किसानों ने पांच तरफ से दिल्ली को घेर रखा है और अंतरराष्ट्रीय फोकस भी बन गया है। इसलिए भाजपा और केंद्र सरकार को परेशानी हो रही है। परेशानी का कारण राजनीतिक भी है। भाजपा को इस आंदोलन से राजनीतिक नुकसान होता दिख रहा है। पंजाब में तो उसका 22 साल पुराने सहयोगी से तालमेल खत्म हुआ और चुनाव में जो हालत होगी वह अपनी जगह है लेकिन भाजपा को लग रहा है कि हरियाणा में राजनीतिक संकट खड़ा हो सकता है। अगर किसानों का आंदोलन लंबा चलता है और जल्दी समाधान नहीं निकलता है तो हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार मुश्किल में आ सकती है।
पहले हरियाणा के किसानों में आंदोलन नहीं फैला था। इसमें ज्यादातर पंजाब के किसान शामिल थे। तब तक हरियाणा में सरकार या भाजपा को चिंता नहीं थी। पर किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए पंजाब-हरियाणा की सीमा पर हरियाणा सरकार और पुलिस ने जैसी ज्यादती की और जो माहौल बना उससे हरियाणा के किसान भी आंदोलित हुए। उन्होंने खुल कर पंजाब के किसानों का साथ देना शुरू किया और खुद भी आंदोलन का हिस्सा बन गए। धीरे-धीरे पिछले नौ दिन में हरियाणा के लगभग सारे किसान संगठन इस आंदोलन से जुड़ गए हैं और हरियाणा के आम अवाम की सहानुभूति भी किसानों के साथ हो गई है।
तभी राज्य की राजनीतिक पार्टियों, विधायकों और नेताओं के सुर बदलने लगे हैं। भाजपा की खट्टर सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने सरकार से समर्थन से वापस ले लिया है। 10 विधायकों वाली सरकार की सहयोगी जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष अजय चौटाला ने प्रेस कांफ्रेंस करके केंद्र सरकार से कहा है कि वह किसानों की मांगों पर विचार करे और जल्दी से जल्दी इसका समाधान करे। गौरतलब है कि 90 सदस्यों की हरियाणा विधानसभा में भाजपा के अपने 40 विधायक हैं और उसकी सरकार जननायक जनता पार्टी के 10 और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन पर टिकी है। एक एक करके निर्दलीय विधायकों ने सरकार से दूरी बनानी शुरू कर दी है। जजपा के नेता भी मजबूरी में अपने को किसानों का समर्थक बता रहे हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के 40 में से 11 विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में खुद को किसान बताया है। जननायक जनता पार्टी के 10 में से छह विधायक किसान हैं और भाजपा सरकार को समर्थन दे रहे दो निर्दलीय विधायक भी किसान हैं। इन किसान विधायकों के सामने दुविधा है कि वे कैसे किसानों के आंदोलन का समर्थन न करें। पार्टी अनुशासन की वजह से भाजपा के विधायकों ने तो चुप्पी साधी है पर उनको पता है कि वे ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकते हैं। उन्हें देर-सबेर किसान आंदोलन का समर्थन करना होगा। सो, भाजपा के विधायकों में भी अंदरखाने खलबली है और वे चाहते हैं कि सरकार जल्दी से जल्दी मामले को सुलझाए।
राज्य के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा के सामने मुश्किल यह है कि इसका पूरा वोट आधार ही हरियाणा के गांवों में है। भाजपा और कांग्रेस से उलट जजपा का आधार गांव और वहां के जाट किसान हैं। अब इस नई बनी पार्टी के नेताओं को लग रहा है कि अगर उन्होंने गांव और किसान की अनदेखी तो अगला चुनाव जीतना नामुमकिन होगा क्योंकि अंदर अंदर किसानों की एकजुटता कांग्रेस के साथ बढ़ती जाएगी, जिसके पास भूपेंदर सिंह हुड्डा जैसा बढ़ा जाट-किसान चेहरा है। अभी हुड्डा या कांग्रेस ने संकट का राजनीतिक फायदा उठाने का कोई प्रयास शुरू नहीं किया है। उनको पता है कि ऐसा किसी प्रयास से भाजपा अलर्ट होगी। यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस इस संकट का फायदा उठाने की बजाय इस सोच में काम कर रही है कि विधायकों को टूटने दें और सरकार गिरने दें। कांग्रेस मध्यावधि चुनाव की संभावना अपने लिए बेहतर मान रही है। हालांकि यह अभी दूर की कौड़ी है पर इसमें संदेह नहीं है कि भाजपा, जजपा और सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों में बेचैनी बढ़ी है और वे चाहते हैं कि सरकार किसानों की बात मान कर किसी तरह से मामले को सुलझाए। अगर केंद्र सरकार जल्दी ऐसा नहीं कर पाती है तो संकट बढ़ जाएगा।
भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक। ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।
आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।
संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।