गपशप

भारत में बना डालो राष्ट्रपति प्रणाली

Share
भारत में बना डालो राष्ट्रपति प्रणाली
भारत में संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने का समय आ गया है, सोचे किसने कहीं यह बात? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी पार्टी भाजपा के लोगों ने नहीं, बल्कि कांग्रेस के बड़े विचारक नेता शशि थरूर ने लेख लिख कर प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत में अध्यक्षीय शासन प्रणाली अपनाने का समय आ गया है। ऐसा प्रस्ताव उन्होंने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की चुनी हुई सरकार के गिरने के बाद के हालात को देख कर दिया था। असल में मध्य प्रदेश जैसी अस्थिरता कई जगह देखने को मिली। पहले कर्नाटक में भी इसी तरह सरकार के कुछ विधायक टूट गए और सरकार गिर गई। सो, थरूर का सुझाव है कि अमेरिका की राष्ट्रपति प्रणाली की तर्ज पर देश में राष्ट्रपति सीधे चुना जाए और राज्यों में गवर्नर सीधे चुने जाएं। लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव अलग से हो। इस तरह से राजनीतिक अस्थिरता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। शशि थरूर की इस सलाह को मोदीजी को लपक लेना चाहिए। यह सही समय है कि वे संविधान में बदलाव का ऐलान कर दें। भारत को संसदीय प्रणाली की बजाय राष्ट्रपति प्रणाली वाला देश बना दें और राष्ट्रपति का कार्यकाल दस साल के लिए फिक्स कर दें। सोचें, इस समय अगर देश में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो तो मोदीजी के सामने कौन टिकेगा! उनकी टक्कर में कोई नहीं है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को सोशल मीडिया में भक्त लंगूरों ने पप्पू साबित कर दिया है। अब तो खुल कर भाजपा के नेता और समर्थक भी राहुल गांधी को पप्पू कहते हैं। लालू प्रसाद का परिवार चारा चोर का परिवार है, अखिलेश यादव को टोंटी चोर बता दिया गया है, उद्धव ठाकरे का परिवार पेंग्विन परिवार है, बाकी विपक्षी नेता भी इसी तरह से ब्रांड किए गए हैं। व्लादिमीर पुतिन के धुर विरोधी को पता नहीं क्यों जहर देने की जरूरत महसूस की गई, भारत में तो सोशल मीडिया के जरिए नेताओं को ऐसे ही राजनीतिक रूप से समाप्त कर दिया जा रहा है। सो, अभी राष्ट्रपति प्रणाली के तहत चुनाव हो तो मोदीजी आराम से दस-बीस साल के लिए सत्ता हासिल कर सकते हैं। वैसे मोदीजी दिल्ली के तख्त पर बैठने के बाद पहले दिन कह रहे हैं कि देश में एक साथ चुनाव होना चाहिए। लोकसभा से लेकर राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव और यहां तक कि नगर निगम के सारे चुनाव एक साथ होंने चाहिए। यह काम भी उन्हें अभी कर देना चाहिए। राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने के साथ ही लोकसभा और सभी विधानसभाओं को भंग करके एक साथ उनके चुनाव कराने का ऐलान कर देना चाहिए। अगर वे समझाएंगे तो लोग मान लेंगे कि देश के विकास के लिए यह जरूरी है। आखिर लोगों ने नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक को स्वीकार किया ही। यह माना भी कि इससे देश का विकास हो रहा है। छह साल के राज में लोगों ने समझ लिया है कि विकास का मतलब वह नहीं होता है, जो वे मनमोहन सिंह से उम्मीद करते थे। विकास का मतलब अब बदल गया है। करोड़ों लोगों का अलग अलग विकास करने की बजाय अब चुने हुए दो-चार लोगों का विकास कर देना है और वे फिर सभी 138 करोड़ लोगों के विकास की जिम्मेदारी उनको सौंप देनी है। जिस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे तब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने संविधान समीक्षा की पहल की थी। हालांकि तब सरकार के पास बहुमत नहीं था और वह सहयोगी पार्टियों के दबाव में इस एजेंडे को आगे नहीं बढ़ा सकी। अब बहुमत भी है और मनचाहा काम करने की आजादी भी है। देश के लोगों को यह समझा भी दिया गया है कि देश का संविधान विकास के रास्ते में बाधक है। देश का संविधान भारत के हिंदू राष्ट्र बनाने के रास्ते में भी बाधक है। सो, भारत के संविधान की समीक्षा होनी चाहिए और नए तरह से लिखा जाना चाहिए। यह काम भी अभी कर देना चाहिए।
Published

और पढ़ें