बेबाक विचार

तीन घटनाएं, सत्य एक!

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तीन घटनाएं, सत्य एक!
इस सप्ताह तीन ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे फिर साबित हुआ कि भारत में सब कुछ रामभरोसे है। दिल्ली की सर्वशक्तिमान सत्ता और तंत्र का कोई अर्थ नहीं है। कभी भी कोई सर्वशक्तिमान हादसे में मर सकता है। कभी भी कहीं लोग अपने ही सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री अपने को कितना ही महाबली समझे मगर वोट व सत्ता के खातिर सब सरेंडर! तभी भारत की व्यवस्था, सत्ता का बाहुबल और सर्वाधिक संगठित-सुरक्षित संस्था सेना की दुरुस्ती इस सप्ताह विचारणीय है। जवाब में यही लगेगा कि क्या करें होना था सो हो गया! सैनिकों ने गलतफहमी में गोलियां चलाईं। क्या करें हादसा हो गया! क्या करें किसानों को समझा नहीं पाए! इस किंकर्तव्यविमूढ़ता में आप एक के बाद एक ढेरों घटनाओं को जोड़ सकते हैं। क्या करें चीन का? क्या करें पाकिस्तान का? क्या करें महंगाई का? क्या करें बेरोजगारी का? महामारी है तो मौत, ऑक्सीजन, बरबाद आर्थिकी में भला कोई क्या कर सकता है? Three events one truth Read also हादसाः जो रामजी की इच्छा! इस सप्ताह की तीन घटनाओं में सर्वाधिक गंभीर मसला उत्तर-पूर्व के राज्यों का है। दो कारणों से। एक, चीन लद्दाख से ज्यादा उत्तर-पूर्व के राज्यों पर फोकस बनाए हुए है। वह सिक्किम से ले कर अरूणाचल प्रदेश से सटी अपनी सीमा में सर्वाधिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है। दो, असम, त्रिपुरा, बांग्लादेश की सीमा के इलाकों में मुसलमानों को भड़काने का प्रोपेगेंडा जबरदस्त चल रहा है। इसलिए इस सिनेरियो पर गौर करें कि चीन और मुस्लिम खुन्नस ने यदि पश्चिम बंगाल से अरूणाचल प्रदेश में अस्थिरता की कभी ठानी तो भारत राष्ट्र-राज्य पर कैसी मुसीबत आएगी।  इसलिए ऊपर से भले लगे कि उत्तर-पूर्व पर मोदी सरकार, भाजपा का राजनीतिक वर्चस्व है। आठ राज्यों की 24 लोकसभा सीटों में भाजपा की 19 सीटें और विधायकों की 498 सीटों में 350 सीटें भाजपा-एनडीए की हैं। लेकिन नगालेंड, मिजोरम, त्रिपुरा, असम, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम सभी पर या तो चीन की नजरें गड़ी हुई हैं या मुस्लिम आबादी और जनजातीय समूह मन ही मन भड़कते हुए हैं। Read also पूर्वोत्तर इतना अशांत कैसे? तभी अर्धसैनिक बल के सैनिकों की गोलियों से नगालैंड में निहत्थे आम लोगों का मरना पूरे इलाके में उग्र जनजातीय समूहों में आग सुलगाने जैसा है। इससे पहले असम और मिजोरम की सीमा पर दोनों प्रदेशों की पुलिस और फिर लोगों द्वारा पुलिसजनों के मारने की जैसी घटनाएं हुईं उन्हें हादसा नहीं माना जा सकता है, बल्कि वे लापरवाही और रामभरोसे वाली वारदातें हैं। असम के साथ कई राज्यों की सीमा के झगड़े निश्चित ही पुराने हैं लेकिन इन झगड़ों पर पुलिसजनों-नागरिकों का आपस में भिड़ना और घटना को चुपचाप आई-गई होने देना भविष्य के लिए बहुत घातक है। सोचें, हाल में त्रिपुरा में जैसी हिंसा और दंगे हुए उसका असर क्या सीमा पार बांग्लादेश में, पश्चिम बंगाल की सीमावर्ती मुस्लिम आबादी पर नहीं हुआ होगा? इस पर केंद्र सरकार में कौन सोचता हुआ है? क्या दिल्ली की सत्ता में इस वक्त उत्तर-पूर्व को संभालने वाला कोई है? अधिकांश राज्यों में भाजपा ने कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों के नेताओं का दलबदल करा कर उनसे अपने ब्रांड की सत्ता बनाई है। ये दलबदलू नेता व मुख्यमंत्री अपनी मनमानी करते हुए हैं। उतर-पूर्व के कांग्रेस व मोदी राज का फर्क यह है कि कांग्रेस की अपनी जड़ें थीं। वह छोटी-छोटी पार्टियों के बीच या उनके साथ जमीनी राजनीति करते हुए थी। केंद्र से कांग्रेस का एक नेता मसलन राजेश पायलट या मणिशंकर अय्यर प्रभारी के नाते नजर रखता था। जबकि मौजूदा वक्त में मोदी-शाह ने उत्तर-पूर्व को एक तरह से कांग्रेस से आए असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा के सुपुर्द कर रखा है। उनकी प्राथमिकता केवल और केवल सत्ता है। Read also ज्यादा हिंदू साबित करने में लगे हिमंता तो किसे फुरसत है अर्धसैनिक बल के सैनिकों के हाथों नगालैंड में नागरिकों की हुई हत्या के जनमानस पर प्रभाव पर विचार करने की? किसे फुरसत है त्रिपुरा में हुई हिंसा के दीर्घकालीन असर को लेकर सोचने की? किसे फुरसत है असम-मिजोरम की सीमा पर हुए टकराव के घावों पर एक्शन की? किसे फुरसत है अरूणाचल प्रदेश के भीतर घुस कर चीनी निर्माण की चर्चाओं को गंभीरता से लेने की? तभी सत्य एक और अकेला है कि सब राम भरोसे! सो हादसे भी होने हैं।
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