
उफ! उदयपुर में सर कलम की बर्बरता। राजस्थान और उसमें भी गुजरात से सटे मेवाड़ का उदयपुर! मै इस इलाके का पोर-पोर जानता हूं। इसलिए कह सकता हूं कि मेवाड़ शांति और सांप्रदायिक सौहार्द में बेजोड़ है। बावजूद इसके उदयपुर से जुनून की वैश्विक खबर बनना। तय मानें अब भारत उस स्पेस के बिना है, जिसमें दो समुदाय आपसी विश्वास से बैठ कर समझदारी की बातें कर पाएं। 27 जून 2022 की घटना महाबुरे वक्त का वह मोड़ है, जिससे भारत में विकल्पहीनता बढ़ेगी। आर-पार की राजनीति होगी। लोकतंत्र पंगु होगा। देश का नैरेटिव और जाहिल बनेगा। जिस जहालत-काहिली में दो मुसलमानों ने कन्हैया की गला काट कर हत्या की है वह आम मनोदशा का मुख्य व्यवहार होगा।
यों मैं लगातार लिखता आ रहा हूं कि भारत अब हिंदू बनाम मुस्लिम की इतिहास ग्रंथि में ऑटो मोड पर है। राजा और प्रजा दोनों ऑटो मोड में स्वयंस्फूर्त पानीपत की लड़ाई का मैदान तैयार करते हुए हैं। आखिर जब लड़ाई से ही वोट, सत्ता और विचारधारा विशेष की एक पार्टी की एकछत्रता का संकल्प है तो अपने आप वह सब बढ़ता हुआ होगा जो हालिया होता आया है।
पर अब खौफनाक मोड़ जहालत-काहिली का है। इसका असर क्या होगा? भाजपा का हिंदू वोट प्रतिशत जंप मारेगा। देश का नैरिटव और जाहिल बनेगा। हिंदू-मुस्लिम को छोड़ कर बाकी तमाम हालातों, मुद्दों और समस्याओं की राजनीति खत्म है। आगे के विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव, वे विरोधी दलों के लिए लड़ सकना और मुश्किल हैं।
मोटी बात नफरत, भय, आतंक और बदले की मनोदशा घर-घर बन रही है। इस मौन मानसिक परिवर्तन में दिमाग जहालत-काहिली की बातें करता हुआ है। यह सिलसिला रूक या खत्म इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि इसे हवा देने वाले नेताओं, फ्रिंज तत्वों और राजनीति की कमी नहीं है। क्या यह सब किसी ग्रैंड डिजाइन में है या इस नाते अपने आप है कि जो लड़ाई, जो संघर्ष 25-50 साल बाद होना था वह जल्द हो तो डिजाइन का होना या न होना बेमतलब है। भारत का इतिहास ही ऐसा है, जिसमें हिंदू बनाम मुस्लिम का द्वंद्व स्थायी है और उसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा उसके स्वाभाविक लाभार्थी हैं। वे वक्त के बादशाह हैं!
सवाल है क्या उदयपुर की घटना से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा नेता और संघ परिवार में कोई विचार मंथन होगा? अवश्य हो रहा होगा। घटना ही ऐसी है, जिससे प्रधानमंत्री और सरकार के स्तर पर मुस्लिम देशों और पश्चिमी देशों के साथ निजी कूटनीति में बहुत कुछ कहा जा सकता है तो पार्टी और संघ परिवार के लिए नैरेटिव का नया मसाला बनता है। उस नाते प्रधानमंत्री मोदी की यूएई की यात्रा और वहा के शेख को भाईजान का संबोधन मामूली बात नहीं है। उधर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना कर उद्धव ठाकरे के हिंदू पार्टी स्पेस को खत्म करना भी भारी दांव है।