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मोदी के चेहरे पर सारी राजनीति

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मोदी के चेहरे पर सारी राजनीति
पिछले तीन दशक की राजनीति में भाजपा के सबसे मजबूत क्षत्रपों में नरेंद्र मोदी के बाद जो दूसरा नाम दिखाई देता है वह बीएस येदियुरप्पा का है। कुछ मायने में येदियुरप्पा को मोदी से बड़ा क्षत्रप मान सकते हैं क्योंकि मोदी को गुजरात में बनी बनाई सरकार और हिंदुत्व की प्रयोगशाला विरासत में मिली थी। दिल्ली में भी उनको 114 लोकसभा सांसदों और 10 करोड़ से ज्यादा वोट वाली पार्टी विरासत में मिली थी। लेकिन येदियुरप्पा को कुछ भी विरासत में नहीं मिला था। मौजूदा मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के पिता एसआर बोम्मई जब जनता दल की सरकार के मुख्यमंत्री थे तब कर्नाटक विधानसभा में बीएस येदियुरप्पा भाजपा के इकलौते विधायक थे। उन्होंने वहां से शुरू करके पार्टी को सत्ता में पहुंचाया। लेकिन पिछले दिनों उनको स्थायी तौर पर निपटा दिया गया। बाकी अनेक क्षत्रप भी इसी तरह राजनीति से बाहर किए जा चुके हैं या कर दिए जाएंगे। इसका मकसद भाजपा की पूरी राजनीति को एक चेहरे पर सीमित करना है। (politics on Modi's face) असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की राजनीति को प्रेसिडेंशियल फॉर्म ऑफ पॉलिटिक्स की ओर ले जा रहे हैं, जिसमें सारे चुनाव और पूरी राजनीति उनके चेहरे पर होगी। देश का राष्ट्रपति बनने के लिए भी उम्मीदवार उनके चेहरे पर लड़ेगा और नगर निगम में पार्षद का चुनाव भी भाजपा का कोई नेता उनके ही चेहरे पर लड़ेगा। यह काफी हद तक हकीकत बन गई है। देश के तमाम राज्यों में भाजपा ने नगर निगम का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा है। यानी पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक सारे चेहरे निराकार होंगे। सिर्फ एक चेहरा होगा नरेंद्र मोदी का, जिसके ईर्द-गिर्द भाजपा की पूरी राजनीति घूमेगी। गुजरात का प्रयोग इस राजनीति का एक संकेत है। इसे हर राज्य में देखा जा सकता है। यह भी पढ़ें: गुजरात का जुआ हार वाला! pm modi यह भी पढ़ें: इन मंत्रियों से देश सीखे राज्यों में भाजपा के नेता जिस तरह हर काम का श्रेय प्रधानमंत्री को देते हैं, हर काम उनके नाम की सौगंध से शुरू करते हैं और हर चुनाव उनके नाम पर लड़ते हैं उससे भी यह प्रमाणित होता है कि भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अध्यक्षीय प्रणाली की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यहीं कारण है कि हर तरह से प्रधानमंत्री मोदी की लार्जर दैन लाइफ इमेज बनाने की कोशिश हो रही है। शुक्रवार यानी 17 सितंबर को वे 71 साल के हुए हैं। इस मौके पर पूरे देश में जैसे कार्यक्रम हो रहे हैं वह एक मिसाल है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहते 75 साल के हुए थे तब जरूर विजय गोयल जैसे कुछ नेताओं ने दिल्ली में और कुछ अन्य राज्यों में बड़े कार्यक्रम हुए थे। लेकिन मोदी के 71 साल के होने का जो जश्न है वह अभूतपूर्व है। यह भी पढ़ें: उद्धव और केजरीवाल की पौ बारह! यह इसलिए भी अभूतपूर्व है क्योंकि कोरोना वायरस की महामारी के बीच यह जन्मदिन मनाया जा रहा है। इस साल देश ने जैसी त्रासदी देखी है वह अत्यंत भयावह थी। यही वजह है कि दो महीने पहले तक प्रधानमंत्री मोदी देश के किसी नेता को जन्मदिन की बधाई तक नहीं देते थे। उन्होंने कोरोना त्रासदी से दुखी होकर नेताओं को जन्मदिन की बधाई देनी बंद कर दी थी। जून में उन्होंने राहुल गांधी को भी उनके जन्मदिन की बधाई नहीं दी थी। लेकिन अब महामारी के बीच खुद उनका जन्मदिन पार्टी ऐसे मना रही है, जैसे किसी लोकतांत्रिक नेता की दुनिया के किसी देश में नहीं मनाई गई होगी। पूरे देश में सैकड़ों-हजारों कार्यक्रम हो रहे हैं और ये कार्यक्रम तीन हफ्ते तक चलेंगे। यह प्रधानमंत्री मोदी को सबसे ऊपर स्थापित करने की रणनीति का एक हिस्सा है। सबके मुकाबले एक मजबूत नेता पेश करने की यह राजनीति अभी तक भाजपा के काम आ रही है, लेकिन यह दोधारी तलवार की तरह है, जिसका किसी भी समय नुकसान हो सकता है।
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