कहा जाता था कि देश की राजनीति को समझना है कि हिंदी पट्टी की राजनीति को देखें। इसमें भी बिहार को राजनीति का केंद्र माना जाता था। कहा जाता था कि हर बड़े राजनीतिक आंदोलन या बदलाव की शुरुआत बिहार से होती है। बिहार के नेता 24 घंटे राजनीति करने के लिए विख्यात या कुख्यात रहे हैं। लेकिन अब महाराष्ट्र की राजनीति को देखने की जरूरत है। महाराष्ट्र की दोनों क्षेत्रीय पार्टियां कमाल की राजनीति कर रही हैं। उनकी राजनीति को डिकोड करना मुश्किल हो गया है। पता ही नहीं चल रहा है कि शरद पवार की पार्टी और परिवार महा विकास अघाड़ी के साथ है या भाजपा के साथ। यह भी पता नहीं चल रहा है कि भाजपा अपने सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिव सेना के साथ है या नहीं? कांग्रेस और शिव सेना का उद्धव ठाकरे गुट एक साथ है या नहीं, यह भी अंदाजा लगाना मुश्किल है। सभी पार्टियों के नेता सबसे मिल रहे हैं और अलग अलग सिग्नल दे रहे हैं।
हाल की शरद पवार की गतिविधियों को देखें तो यह हैरानी होगी कि कोई कैसे इस तरह की राजनीति कर सकता है। जिस दिन संसद का बजट सत्र समाप्त हुआ उसके अगले दिन पवार ने गौतम अदानी के टेलीविजन चैनल पर एक इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने कह दिया कि अदानी समूह पर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट की संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जांच की जरूरत नहीं है। उन्होंने अदानी का खुल कर बचाव किया। कहा कि एक औद्योगिक समूह को निशाना बनाया जा रहा है। इसके चार दिन के बाद वे अपनी बात से मुकर गए और कहा कि अगर सहयोगी पार्टियां जेपीसी की मांग चाहती हैं तो वे इसका विरोध नहीं करेंगे। सोचें, उनकी खुद की पार्टी और सभी सहयोगी पार्टियां 13 मार्च को संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होने के दिन से जेपीसी की मांग कर रही हैं। इसके लिए हुए हर प्रदर्शन में उनकी पार्टी शामिल हुई है। लेकिन एक महीने बाद वे कह रहे हैं कि यदि सहयोगी चाहते हैं तो वे जेपीसी का विरोध नहीं करेंगे।
उनकी पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता और महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष अजित पवार ने भी अदानी का समर्थन किया।उन्होने कहा कि शरद पवार ने जो कहा है वह पार्टी की लाइन है। इसके बाद अजित पवार ने एक अलग घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर उठाए जा रहे सवालों को खारिज किया। साथ ही आम आदमी पार्टी को निशाना बनाते हुए कहा कि डिग्री का मामला नॉन इश्यू है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की जम कर तारीफ की। इसके बाद वे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मिलने चले गए। जिस दिन अजित पवार और शिंदे की मुलाकात हुई उससे एक दिन पहले शरद पवार ने उद्धव ठाकरे और संजय राउत से मुलाकात की। उसके एक दिन बाद दिल्ली पहुंच कर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की। ध्यान रहे देवेंद्र फड़नवीस ने बताया है कि 2019 में अजित पवार ने भाजपा का समर्थन शरद पवार के कहने पर किया था। उनके कहने पर ही उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। सोचें, चाचा-भतीजे की क्या राजनीति है? वे एकनाथ शिंदे के साथ हैं, भाजपा के साथ हैं, उद्धव ठाकरे के साथ हैं या कांग्रेस के साथ हैं?
इस बीच नौ अप्रैल को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस अयोध्या पहुंचे और रामलाल के दर्शन किए। वहां शिंदे ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण करा कर बाला साहेब ठाकरे का सपना पूरा कर रहे हैं। वहां हजारों की संख्या में शिव सैनिक ले जाए गए।उनके आगे भाजपा नेता फड़नवीस की मौजूदगी में शिंदे ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने का श्रेय शिव सैनिकों को दिया। इसके दो दिन बाद 11 अप्रैल को भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और शिंदे सरकार के मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि जब बाबरी का ढांचा गिरा था तब वहां न बाल ठाकरे थे और न कोई शिव सैनिक था।
जब उद्धव ठाकरे गुट ने इसका विरोध किया तो फिर शिंदे गुट ने भी चंद्रकांत पाटिल के खिलाफ मोर्चा खोला और तब उन्होंने इस पर सफाई दी। हालांकि अभी तक एकनाथ शिंदे को शिव सेना और बाल ठाकरे की विरासत नहीं मिली है लेकिन अभी से भाजपा उनको काटने में लग गई है। उसको लग रहा है कि शिव सेना ब्रांड के हिंदुत्व की राजनीति को खत्म करने के लिए पार्टी का विभाजन कराया गया।जबकि अब शिंदे गुट उसी ब्रांड की राजनीति का प्रतीक बन रहा है। सो, भाजपा अपनी ही सहयोगी को निपटाने की राजनीति भी करते हुए।
ऐसा नहीं है कि महाविकास अघाड़ी में सिर्फ शरद पवार की राजनीति को लेकर कंफ्यूजन है। कांग्रेस और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट में भी सब ठीक नहीं है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले बार बार कह रहे हैं कि शिव सेना कांग्रेस की स्वाभाविक सहयोगी नहीं है। सावरकर के मसले पर राहुल गांधी के बयान को लेकर जिस तरह से उद्धव ठाकरे गुट ने नाराजगी जताई वह सबने देखा। उद्धव ने तालमेल खत्म करने तक की धमकी दी। इसके बाद कांग्रेस ने अपना रुख नरम किया। इस बीच उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने कांग्रेस से पुराना संबंध बताते हुए कहा कि बाल ठाकरे ने कांग्रेस से तालमेल किया था। शिव सेना ने बाल ठाकरे के जीवन काल में कांग्रेस के दो राष्ट्रपति उम्मीदवारों- प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। सोचे महाराष्ट्र के इस झमेले में क्या कोई गारंटीशुदा कह सकता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा 2024 के चुनाव से पहले विरोधी खेमे को पंचर कर देगी?