new cabinet technocrat minister : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, लेकिन उससे एक दिन पहले मंगलवार को ही सभी टेलीविजन चैनलों पर यह बताया जाने लगा था कि इस बार मंत्रिमंडल में रिकार्ड संख्या में पेशेवर और टेक्नोक्रेट ( new cabinet technocrat minister ) शामिल किए जाएंगे। इसके साथ दो-तीन और चीजों का प्रचार हुआ, जैसे रिकार्ड संख्या ओबीसी, एससी और एसटी शामिल हो रहे हैं, रिकार्ड संख्या में अल्पसंख्यक शामिल हो रहे हैं, अब तक के इतिहास का सबसे युवा मंत्रिमंडल होगा आदि-आदि। इसी लाइन पर बुधवार की सुबह अखबारों में खबरें भी छपीं, लेकिन उस समय तक किसी को मंत्रियों के नाम पता नहीं थे। फिर भी पूरी श्रद्धा से सबने इस लाइन को फॉलो किया और खबरें छापी गई। असल में इसके जरिए राजनीतिक नैरेटिव को ट्विस्ट देने का प्रयास किया गया। मोदी सरकार के ऊपर कोरोना संकट के समय ठीक से काम नहीं करने का जो आरोप लगा था या हाल के दिनों में हुए चुनावों के जो नतीजे आए हैं उन्हें देखते हुए पिछड़े, दलित, वंचित, गरीब की सरकार होने का नैरेटिव बनाना था तो साथ ही मध्य वर्ग को आकर्षित करने का नैरेटिव भी बनाना था।
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सरकार में बड़ी संख्या में टेक्नोक्रेट या पेशेवरों के शामिल होने का जो हल्ला मचा उसका मकसद मध्य वर्ग को खुश करना था। ध्यान रहे मध्य वर्ग पारंपरिक नेताओं के मुकाबले टेक्नोक्रेट या पेशेवरों को ज्यादा सक्षम और काबिल मानता है क्योंकि इस वर्ग के लोगों को भी अपने बच्चों को नेता नहीं बनाना होता है उन्हें पेशेवर या टेक्नोक्रेट बनाना होता है, आईएएस-आईपीएस बनाना होता है, वकील-डॉक्टर बनाना होता है, विदेश में पढ़ाना होता है। वे विदेश में पढ़े लिखे लोगों को बड़ी श्रद्धा के साथ देखते हैं और प्रतिष्ठा देते हैं। ध्यान रहे यूपीए की सरकार 2009 में ज्यादा सांसदों के साथ दोबारा चुनी गई थी तब मध्य वर्ग के लोगों ने मनमोहन सिंह की वजह से भाजपा को छोड़ कर कांग्रेस को वोट दिया था। उनको लगता था कि विदेश से पढ़े मनमोहन सिंह अच्छा कर रहे हैं। उन्होंने अमेरिका के साथ जो संधि की थी उसने भी कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया था।
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उसी तर्ज पर इस बार मंत्रिमंडल में फेरबदल का भाजपा ने एक खास नैरेटिव बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता था कि ओबीसी, एससी, एसटी या अल्पसंख्यक मंत्री बनाने का हल्ला मध्य वर्ग और खास कर सवर्ण मध्य वर्ग को नाराज करेगा। इसलिए उसे खुश करने के लिए यह प्रचारित किया गया कि इस बार रिकार्ड संख्या में आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या विदेश में पढ़े लिखे लोगों को मंत्री बनाया गया है। मोदी के इस बार के मंत्रिमंडल में कई नौकरशाह शामिल हैं। ओड़िशा काडर के आईएएस अश्विनी वैष्णव, बिहार काडर के आरके सिंह, उत्तर प्रदेश काडर के आरसीपी सिंह के अलावा विदेश सेवा के अधिकारी एस जयशंकर और हरदीप सिंह पुरी कैबिनेट मंत्री हैं। यानी 30 कैबिनेट मंत्रियों में से पांच मंत्री पूर्व आईएएस या आईएफएस हैं।
अश्विनी वैष्णव के पूर्व आईएएस अधिकारी होने के साथ साथ इस बात का भी प्रचार किया गया कि उन्होंने आईआईटी कानपुर से एमटेक किया है और अमेरिका व्हार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस से मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। इसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड से पढ़े होने का प्रचार किया गया। कारोबारी राजीव चंद्रशेखर के अमेरिका के इलियोनॉय से एमटेक और हार्वर्ड से प्रबंधन की पढ़ाई किए होने पर जोर दिया गया। मीडिया को सारे मंत्रियों का छोटा प्रोफाइल भेजा गया, जिसमें उनकी पढ़ाई का ब्योरा दिया और मीडिया ने पूरी निष्ठा से इसे प्रसारित भी किया।
new cabinet technocrat minister : इसमें भूपेंद्र यादव, सर्बानंद सोनोवाल, मीनाक्षी लेखी, भानु प्रताप सिंह वर्मा, अजय भट्ट, अजय कुमार मिश्रा, एल मुरुगन आदि के एलएलबी पढ़े होने या वीरेंद्र कुमार, एसपी सिंह बघेल, राजकुमार सिंह रंजन के पीएचडी करने, अनुप्रिया पटेल के एमबीए होने और सुभाष सरकार, भागवत किशन राव कराड और भारती प्रवीण पवार के एमबीबीएस होने पर खास जोर दिया गया।
इस प्रचार से नरेंद्र मोदी और उनकी पीआर टीम ने मध्य वर्ग की आकांक्षाओं को संतुष्ट करने का प्रयास किया। विडंबना यह है कि एक तरफ सरकार जाति का प्रचार कर रही थी और बता रही थी कि कितने पिछड़े, दलित, आदिवासी मंत्री बन रहे हैं और दूसरी ओर उनकी योग्यता का भी ढिंढोरा पीट रही थी। ये दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं। अगर योग्यता बता रहे हैं तो फिर उसकी जाति बताने की जरूरत नहीं है। उसकी योग्यता ही उसका परिचय है।