बेबाक विचार

भारतः ये दो साल!

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भारतः ये दो साल!
मई 2019 में नरेंद्र मोदी की दुबारा शपथ से पूर्व मैंने लिखा था- आज सवा सौ करोड़ लोगों के साथ में भी उस विमान में बैठा हूं, जिसके कप्तान नरेंद्र मोदी और उप कप्तान अमित शाह की कप्तानी में मेरी नियति बंधी है। तभी हम सबको, सवा सौ करोड़ लोगों को नए पांच साला सफर के टेकऑफ के लिए प्रार्थना करनी चाहिए कि यात्रा मंगलमय हो। मेरी और जिनकी भी जो आंशकाएं थी या हैं वह गलत साबित हों। अगले पांच साल दुनिया जाने कि हिंदुओं को वैश्विक सभ्य समाजों जैसा राज करना आता है। इसके लिए मैं कुर्सी की बेल्ट बांध छह महीने तक चुपचाप बैठे रहने की कोशिश करूंगा। मन ही मन प्रार्थना करूंगा कि टेकऑफ सही हो और सभी का पायलट के प्रति विश्वास बना रहे (24 मई 2019)।

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मगर कुछ दिन बाद मुझे लॉरेंस फरलिंगटन की कविता पढ़ने को मिली और उसका हिंदी अनुवाद बना मैं लिख बैठा- भेड़, गड़ेरिया देश पर क्या रोएं? (4 जून 2019)। उस कविता की पंक्तियां हैं- दया करो ऐसे देश पर, जहां लोग भेड़ हैं और गड़ेरिया, जिन्हें गुमराह करता है दया करो देश पर, जिसके लीडर झूठे हैं और मनीषी चुप करा दिए गए (बुद्धिजीवी) और जिसकी आबोहवा कठमुल्लाई जुमलेबाजी में गूंजती है दया करो देश पर जहां लोगों की अपनी आवाज नहीं होती (मीडिया-विपक्ष) जो केवल विजेताओं की डुगडुगी बजाते हुए दबंगों को हीरो मानता है। जहां लक्ष्य ताकत और दमन से पताका फहराने का है दया करो देश पर जो सिर्फ अपनी भाषा, अपने मुगालते में जीता है जिसे दूसरों की संस्कृति का पता न हो, जो केवल अपने में जीता है। (कुएं के मेढ़क) दया करो देश पर, जिसकी सांस पैसे से होती है (खैरात) जो सोता है भरे पेट लोगों की नींद में (क्रोनी पूंजीवाद वाले अमीरों) ऐसा देश- ओह दया करो उन लोगों पर, जो अपने अधिकारों को मिटने देते हैं और जो अपनी आजादी, स्वतंत्रता को जाया होने, बहने देते हैं ओह मेरे देश, बहते आंसू, और मुक्ति की रही जो कभी माटी!

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सो, मई-जून 2019 का वह वक्त और आज मई-जून 2021 का मुकाम! क्या है लिखने के लिए?... मैं (हम सब) दो साल से विमान में बैठा हूं। कप्तान नरेंद्र मोदी और सह कप्तान अमित शाह से बार-बार सुन रहा हूं- आपने हमें चुना, धन्यवाद। निश्चिंत हो कर बैठें...आपकी यात्रा मंगलमय हो।.. और दो साल से लगातार बैठा हुआ हूं। मन ही मन गुस्सा हो कर मैं बड़बड़ाता हूं तो अगल-बगल की भेड़-बकरियां सोचती हैं..यह कैसा भड़भड़िया इंसान बैठा है, जो विमान को उड़ता हुआ नहीं मान रहा और गड़ेरिए को कोस रहा है...उधर पायलट सत्ता के कॉकपिट में सुरक्षित बंद बैठे प्लानिंग कर रहे हैं। बार-बार स्क्रीन पर आ कर अनाउंस करता हैं बहुत जल्दी हम इस्लाम मुक्त, पांच ट्रिलियन की इकॉनोमी वाले अपने आत्मनिर्भर देवलोक में पहुंचने वाले हैं। मैं उस देवलोक में ले जा रहा हूं जो शौचालय, देवालय, बुलेट ट्रेन,लंगर आदि की सुविधाओं के अलावा अब वह वायरस लिए हुए है, जो हिंदुओं के मुक्ति मनोरथ को फटाफट करा देने में समर्थ है। मुक्ति के बाद आत्माओं को स्वर्ग पहुंचाने की व्यवस्था में खुद मां गंगा बतौर शववाहिनी सेवारत हैं। असंख्य लोग शरीर गंगा में बहा परिजनों को स्वर्ग भिजवा रहे हैं। आप लोग इहलोक के कष्टों से मुक्ति के इस मौके को नहीं चूकें!

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उफ! मैं यह क्या बुदबुदा रहा हूं!.. जबकि कप्तान की घोषणाओं-सूचनाओं से भेड़-बकरियां उछलती-कूदती हुईं। ... उधर देखो बकरियां कैसी मस्ती से सींग भिड़ा रही हैं, पीछे भेड़ें परस्पर सटते हुए इतरा रही हैं। एयर होस्टेस खास यात्रा के लिए खास तौर से पैकेज्ड गोमूत्र के कई राउंड करवा चुकी है। दो साल बैठे रहने से एकत्र हुई मिगणियों-गोबर ने ऑक्सीजन-इम्युनिटी की ऐसी शक्ति बनवा दी है कि सब माने बैठे हैं कितना ही इंतजार करना पड़े यात्रा चांद-सितारों वाली है।
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