वर्ष 2022 ने यह भी साबित किया है कि अब राजनीति का मतलब धन बल और खरीद फरोख्त है। पहली कोशिश मतदाताओं को लालच देकर उनका वोट हासिल करने की है और अगर उसमें सफलता नहीं मिली तो मतदाता, जिनको चुन कर भेजें उनको खरीद लेना ही राजनीति का मूलमंत्र हो गया है। तोड़-फोड़, खरीद फरोख्त, धन बल का इस्तेमाल, लोगों को डराने के लिए कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों का इस्तेमाल आजकल राजनीति का सबसे सफल टूल हैं और जो जितना प्रभावी तरीके से इन टूल्स का इस्तेमाल कर रहा है वह उतना ही सफल नेता है। इन दिनों यह भी ट्रेंड है कि राजनीति में जो जितना धोखा और तिकड़म कर सकता है वह उतना बड़ा चाणक्य है। कोई सबसे बड़ा चाणक्य है, जिसके पास दुनिया की सारी दौलत और ताकत है तो कई छोटे छोटे चाणक्य इधर उधर राज्यों में हैं।
दिल्ली में नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत गई लेकिन भाजपा के नेताओं ने कहा कि मेयर तो उन्हीं का बनेगा और इसे चाणक्य नीति कहा गया। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस जीत गई और कहा जा रहा था कि कांग्रेस अपने विधायक छिपाए नहीं तो भाजपा अपना मुख्यमंत्री बना लेगी, यह चाणक्य नीति है! अरविंद केजरीवाल ने गुजरात के चुनाव में जाकर ऐलान किया कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो बिजली और पानी फ्री में देंगे, हर वयस्क महिला को एक हजार रुपया महीना देंगे और बेरोजगारों को तीन हजार रुपए का भत्ता देंगे और इसे राजनीति का मास्टरस्ट्रोक कहा गया! कांग्रेस पार्टी ने अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातों की परवाह नहीं करते हुए हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की घोषणा तो उसे कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक कहा गया।
साल की शुरुआत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से हुई। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा के चुनाव हुए। सबकी अनोखी कहानी है। दस साल पहले तक उत्तर प्रदेश में राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी किसी अज्ञात कारण से कोमा में चली गई। पार्टी ने न तो चुनाव की अच्छी तैयारी की और न जोर लगा कर चुनाव लड़ा। हर जगह उसने ऐसे उम्मीदवार उतारे, जिनसे मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी को नुकसान हो और भाजपा को फायदा हो। बसपा ने भाजपा को फायदा पहुंचाने का काम क्यों किया, यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। इसी तरह पंजाब में ऐन चुनाव से पहले कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अलग पार्टी बना ली। कांग्रेस ने उनको नौ साल तक पंजाब का मुख्यमंत्री बना कर रखा, लेकिन चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा से तालमेल कर लिया। भाजपा को फायदा हो या नहीं, लेकिन वे भाजपा की मदद करने गए।
चुनाव किस तरह से धनबल का खेल हो गया है यह गोवा में देखने को मिला, जहां दो अलग अलग राज्यों में सरकार चला रही पार्टियों ने पैसे के दम पर दूसरी पार्टियों के नेताओं को तोड़ा और अपना कुनबा बना कर चुनाव लड़ा। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने पूरा दम लगा कर चुनाव लड़ा। बेहिसाब खर्च के बाद दोनों पार्टियों ने मिल कर इतना वोट काट लिया कि कांग्रेस हार जाए और भाजपा जीत जाए। दोनों पार्टियों ने जान बूझकर भाजपा को फायदा पहुंचाया या अनजाने में यह बाद की बात है।
चुनाव जीत कर कई राज्यों में सरकार बनाने के साथ साथ इस साल भाजपा ने एक राज्य में तोड़ फोड़ के जरिए सरकार बनाई। महाराष्ट्र में शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरा कर भाजपा ने अपनी सरकार बनाई है। भाजपा ने अपनी पुरानी सहयोगी शिव सेना के 40 विधायकों को तोड़ कर अलग गुट बनवाया। एकनाथ शिंदे उस गुट का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन परदे के पीछे से सारी कमान भाजपा ने संभाली थी। विधायकों को पहले भाजपा शासित गुजरात में रखा गया। वहां से भाजपा के शासन वाले असम ले जाया गया, जहां पांच सितारा होटल में विधायक टिके। अंत में वहां से भाजपा शासित गोवा ले जाया गया, जहां से विधायक मुंबई पहुंचे। बाद में आरोप लगा कि हर विधायक को 50-50 करोड़ रुपए दिए गए। पता नहीं यह आरोप कितना सच है लेकिन विधानसभा के अंदर यह नारा लगा, ‘50 खोखे एकदम ओके’। महाराष्ट्र में खोखा करोड़ को बोलते हैं।
पूरा साल झारखंड चर्चा में रहा, जहां भाजपा का ऑपरेशन लोटस सफल नहीं हो पाया। कई बार प्रयास होने की खबर आई। पहले महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं का नाम आया और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। तब भी कुछ नकद रुपए पकड़े गए थे। उसके बाद असम भाजपा के सबसे बड़े नेता का नाम आया और कांग्रेस के तीन विधायक करीब 50 लाख रुपए की नकदी के साथ पकड़े गए। कुल मिला कर खरीद फरोख्त की राजनीति सफल नहीं हुई। भाजपा के कथित प्रयासों से बचने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों को छत्तीसगढ़ के एक रिसॉर्ट में रखा गया था। उधर तेलंगाना में भी ऐसा ही किस्सा सामने आया। इस साल दो उपचुनाव हुए और दोनों में दूसरी पार्टियों के विधायकों ने इस्तीफा दिया और भाजपा की टिकट से चुनाव लड़े। एक सीट भाजपा जीत गई औऱ दूसरी हार गई। उसके बाद राज्य में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति के तीन विधायकों को कथित तौर पर खरीदने का प्रयास हुआ। इस मामले में मुकदमा दर्ज हुआ है और उसमें भाजपा के संगठन महामंत्री का भी नाम है। बहरहाल, दिल्ली में मेयर का चुनाव अभी होना है लेकिन इससे पहले चंडीगढ़ में नगर निगम का चुनाव हारने के बाद भी भाजपा ने इधर उधर से पार्षद तोड़ कर अपना मेयर बना लिया था। ऐसे ही राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा के अपने विधायकों को छत्तीसगढ़ ले जाकर छिपाया फिर भी दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके भाजपा समर्थित उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित की।