प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छे से पता है कि किसको क्या कह कर खुश किया जा सकता है और किसकी क्या कीमत है, जो चुका कर उसे अपना बनाया जा सकता है। तभी वे जहां भी जाते हैं वहां के लोगों की ऐसी तारीफ करते हैं कि सुनने वाले भी हैरान रह जाते हैं कि इतना सब कुछ अच्छ-अच्छा उनके बारे में कहा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी बातों से उनको गर्व से भर देते हैं। अगर बातों से काम नहीं चलता है तो फिर टोपी पहन लेते हैं या गले में पटका डाल लेते हैं। फिर उनकी पूरी पार्टी और पूरा मीडिया यह बताने में लग जाता है कि प्रधानमंत्री ने अमुक राज्य की टोपी पहन कर उसका कितना मान बढ़ाया है और अमुक राज्य का पटका गले में पहन कर उस राज्य को कैसे वैश्विक मानचित्र पर ला दिया है। वे जिस राज्य में जाते हैं उसे देश के विकास का इंजन बताते हैं और यह जरूर कहते हैं कि उस राज्य में देश का नंबर एक राज्य बनने की संभावना है। राज्य के लोग अपनी हकीकत से वाकिफ होते हैं लेकिन जब दिमाग पर गर्व का भाव चढ़ जाता है तो आंखें बंद हो जाती हैं। Politcs Narendra modi BJP
ऐसे ही अलग-अलग जातियों की आंखों पर पट्टी बांधने का काम किया जाता है। उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं और खबर है कि राज्य के ब्राह्मण नाराज हैं तो उनकी नाराजगी दूर करने की क्या कीमत है? केंद्र में एक मंत्री पद! ब्राह्मणों की नाराजगी के बीच पिछले साल प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार का विस्तार किया तो उत्तर प्रदेश से सात मंत्री बनाए, जिसमें छह पिछड़ी जातियों से थे और एक ब्राह्मण- अजय मिश्र उर्फ टेनी। क्या ब्राह्मणों को इससे खुश नहीं होना चाहिए? ऊपर से टेनी महाराज के बेटे ने किसानों को कथित तौर पर अपनी गाड़ी से कुचल दिया और उस हिंसा में आठ लोग मर गए तब भी टेनी को सरकार से नहीं हटाया, क्या यह मामूली कीमत है? ब्राह्मणों को आभारी होना चाहिए! कोई यह न पूछे कि चुनाव चल रहे हैं तो टेनी महाराज कहां हैं?
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प्रधानमंत्री ने पिछले साल अपने मंत्रिपरिषद का विस्तार करने के बाद गर्व से बताया कि उनकी सरकार में कितने पिछड़े और कितने दलित-आदिवासी मंत्री हैं। इससे पहले कभी किसी केंद्रीय सरकार में इतने पिछड़े और दलित-आदिवासी मंत्री नहीं रहे। वे राजनीति और सत्ता में हिस्सेदारी खोज रही जातियों की मानसिकता को अच्छी तरह से समझ रहे हैं। तभी उन्होंने सबसे ज्यादा आकांक्षी जातियों के नेता खोजे और उनको अपनी सरकार में मंत्री पद दिया। यह अलग बात है कि उनमें से किसी के पास कोई काम नहीं है और न कोई वास्तविक ताकत है। इस बात को वे मंत्री समझ रहे हैं लेकिन उनकी जातियों के लोग खुश हैं कि उनका मंत्री बना हुआ है। जिस जाति के मंत्री नहीं हैं, उनका राज्यपाल बना दिया। वह भी नहीं कर सके तो उस जाति के किसी महापुरुष का जयकारा लगा दिया, उसकी मूर्ति लगा दी, उसके नाम से किसी जगह का नाम रख दिया। पिछड़ी जातियों को गर्व से भर देने वाली यह बात प्रधानमंत्री हर जगह कहते हैं कि उन्होंने पिछड़ी जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। इससे पहले किसी ने इस बारे में नहीं सोचा था। अब सोचें, पिछड़ी जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से पिछड़ी जातियों की वास्तविक स्थिति पर क्या फर्क पड़ा है! इसी तरह आदिवासियों को खुश करने के लिए 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस की घोषणा हो गई है और पंजाब के लोगों को खुश करने के लिए 26 दिसंबर को वीर बालक दिवस मनाने का ऐलान कर दिया।
सोचें, पिछड़ी जाति आयोग को संवैधानिक दर्ज दे दिया, पिछड़ी जातियों के सबसे ज्यादा मंत्री बना दिए, आदिवासियों के लिए जनजातीय गौरव दिवस की घोषणा कर दी, उत्तराखंड की टोपी पहन ली, मणिपुर का पटका गले में डाल लिया, पंजाबियों के लिए वीर बालक दिवस की घोषणा कर दी, राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में उत्तराखंड की झांकी में गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब की भव्य प्रतिकृति दिखा कर एक ओमकार का जाप करा दिया, काशी कॉरीडोर के दर्शन राजपथ पर करा दिया! तो इस सबके बाद भला अब चुनावी राज्य के लोगों को क्या चाहिए? दक्षिण के राज्यों में चुनाव नहीं है तो वहां की झांकी दिखाने की जरूरत नहीं है। पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई तो उत्तर प्रदेश से 12 और उत्तराखंड से चार लोगों को पुरस्कार दे दिया। बिहार में चुनाव नहीं है तो वहां से सिर्फ दो लोग चुने गए।
इससे आगे लोगों को जीवन चलाने के लिए क्या चाहिए? सरकार पांच किलो अनाज और एक किलो दाल दे रही है। चुनाव की घोषणा से पहले तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की फोटो वाले पैकेट में एक किलो खाने का तेल भी दिया गया! किसानों के खाते में पांच सौ रुपए की सम्मान राशि डाली जा रही है। घर बनाने के लिए एक लाख रुपए और शौचालय के लिए 12 हजार रुपए की रकम दी जा रही है। इससे आगे लोगों को कुछ और नहीं मांगना चाहिए। नौकरी के लिए आंदोलन कर रहे छात्र देशद्रोही हैं। उनको भरोसा रखना चाहिए कि मुफ्त अनाज, मुफ्त दाल, किसानी के नाम पर पांच सौ रुपए महीने की सम्मान राशि, घर व शौचालय बनाने के लिए पैसे मिलते रहेंगे। स्मार्ट फोन और लैपटॉप भी मिल सकता है। इसलिए वे नौकरी की चिंता छोड़ें, वास्तविक सशक्तिकरण की उम्मीद छोड़ें और भजन गाते रहें!
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