Modi government agriculture law : लगातार दूसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद सोचें, उन्होंने कितने नए एजेंडे बनाए थे और कितने नए मोर्चे खोले थे। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि पांच साल तक सरकार चलाने के बाद अगर सरकार ने कुछ एजेंडा बनाया और संसद से उसे मंजूरी कराई है तो निश्चित रूप से सरकार के पास कोई कार्य योजना भी होगी। लेकिन अफसोस की बात है कि जो एजेंडा सरकार ने बनाया और जिस पर जोर-जबरदस्ती संसद की मुहर लगवाई वैसे एजेंडे भी दो साल से अटके हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार के पास उस पर अमल की कोई कार्य योजना नहीं थी या सरकार ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि इसे लागू करते समय किस किस तरह की समस्याएं आ सकती हैं।
ऐसा सबसे पहला मुद्दा कृषि कानूनों ( Modi government agriculture law ) का है। कोरोना वायरस की महामारी के बीच केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए तीन कृषि कानून बनाए, जिनको संसद से लगभग जबरदस्ती पास कराया गया। राज्यसभा में इन कानूनों का भारी विरोध हुआ। विपक्ष के सांसद इन पर वोटिंग की मांग करते रहे पर इस अनिवार्य संवैधानिक जरूरत को पूरा किए बगैर तीनों कानूनों को पास कराया गया। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद आनन-फानन में इसे अधिसूचित करके लागू भी कर दिया गया। लेकिन अंत नतीजा क्या है? किसानों का आंदोलन शुरू होने के थोड़े समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों पर रोक लगा दी। सोचें, सर्वोच्च अदालत ने इन कानूनों के संवैधानिक पहलुओं पर बिना कोई सुनवाई किए इन पर अमल रोक दिया और एक कमेटी बना कर सभी पक्षों से बात करने को कहा। इस बात को कई महीने हो चुके हैं।
किसान सात महीने से आंदोलन कर रहे हैं और दिल्ली की सीमा घेर कर बैठे हैं। सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कई महीने पहले ही अदालत को सौंप दी है और केंद्र सरकार के बनाए तीनों कानूनों पर रोक जारी है। सरकार को पहले से पता था कि कृषि कानूनों का विरोध होगा। केंद्र सरकार ने तीन कानूनों के जरिए मंडी के बाहर अनाज की खरीद-फरोख्त की इजाजत दी है, ठेके पर खेती करने की मंजूरी दी है और आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव कर कर दिया है। ये तीनों कानून विवादित हैं। तभी सवाल है कि क्या सरकार ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि इसका विरोध हो सकता है? देश के कई राज्यों के किसान सात महीने से आंदोलन कर रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। कानून पर रोक लगी हुई है। सरकार ने खुद भी किसानों से कहा है कि वह डेढ़ साल तक कानूनों पर अमल रोकने के लिए तैयार है। सोचें, जब कानून पर अमल रोके ही रखना था तो कोरोना महामारी की आपदा को अवसर बनाते हुए इसे लागू करने की क्या जरूरत थी?
यहीं हाल नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का है। मई 2016 में सत्ता में आने के बाद संसद की दूसरी बैठक में दिसंबर में केंद्र सरकार ने इस कानून को पास कराया था। इसे पास हुए 17 महीने हो चुके हैं और अभी तक इसे लागू करने के लिए जरूरी नियम नहीं बनाए गए हैं। सोचें, संसद से मंजूरी के बाद राष्ट्रपति ने इस पर दस्तखत कर दिए और 17 महीने से केंद्रीय गृह मंत्रालय इसके नियम अधिसूचित नहीं कर पाया है। अगर इसे लागू ही नहीं करना था तो फिर बनाया क्यों गया था? याद करें कैसे इस कानून के पास होने के बाद देश में इसके खिलाफ आंदोलन हुए थे। दिल्ली में शाहीन बाग में महीनों लोग सड़क घेर कर बैठे रहे थे। वह तो भला हो कोरोना वायरस की महामारी का, जिसकी वजह से सीएए विरोधी आंदोलन खत्म हुआ।
यह एक जरूरी कानून है। दुनिया में हिंदुओं का एकमात्र देश भारत है और अगर दुनिया में कहीं भी हिंदू प्रताड़ित होते हैं तो उन्हें भारत में शरण लेने का हक होना चाहिए। सरकार उन्हें नागरिकता दे इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। कानून बनाते समय केंद्र सरकार ने इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव किया है, जिसकी वजह से इसका विरोध हुआ। लेकिन कानून पर अमल उस वजह से नहीं रूका है। कानून बनाने के बाद सरकार को लगा कि असम में विधानसभा चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है क्योंकि वहां स्थानीय नागरिक अपनी संस्कृति और भाषा को लेकर आंदोलित हो गए। इसलिए इस पर अमल रोक दिया गया। सोचें, क्या इस तरह से दुनिया के किसी देश में कानून बनता और लागू होता है? इसी तरह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को लेकर भाजपा अति उत्साहित थे और केंद्र सरकार के मंत्री इसे पूरे देश में लागू करने की बात कर रहे थे। लेकिन असम में, जहां एनआरसी हो गई है वहां भी इस पर अमल नहीं हो रहा है।
ऐसे ही कश्मीर का मामला है। केंद्र में दूसरी बार सरकार बनने के तुरंत बाद अगस्त में जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 खत्म किया गया और राज्य का दो हिस्सों में बंटवारा करके दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? राज्य के सभी नेताओं को उठा कर या तो जेल में डाल दिया गया या घरों में नजरबंद कर दिया गया। दुनिया भर में इसे लेकर बदनामी होती रही। एक साल तक जेल से छूटने के बाद जब कश्मीर की आठ पार्टियों के नेताओं ने गुपकर समूह बनाया तो देश के गृह मंत्री ने उस समूह को ‘गुपकर गैंग’ का नाम दिया और ट्विट करके कांग्रेस से इस बारे में सवाल पूछे। लेकिन
अचानक प्रधानमंत्री ने उसी ‘गुपकर गैंग’ के लोगों को बुला लिया और उनसे दिल की बात की। दिलों की दूरी मिटाने को कहा। गृह मंत्री भी इस बैठक में शामिल हुए। यह सोचने वाली बात है कि अगस्त 2019 से लेकर अभी तक 20 महीने में जो हुआ है उससे क्या हासिल हुआ? Modi government agriculture law