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राहुल की मेहनत मजबूरी में

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राहुल की मेहनत मजबूरी में
नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल अपनी महत्वाकांक्षा से निर्देशित होते हैं। मोदी प्रधानमंत्री बन गए हैं तो उनको पीएम के पद पर अनंतकाल तक बने रहना है वही केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद हासिल करना है। इसके उलट राहुल गांधी के किसी भी कदम से या बातचीत से जाहिर नहीं हुआ कि वे प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते है। उलटे वे सत्ता को जहर बता चुके हैं। वे केंद्र सरकार में मंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा चुके हैं। प्रधानमंत्री बनने का अवसर भी छोड़ चुके हैं। यह बड़ा और बुनियादी फर्क है। अगर सत्ता की चाह नहीं है और बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं है तो तय है कि राहुल गांधी न वैसी राजनीति कर सकते हैं, जैसी मोदी और केजरीवाल कर रहे हैं और न उतनी मेहनत कर सकते हैं, जितनी ये दोनों करते हैं। राहुल में वह किलिंग इंस्टिंक्ट नहीं है जो मोदी व केजरीवाल दोनों की ताकत है। यदि राहुल गांधी को मेहनत की कसौटी पर ही जांचे तो वह कांग्रेस और राहुल दोनों की मजबूरी दिखाती है। सोचें, राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा से क्या मैसेज बनवा रहे हैं? उनकी इस यात्रा के दो मैसेज हैं। पहला, वे नफरत मिटाने, भाईचारा व प्रेम बढ़ाने और देश को एक करने निकले हैं। दूसरा, वे सत्ता की तानाशाही से डरते नहीं हैं। अब ये दोनों बातें ऐसी हैं, जो राहुल पिछले आठ साल से कह रहे हैं। संसद के भीतर जब वे अपनी सीट से उठ कर गए थे और प्रधानमंत्री मोदी को गले लगाया था तब भी उन्होंने नफरत मिटाने और प्रेम बढ़ाने का मैसेज दिया था। इसलिए वे अपनी यात्रा में कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। नया यह है कि वे पैदल चल रहे हैं। उनकी दाढ़ी बढ़ी है। वे जनता के बीच हैं और लोगों से मिल रहे हैं। ध्यान रहे कांग्रेस ने उनको अपना सर्वोच्च नेता माना हुआ है या अध्यक्ष रहते सोनिया गांधी ने उनको पार्टी का सर्वोच्च नेता बनवा दिया। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी अभी तक कांग्रेस को अपने लिए खतरा मानती रही है इसलिए उसने अपने हल्ले, मीडिया से राहुल गांधी की इमेज एक कमजोर, ढीले ढाले व कुछ हद तक कमअक्ल नेता की बनवाई। प्रचारित किया गया कि वे रिलक्टेंट नेता हैं। यानी उन्हे जबरदस्ती राजनीति में उतारा गया। वे एक स्वाभाविक नेता नहीं हैं। प्रचारित किया गया कि वे राजनीति करना नहीं चाहते हैं। उनको राजनीति समझ में भी नहीं आती। सोचे, एक तरफ उनको पार्टी का सर्वोच्च नेता बना दिया गया तो दूसरी ओर उनके बारे में जनता में कमजोर नेता की धारणा।  तभी कांग्रेस की मजबूरी है कि वह राहुल गांधी की छवि बदलने के लिए कुछ बड़ा कार्यक्रम करे। उस मजबूरी में भारत जोड़ो यात्रा है।
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