Leaders of the BJP केंद्र सरकार और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की तरह राज्यों में भाजपा के नेता अलग परेशान हैं। खास कर ऐसे नेता, जिनका जमीनी आधार नहीं है या जो केंद्रीय नेतृत्व की कृपा से कुर्सी पर बैठे हैं। पिछले छह महीने में तीन मुख्यमंत्री बदले जाने का नतीजा यह हुआ है कि भाजपा के क्षत्रपों का आत्मविश्वास हिला है। भाजपा ने पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया और फिर उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाए तीरथ सिंह रावत को भी हटाया। उधर कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को बदल कर उनकी जगह नया मुख्यमंत्री बनाया गया। अब चर्चा है कि दो-तीन और राज्यों में भाजपा अपने मुख्यमंत्री बदल सकती है। सो, सारे मुख्यमंत्रियों की चिंता बढ़ी है। कामकाज के बारे में बनी धारणा बदलने के लिए प्रधानमंत्री ने एक दर्जन केंद्रीय मंत्रियों को हटाया। कई दिग्गज मंत्रियों को हटा दिया गया और इधर-उधर के अनाम चेहरे दिल्ली में लाकर बैठाए गए। इससे पार्टी के कई बड़े नेताओं की चिंता बढ़ी है।
उधर राज्यों में अपने संकट हैं, जिनसे पार्टी के क्षत्रप नेता परेशान हुए हैं। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब पहले तो हटाए जाने की अटकलों से चिंता में थे और इसी बीच चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की टीम तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करने अगरतला पहुंच गई। मुख्यमंत्री इससे इतने परेशान हुए कि उनकी पुलिस ने प्रशांत किशोर की टीम आई-पैक के 23 सदस्यों को होटल में बंद कर दिया। हालांकि उनको बाद में अदालत से अग्रिम जमानत भी मिल गई और उन्होंने काम भी शुरू कर दिया। पर इस मामले में राज्य सरकार एक्सपोज हो गई। मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने इस बारे में कहा कि 15 अगस्त नजदीक आ रहा है इसलिए पुलिस बाहर से आने वालों पर नजर रख रही है और जांच कर रही है कि कौन कहां से आया। दूसरी ओर पुलिस ने कहा कि कोरोना वायरस को लेकर लागू दिशा-निर्देशों के वजह से आई-पैक के लोगों को क्वरैंटाइन किया गया। ध्यान रहे प्रदेश भाजपा के विधायकों में आधा दर्जन विधायक ऐसे हैं, जो कांग्रेस से वाया तृणमूल कांग्रेस भाजपा में गए हैं। तृणमूल कांग्रेस इन विधायकों को पटाने में लगी है। दो साल बाद होने वाले चुनाव से पहले ममता बनर्जी की पार्टी की गतिविधियों ने प्रदेश भाजपा नेतृत्व की नींद उड़ाई है।
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उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और उससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई तरफ से घिरे दिख रहे हैं। पहले पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ संबंध बिगड़े होने की खबरें आईं। जैसे तैसे उसको सुलझाया लेकिन सब कुछ ठीक हो गया नहीं दिख रहा है। पिछले दिनों बिहार भाजपा के सहयोगी और राज्य सरकार में शामिल मंत्री मुकेश साहनी अपनी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी का कार्यक्रम करने उत्तर प्रदेश पहुंचे तो प्रशासन ने उनको हवाईअड्डे पर ही रोक लिया। उनकी पार्टी का दावा है कि उनके साथ मारपीट की गई और वापस भेज दिया गया। क्या मुख्यमंत्री मान रहे हैं कि मुकेश साहनी की पार्टी मल्लाह वोट में सेंध लगा सकती है? मल्लाहों के नेता संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया है, जिससे वे अलग नाराज हैं। किसी साजिश के तहत मुकेश साहनी को यूपी भेजे जाने की खबरें भी इधर-इधर सुनाई दे रही हैं। भाजपा के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर अलग हो गए हैं और भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। यह सब पूर्वांचल में हो रहा है और उधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों ने सरकार और भाजपा को मुश्किल में डाला हुआ है।
प्रादेशिक क्षत्रप तेवर अलग दिखा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने ऐसे तेवर दिखाए कि उनके आगे पूरी पार्टी और संघ का संगठन नतमस्तक हुआ। उन्होंने दिल्ली से भेजे गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी आईएएस अधिकारी को मंत्री नहीं बनाया और अभी तक मंत्रिमंडल का विस्तार भी नहीं किया है। करेंगे या नहीं यह भी तय नहीं है। इसी तरह कर्नाटक में येदियुरप्पा हटे जरूर पर उन्होंने पार्टी को मजबूर किया कि उनकी पसंद के नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए। असम में भी भाजपा को मजबूरी में ही कांग्रेस से आए हिमंता बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अपने हिसाब से राजनीति कर रहे हैं।
Leaders of the BJP
घबराहट में भाजपा के प्रदेश नेता
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