जगत गुरू और जगत सेठ को अब अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का आसरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘दोस्त’ ट्रंप को चुनाव जीतते ही बधाई दी थी। गौतम अडानी ने न केवल डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत का जश्न मनाया, बल्कि घोषणा की कि वे अमेरिका में ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट में दस अरब डॉलर पूंजी निवेश करेंगे। जाहिर है दो महीने बाद बीस जनवरी को जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद संभालेंगे तो मोदी सरकार तुरंत उम्मीद में होगी। मतलब ट्रंप अपने खिलाफ दायर मुकदमों को खत्म कराएं तो साथ ही वे गौतम भाई का मुकदमा भी खत्म कराने का आदेश जारी करें। साथ में अमेरिका और कनाडा की जांच एजेंसियों ने खालिस्तानी सिख पन्नू और निज्जर को ले कर भारत के खिलाफ जो कार्रवाई की है उसे भी फटाफट बंद किया जाए।
पर अमेरिका, भारत नहीं है। इसका ताजा प्रमाण है कि जिस शख्स (मैट गेट्ज) को डोनाल्ड ट्रंप ने अपना अटार्नी जनरल तय किया था वह नाम रिपब्लिकन पार्टी की बहुमत वाली सीनेट को भी मंजूर नहीं था। वहां की संसदीय समिति और मीडिया ने उसको ऐसा एक्सपोज किया कि मैट गेट्ज खुद ही घबरा कर पीछे हट गया। मतलब डोनाल्ड ट्रंप न्याय विभाग में अपनी पसंद का अटार्नी जनरल नियुक्त नहीं कर पाए हैं तो ऐसे अमेरिकी सिस्टम में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप पहले अपने मुकदमें खत्म करने पर ध्यान देंगे या भारत और अडानी को बचाएंगे?
बावजूद इसके भारत की पूरी विदेश नीति, भारत सरकार का पूरा दम अब डोनाल्ड ट्रंप को खुश करने में जुटेगा। दूसरा विकल्प नहीं है। ट्रंप मदद करेंगे लेकिन अपनी कीमत, अपने धंधे, अपने एजेंडे और अमेरिका के हित में। भारत के उद्योगपति डोनाल्ड ट्रंप या उनके खास उद्योगपति इलॉन मस्क की चमचागिरी करके अपना चाहे जो जुगाड़ बनाएं पहले ट्रंप की शर्तें माननी होंगी। डोनाल्ड ट्रंप व्यापारिक लेन-देन में विदेश से आनी वाली सभी चीजों पर भारी टैक्स लगाने वाले हैं। भारत पर भी लगाएंगे। मोदी सरकार अब उसमें रियायत के लिए लॉबिंग नहीं कर सकती है। ट्रंप सरकार जो फैसले करेगी उसे भारत चुपचाप मानेगा। भारत में इलॉन मस्क जो चाहेगा उसे वह रियायत और सुविधा मिलेगी। उसका अब पलक पांवड़े बिछा कर स्वागत होगा।
नोट करें, अगले चार वर्षों में भारत की आर्थिकी एक तरफ चीन और दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के हितों में झूलती हुई होगी। सवाल है बावजूद इसके क्या गौतम अडानी एंड पार्टी की पुरानी साख लौट सकेगी? कतई नहीं। गौतम अडानी की कीमत भारत के शेयर बाजार, छोटे-बड़े निवेशकों तथा पूरी आर्थिकी को लगातार भुगतनी है। अडानी के पास विकल्प है कि वह अमेरिका में गलती मान अरबों रुपए का मुआवजा दे कर मुकदमे से बरी हो जाए। लेकिन इससे साख नहीं लौट सकती। अमेरिकी और यूरोपीय निवेशकों का पैसा भारत के शेयर बाजार में आना अब सूखेगा। जिस देश का नंबर एक दरबारी जगत सेठ बार-बार वैश्विक पैमाने का ठग (हिंडनबर्ग रिपोर्ट) करार हो और अमेरिकी अदालत में भी पहुंच जाए उसकी धुरी के भारतीय शेयर बाजार का वैश्विक निवेशकों में कितना भरोसा है, इसका अनुमान लगा सकते हैं। इसलिए अपना मानना है कि भारतीय बैंक तथा एलआईसी जैसी संस्थाएं अपने को पूरी तरह शेयर मार्केट में डूबो भी दें तब भी उससे वैश्विक भरोसा पहले जैसा नहीं बनेगा। भारत की आर्थिकी आगे डांवाडोल होनी है।