बेबाक विचार

आश्चर्य! भाजपा के खिलाफ ऐसा भौकाल!

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आश्चर्य! भाजपा के खिलाफ ऐसा भौकाल!
मोदी और योगी का चेहरा, उनका जादू, ताकत, संसाधन, मीडिया कंट्रोल सब कुछ भाजपा के पास लेकिन बावजूद इसके जिधर भी बात करो सब तरफ से खबर कि भाजपा हार रही है। क्या यह मेरे परिचितों-संपर्कों, सूचना सोर्स के इकोसिस्टम का भौकाल है या रियलिटी है? पता नहीं। मेरा आश्चर्य भौकाल की सघनता पर है। मोदी-शाह-योगी की मशीनरी के बावजूद कैसे इतना हल्ला? निश्चित ही भाजपा इस भौकाल से हैरान-परेशान होगी। मोदी-शाह की खूबी है, जो लड़ाई में आखिरी वोट तक न कोशिशों में कमी रखते हैं और न पासा पलटने के इनमें हुनर कम हैं। बावजूद इसके चुनाव से पहले जैसा भरोसा था वह क्या अब होगा? Narendra modi amit shah सो, समय चक्र का फेर है, जो पिछले कुछ महीने से नरेंद्र मोदी के सियासी फैसले उलटे पड़ रहे हैं। फिर भले मुख्यमंत्री बदलने जैसे फैसले हों या यूपी में हालात दुरूस्त करने की कोशिश रही हो। वे सोचते क्या हैं और हो क्या रहा है? मोदी को यूपी में योगी आदित्यनाथ के कारण लोगों में नाराजगी का भान हो गया था। लखनऊ की कमान में बहुत कुछ बदलने का इरादा बनाया था लेकिन आखिर में योगी के साथ हाथ उठाए जनता में दोनों के डबल इंजन का मैसेज बनाते हुए थे। ऐसे ही मौजूदा विधायकों के बड़ी संख्या में टिकट कटने थे लेकिन ऐन वक्त अखिलेश यादव के यहां भाजपा नेताओं की भगदड़ से इरादा बदलना पड़ा। ऐसा ही उत्तराखंड में हुआ, पंजाब व गोवा में हुआ। सभी दांव उलटे पड़े और तभी कहीं से यह सुनने को नहीं मिल रहा है कि भाजपा की हवा है! सवाल है भाजपा अपने इकोसिस्टम में क्या जीतती हुई है? पर यदि ऐसा होता तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के दिग्गज जाट नेता-मंत्री हताशा क्यों बताते मिलते? सोचें सुरेश राणा ने बड़ी संख्या में बूथों पर पुनर्मतदान के लिए चुनाव आयोग से कहा, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई। भाजपा विधायकों के लिए प्रचार में मुश्किलों, सभाओं में कम भीड़, खाली कुर्सियों, फोटोशॉप से चेहरे और भीड़ में सभा के झूठे पोस्ट या अमित शाह द्वारा रोड शो छोड़ने वाले वीडियो सब भाजपा के ही इकोसिस्टम से तो आते हुए हैं! ये सब अखिलेश यादव या विरोधियों की चुनावी टीम के काम नहीं हैं। इन बेचारों का तो कहीं एक पोस्टर, एक होर्डिंग नजर नहीं आएगा। इनका न सोशल मीडिया का उपयोग या दुरूपयोग है और न गर्मी उतार देने वाली आक्रामकता। मैं मोदी-शाह के चुनावी धमाल के आगे विपक्ष को बौना मानता हूं। सन् 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में बनारस में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के रोड शो की भीड़ देख मैं चकरा गया था। बनारस के नतीजे आए तो और चकराया। इसलिए भीड़ का भौकाल हार-जीत का पैमाना नहीं होता है। तब लोगों में मन ही मन नोटबंदी से बिजली कड़की थी जबकि परंपरागत विरोधी वोट नोटबंदी की लोगों पर मार की गलतफहमी में रोड पर भीड़ का भौकाल बनाए हुए थे। Five state election BJP Narendra modi amit shah Read also विरोधी वोट वोकल होता है तब इस दफा भाजपा के हारने का भौकाल किस मनोदशा में बना हुआ है? जैसा मैंने पहले लिखा था कि भाजपा के सन् 2019 के 39.7 प्रतिशत वोटों में 25 प्रतिशत कोर व पक्के भक्त वोटों को छोड़ कर बाकी वोटों का बिखरना लगभग तय है। इनकी जगह नए वोट भाजपा के बनते हुए नहीं हैं। ध्यान रहे भाजपा का उत्तर प्रदेश में पुराना पक्का कोर वोट 15-18 प्रतिशत (2012 व 2007 चुनाव में था) रहा है। इसलिए लोकसभा के सन् 2014 के 42.3 व सन् 2019  के 50 प्रतिशत भगवाई वोट का चमत्कार मोदी-पुलवामा की सुनामी से था। वह सारी गणित अब मुख्यमंत्री के चेहरे, केंद्र-प्रदेश सरकार व विधायक के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी में बिखरती हुई है। महामारी काल में जीवन जीने के अनुभव से भाजपा से छिटकते हुए हैं। तभी 10 मार्च को जब नतीजा आएगा तब भाजपा के असली पक्के कोर वोट का आंकड़ा निकलेगा। पता पड़ेगा कि पिछले एक दशक की राजनीति में यूपी में हिंदू भगवाई वोट 15-18 प्रतिशत से बढ़ कर 30 प्रतिशत से पार होते हैं या नहीं। बहरहाल भाजपा के हारने के भौकाल में यूपी, उत्तराखंड, गोवा और पंजाब के चुनाव बाद भगवा वोटों में कितना-कैसा फर्क होगा। कांटे की लड़ाई वाले नतीजे या एकतरफा सीधा दो टूक जनादेश? अपना मानना है कि सभी राज्यों में जनादेश दो टूक होगा। त्रिशंकु विधानसभा नहीं होनी चाहिए। यदि वैसा होता है तो वह भाजपा की भारी जीत होगी। जीता हुआ विपक्ष भी कहीं सरकार नहीं बना सकेगा। पर मोटा-मोटी अपने इकोसिस्टम का भौकाल आर-पार के फैसले के लक्षण लिए हुए है।
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