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दुनिया के नेता भी ऐसा ही कर रहे हैं!

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दुनिया के नेता भी ऐसा ही कर रहे हैं!
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और पिछले छह साल से प्रधानमंत्री के रूप में अगर पूछा जाए कि मोदीजी का सबसे अच्छा दोस्त कौन है तो जवाब होगा- शी जिनफिंग। चीन के इस राष्ट्रपति से मोदी जी की कोई दर्जन भर मुलाकातें हुई हैं। वुहान से लेकर मल्लापुरम तक और बीजिंग से लेकर अहमदाबाद में साबरमती के रिवर फ्रंट तक। हर बार दोनों के बीच की शानदार केमिस्ट्री दिखी है। शी जिनफिंग के बाद मोदीजी के दोस्तों में दूसरे नंबर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आते हैं। उनके लिए हाउडी मोदी कार्यक्रम करने नरेंद्र मोदी अमेरिका के ह्यूस्टन गए तो ट्रंप भी नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के लिए भारत आए। दोस्ती के दर्जे के लिहाज से तीसरे दोस्त व्लादिमीर पुतिन हैं, जिनके साथ मोदीजी रूस के सोचि में अनौपचारिक मुलाकात कर चुके हैं और दोनों में कई और औपचारिक मुलाकातें भी हुई हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोआन दोस्त नहीं हैं पर दोनों की राजनीति काफी मिलती-जुलती है। बहरहाल, अनौपचारिक संबंधों के लिहाज से जो तीन सबसे खास दोस्त हैं उनमें से दो ने तो अपनी सत्ता स्थायी बना ली है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2036 तक के लिए अपनी सत्ता स्थायी बनवा ली है। उन्होंने देश में एक जनमत संग्रह कराया, भले दुनिया भर के लोग कहते रहें कि यह दिखावा था या इसमें गड़बड़ी हुई या एक हफ्ते तक चले इस जनमत संग्रह में सिर्फ 66 फीसदी लोगों ने हिस्सा लिया या ऑनलाइन वोटिंग में गड़बड़ियां हुईं, पर इन सबके बावजूद रूस की जनता ने उनको अगले 16 साल के लिए अपना शासक चुन लिया है। इससे पहले भी उन्होंने संविधान के प्रावधानों का इस्तेमाल कर जैसे अपनी सत्ता बनाई उसकी मिसाल भी कम ही हैं। संविधान के मुताबिक वे पहले राष्ट्रपति रहे, फिर टर्म पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री बन गए और अपने एक खास आदमी को राष्ट्रपति बना दिया, फिर संविधान में बदलाव करके प्रधानमंत्री के हाथ में सारी ताकत दी और फिर जब राष्ट्रपति बने तो सारी ताकत अपने हाथ में ले ली। और अब तो स्थायी शासक बन ही गए हैं। रूस की जनता उनसे खुश है। इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है एक जासूस की लंदन में जहर देकर हत्या कर दी गई और सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी को भी जहर दे दिया गया था, वह तो भला हो जर्मनी में इलाज का जो उनकी जान बच गई। इस तरह सत्ता स्थायी बनाने की शुरुआत शी जिनफिंग ने की थी। मार्च 2018 में उन्होंने अपने को आजीवन चीन के राष्ट्रपति के तौर पर स्थापित किया। हालांकि शुरुआत तो उन्होंने 2013 में राष्ट्रपति बनने से पहले ही कर दी थी, जब उन्होंने पार्टी की स्थायी समिति के सदस्यों की संख्या नौ से सात कर दी और सिर्फ अपने करीबी लोगों को उसमें नियुक्त कर दिया। पर मार्च 2018 में उन्होंने दो-तिहाई बहुमत से संविधान में संशोधन करा कर दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं चुने जाने के प्रावधान को खत्म करा दिया। अगर यह प्रावधान रहता तो शी जिनफिंग 2023 में रिटायर हो जाते। पर उन्होंने यह गुंजाइश खत्म करा दी है। अब वे अनगिनत कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति रह सकते हैं। पार्टी या देश में उनका कोई विरोध नहीं है। 2013 में भी जब वे पहली बार नेता चुने गए थे तब भी नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में उनके समर्थन में 2,952 लोगों ने वोट किया था, तीन लोग गैरजाहिर थे और सिर्फ एक व्यक्ति ने विरोध में वोट किया था। इसलिए उनकी सत्ता निष्कंटक है। वे जब तक जीवित रहेंगे तब तक राष्ट्रपति रह सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जरूर पुतिन और शी से ईर्ष्या हो रही होगी कि वे उनकी तरह अपनी सत्ता स्थायी नहीं कर सकते हैं। पर उन्होंने यह संकेत दे दिया है कि दूसरा कार्यकाल हासिल करने के लिए कुछ भी करेंगे। उन्होंने देश के चुनाव को विवादित बना दिया है और यह संकेत भी दे दिया है कि अगर हार गए तब भी आसानी से कुर्सी से हटेंगे। उन्होंने इसके लिए मेल इन वोटिंग में गड़बड़ी की आशंका जताई है और अपने कार्यकारी आदेश से जो कुछ भी हो सकता है वह उन्होंने किया है ताकि डेमोक्रेटिक पार्टी को नुकसान पहुंचाया जा सके, उसके समर्थकों को वोट देने से रोका जाए या उनके वोट को विवादित बना दिया जाए। परंतु अमेरिका दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र है और वहां संस्थाएं ट्रंप के चार साल के राज के बावजूद स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन ने संसदीय शासन प्रणाली को राष्ट्रपति शासन प्रणाली में बदल देने का रास्ता दिखाया है। वे 2003 से 2014 तक तुर्की के प्रधानमंत्री थे। लेकिन हमेशा उनकी कोशिश थी कि किसी तरह से संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली में बदल दें। उन्होंने देश की धुर दक्षिणपंथी पार्टियों के साथ मिल कर 2017 में जनमत संग्रह के जरिए देश का संविधान बदल दिया और संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली बना दिया। इस नई व्यवस्था के तहत 2018 में चुनाव हुआ, जिसमें एर्दोआन फिर से राष्ट्रपति चुन लिए गए। अब वे तुर्की को पुराने गौरवशाली इतिहास की याद दिलाते हुए आधुनिक तुर्की को पुराने ऑटोमन साम्राज्य में बदल देने की राजनीति कर रहे हैं। वे सऊदी अरब और पाकिस्तान की जगह तुर्की को दुनिया भर के  मुसलमानों का मसीहा बनाने के काम में लगे हैं। एक तरह से उन्होंने भी अपनी सत्ता स्थायी बना ली है।
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