूटेगी और उसके बड़े नेता केजरीवाल के साथ जाएंगे। तब अरविंद केजरीवाल बाकी क्षत्रपों से आगे निकल सकते हैं। फिर विपक्ष के नेताओं के बीच शह-मात का खेल होगा। फैसला फिर भी नहीं होगा क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले 2023 के शुरू में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव हैं और उसके बाद कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव होंगे। इन राज्यों के चुनाव नतीजों से कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी की हैसियत तय होगी। विपक्ष  में कांग्रेस की क्या भूमिका रहने वाली है यह उसके बाद तय होगा। तब तक ममता बनर्जी और शरद पवार की क्या स्थिति रहेगी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन उस समय तक अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल दो मजबूत क्षत्रप उभर चुके होंगे।
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