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चौतरफा जय जियो, जय जियो!

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चौतरफा जय जियो, जय जियो!
क्या किसी को 2जी संचार घोटाले की याद है? देश के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक ने बताया था कि 2जी स्पेक्ट्रम के मनमाने आवंटन से सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस कथित घोटाले के सारे आरोपी सीबीआई की विशेष अदालत से बरी हो चुके हैं। इस समय उस मामले की याद दिलाने का मकसद यह है कि आज से महज छह-सात साल पहले भारत में एक दर्जन संचार कंपनियां थीं, जो देशी-विदेशी तालमेल से मोबाइल कम्युनिकेशन और डाटा की सुविधा देती थीं। तब भारत में यूनिनॉर, एमटीएस, एयरसेल, टाटा डोकोमो, रिलायंस, एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया, बीएसएनलए, एमटीएनएल जैसे अनेक कंपनियां थी, जो संचार और डाटा की सेवा दे रही थीं। पर आज सिर्फ तीन निजी कंपनियां- रिलायंस जियो, एयरटेल और आइडिया-वोडाफोन बचे हैं। इनमें से एक कंपनी आइडिया-वोडाफोन की किस्मत सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लिखी जा चुकी है और कंपनी का दिवालिया होना महज वक्त की बात है। बीएसएनएल और एमटीएनएल की कहानी भी भारत सरकार की ओर से दिए गए पैसे से आगे बढ़ रही है। सारी निजी कंपनियां कैसे बंद हो गईं, यह अलग चर्चा का विषय है पर मौजूदा दोनों निजी और सरकारी कंपनियां कैसे इस हालत में पहुंची हैं यह जानना दिलचस्प है। केंद्र सरकार ने संचार कंपनियों के खिलाफ एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी एजीआर की वसूली का मुकदमा किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के लगाए हिसाब को मान कर सारी कंपनियों को पैसा चुकाने को कहा। इसमें वोडाफोन-आइडिया को 53 हजार करोड़ रुपए चुकाने हैं। पहले से ही दिवालिया होने की ओर बढ़ रही यह कंपनी इतना पैसा नहीं चुका सकती है। पैसा चुकाना एयरटेल के लिए भी मुश्किल है और उसके ऊपर भी 40 हजार करोड़ रुपए चुकाने का दबाव है। तभी पिछले कुछ समय से दोनों के ग्राहक लगातार टूट रहे हैं और इसका फायदा रिलायंस जियो को हो रहा है। रिलायंस जियो चूंकि 2016 में बनी कंपनी है इसलिए उसका एजीआर बहुत कम बना, जिसका उसने भुगतान कर दिया है। पर असली कहानी यहीं पर है। मुकेश अंबानी ने चार साल पहले अपने भाई अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम खरीदी थी। उस समय आरकॉम को देश के 17 सर्किल का स्पेक्ट्रम मिला हुआ था, जिसकी मदद से रिलायंस जियो ने अपनी 4जी सेवा का विस्तार किया। किसी भी सौदे में हमेशा ऐसा होता है कि खरीददार को सारी देनदारियां चुकानी होती हैं। पर मुकेश अंबानी अपने भाई की कंपनी की देनदारी चुकाने को तैयार नहीं हैं। हकीकत यह है कि अगर उस समय़ उनको आरकॉम के स्पेक्ट्रम नहीं मिले होते तो दिल्ली, मुंबई से लेकर बंगाल तक उनकी 4जी सेवा ठीक से नहीं चल पाती। उन्होंने आरकॉम के स्पेक्ट्रम का फायदा उठा कर अपनी सेवा चलाई। उस समय अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम के ऊपर 25 हजार करोड़ रुपए का एजीआर बकाया था। कायदे से 2016 में कंपनी खरीदने के बाद ही मुकेश अंबानी को वह रकम चुका देनी चाहिए थी पर किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब सुप्रीम कोर्ट भी सीधे आदेश देने की बजाय सरकार से पूछ रही है कि मुकेश अंबानी को अनिल अंबानी की कंपनी का एजीआर चुकाना चाहिए या नहीं। जिस तरह से सर्वोच्च अदालत ने बाकी कंपनियों के लिए आदेश दिया है वैसा ही आदेश अगर रिलायंस जियो के लिए नहीं दिया गया तो जियो से आरकॉम का बकाया वसूलना मुश्किल होगा क्योंकि सरकार तो उसके प्रति हमेशा नरम ही रही है। इस एजीआर के आदेश के बाद से यह कयास लगाया जा रहा है कि अब सिर्फ दो ही निजी कंपनियां होगीं एक रिलायंस जियो और दूसरी एयरटेल। उसमें भी एयरटेल का क्या भविष्य होगा कहा नहीं जा सकता है। संचार पर इस मोनोपॉली का किन किन सेवाओं पर कैसे असर होगा वह अलग से देखने की बात है। एजीआर के जरिए निजी कंपनियां तो निपट गईं पर उससे पहले बहुत होशियारी से देश की अपनी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड, बीएसएनएल को निपटाया गया। इसके लिए दो काम किए गए। पहला काम तो यह किया गया तो बीएसएनएल को 4जी में अपग्रेड करने की इजाजत नहीं दी गई। क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि जहां आज दुनिया 5जी की ओर जा रही है वहीं भारत की सरकारी संचार कंपनी 4जी में भी अपग्रेड नहीं हुई है? अभी बीएसएनएल ने खुद को अपग्रेड करना शुरू किया था तो स्वदेशी राष्ट्रवाद के हल्ले में कहा गया कि चीन से उपकरण मंगा कर अपग्रेड नहीं करना है। सो, बीएसएनएल का यह प्रयास भी रूक गया है। इससे पहले 2017 में सरकार ने बीएसएनएल के टावर के कारोबार को कंपनी से अलग कर दिया। उसके लिए अलग से कंपनी बना दी गई। सोचें, बीएसएनएल ने बड़ी पूंजी का निवेश करके 66 हजार टावर देश भर में लगवाए थे, जिसमें तीन चौथाई से ज्यादा फाइबर ऑप्टिक केबल से जुड़े थे। सरकार ने एक झटके में मुनाफा कमाने वाले इस कारोबार को बीएसएनएल से अलग कर दिया। ध्यान रहे बीएसएनएल के सबसे ज्यादा 29 सौ टावर रिलायंस जियो ने किराए पर लिए थे और आज यह स्थिति है टावर की सेवा देने वाली कंपनियों का डेढ़ हजार करोड़ रुपया बीएसएनएल पर ही बकाया हो गया। अपग्रेड नहीं होने और टावर व दूसरे बुनियादी ढांचे के किराए की वजह से बीएसएनएल का धीरे धीरे भट्ठा बैठता गया।
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