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अमेरिकी संस्थाओं को सलाम

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अमेरिकी संस्थाओं को सलाम
अमेरिकी कांग्रेस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुई वोटिंग के आधार पर इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों के सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जॉर्जिया राज्य के अपनी पार्टी के एक मंत्री को फोन किया, जो राज्य में चुनाव का प्रभारी भी है। जॉर्जिया के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ब्रैड राफेनस्पर्गर को ट्रंप ने फोन किया और करीब एक घंटे तक बातचीत की। जॉर्जिया वह राज्य है, जहां ट्रंप सिर्फ 11,870 वोट से हारे हैं। उनको 24 लाख 61 हजार 854 वोट मिले हैं, जबकि जो बाइडेन को 24 लाख 73 हजार 633 वोट मिले हैं। दशकों बाद ऐसा हुआ कि जॉर्जिया में किसी डेमोक्रेट उम्मीदवार को जीत मिली। ट्रंप चाहते थे कि उनके राज्य सरकार के मंत्री और चुनाव के प्रभार ब्रैड चुनाव नतीजों को बदलने में उनकी मदद करें। ट्रंप ने उनसे कहा कि उनको सिर्फ 11,870 वोट की जरूरत है। अगर इतने वोट ट्रंप को मिल जाते तो इलेक्टोरल कॉलेज के सभी 16 वोट उनके हो जाते। लेकिन सोचें, राष्ट्रपति की पार्टी के एक राज्य सरकार के मंत्री ने न सिर्फ राष्ट्रपति की बात ठुकरा दी, बल्कि इस बातचीत को सार्वजनिक भी कर दिया। उन्होंने राष्ट्रपति के मुंह पर उनको मना करते हुए कहा कि वे गलत सोच रहे हैं। ब्रैड ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप अफवाहों पर भरोसा कर रहे हैं। न वोटिंग में कोई गबड़बड़ी हुई है और न वोट गिनने की प्रक्रिया में। उन्होंने कहा- एक रिपब्लिकन होने के नाते उनको नतीजों से खुशी नहीं है, लेकिन वे दावे के साथ कह सकते हैं कि नतीजे गलत नहीं हैं। नतीजे वहीं हैं, जो लोगों ने वोट किया और हमने गिना। बाइडेन की जीत पूरी तरह से सही है। सोचें, भारत में कितनी संस्था या उनके शीर्ष पर बैठे लोग हैं, जिनसे ऐसी ईमानदारी और बेबाकी की उम्मीद की जा सकती है। सिर्फ जॉर्जिया का चुनाव ऑफिस इकलौता ऑफिस नहीं है, जिसने ऐसी ईमानदारी और बेबाकी दिखाई। अमेरिका की लगभग सभी संस्थाओं ने ऐसी ही बेबाकी दिखाई। माना जा रहा था कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में रिपब्लिकन जजों का बहुमत है और चुनाव से ठीक पहले एक जज के निधन के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी पसंद का जज नियुक्त किया था। इसके बावजूद नतीजों को चुनौती देने वाली ट्रंप की याचिका सुप्रीम कोर्ट में जाते ही खारिज हो गई। ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने कई राज्यों में चुनाव नतीजों को चुनौती दी, कहीं गिनती दोबारा करवाई तो कहीं मेल इन वोट्स यानी बैलेट पेपर्स से मिले वोट को रद्द करने की याचिका दी। जॉर्जिया, पेन्सिलवेनिया आदि ऐसे राज्य हैं, जहां ट्रंप को झटका लगा। रिपब्लिकन पार्टी के असर वाले इन राज्यों में हार ट्रंप के लिए बड़ा झटका था। इसलिए उन्होंने इन राज्यों की अदालतों में याचिका दी लेकिन किसी अदालत ने उनका साथ नहीं दिया। हर अदालत ने राज्य के चुनाव अधिकारियों की बात सुनी और ट्रंप की पार्टी की याचिका खारिज कर दी। अंत में ट्रंप ने अपने उप राष्ट्रपति और इस चुनाव में भी अपने रनिंग मेट माइक पेंस को कहा कि वे सीनेट के सभापति के नाते वोटों के सर्टिफिकेशन में धांधली करें और बाइडेन को हरवाएं। पर पेंस ने साफ तौर से मना कर दिया। वे दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली उच्च सदन यानी सीनेट में सभापति के आसन पर बैठे और पूरी ईमानदारी से वोटों का सर्टिफिकेशन कराया और अंत में बाइडेन की जीत का ऐलान किया। यहां तक कि अमेरिका और भारत में निजी कंपनियों का आचरण भी अलग अलग होता है। अमेरिका में माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने हिंसा फैलते ही राष्ट्रपति ट्रंप का एकाउंट ब्लॉक कर दिया। इसे 12 घंटे के लिए ब्लॉक करते हुए कहा गया कि अगर वे इसी तरह के ट्विट करते हैं तो हमेशा के लिए उनका एकाउंट ब्लॉक कर दिया जाएगा। फेसबुक ने ट्रंप का एकाउंट दो महीने के लिए ब्लॉक कर दिया। इंस्टाग्राम ने भी ट्रंप का एकाउंट बंद कर दिया है। जबकि ये ही संस्थाएं भारत में सरकार या सत्तारूढ़ दल के सामने सिर झुका लेती हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि कैसे फेसबुक की पॉलिसी डायरेक्टर ने हिंदुवादी संगठनों के पोस्ट को डिलीट करने और कार्रवाई करने की बजाय उन्हें चलने दिया था। एक दूसरी रिपोर्ट से पता चला है कि ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हिंदुवादी संगठनों की पोस्ट इसलिए नहीं हटाते हैं कि उनको कार्रवाई का खतरा होता है। एक दिलचस्प किस्सा डोनाल्ड ट्रंप अब भी अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और 20 जनवरी को बाइडेन के शपथ लेने के समय तक वे पूरे अधिकार के साथ राष्ट्रपति हैं। सो, यह सवाल उठा कि जिस तरह की हिंसा उन्होंने कैपिटल हिल में कराई है क्या वे नतीजों को पलटने के लिए इससे भी बड़ा कुछ कर सकते हैं? क्या वे दुनिया में परमाणु युद्ध छेड़ सकते हैं? ध्यान रहे अमेरिका का न्यूक्लियर कोड अब भी उनके पास है। तभी यह सवाल है कि क्या वे रूस या मध्य पूर्व के किसी इस्लामी देश के ऊपर परमाणु हमले का आदेश दे सकते हैं? इस सवाल का जवाब एक दिलचस्प किस्से में छिपा है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर थे रिचर्ड न्यूसटैड, जो वहां अस्सी के दशक में अमेरिका की राष्ट्रपति प्रणाली और राष्ट्रपतियों के बारे में एक कोर्स पढ़ाते थे। वे इस विषय के विशेषज्ञ थे क्योंकि वे हैरी ट्रूमैन और लिंडन बी जॉनसन के साथ राष्ट्रपति भवन में डोमेस्टिक पॉलिसी एडवाइजर के तौर पर काम कर चुके थे। वे अपनी क्लास में एक सच्ची कहानी सुनाया करते थे। उन्होंने अपने छात्रों को बताया- एक बार लिंडन बी जॉनसन ने अपने सहयोगियों से कहा, मैंने रात एक सपना देखा। सपने में मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, रक्षा मंत्री, ज्वाइंट चीफ्स और दूसरे अधिकारियों को बुलाया और कहा कि अब बहुत हो गया, अब रूस पर परमाणु हमला करते हैं। इसके बाद वे चुप हो गए। रिचर्ड न्यूसटैड ने उनसे पूछा- आगे क्या हुआ मिस्टर प्रेसीडेंट? जॉनसन ने कहा- आगे की बात ही तो मुझे चिंता में डाल रही है, सबने मिल कर टेबल उलट दी और कहा- भाड़ में जाओ मिस्टर प्रेसिडेंट! सो, कैसा भी सिरफिरा राष्ट्रपति हो, अमेरिकी संस्थाएं, नेता, अधिकारी और वहां के लोग उसे एक सीमा से आगे मनमानी नहीं करने दे सकते।
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