बेबाक विचार

चुनाव धर्म पर या विकास या जाति पर?

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चुनाव धर्म पर या विकास या जाति पर?
uttar pradesh assembly elections उत्तर प्रदेश का विधानसभा किस मुद्दे पर लड़ा जाएगा? केंद्र सरकार ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके रणनीतिकारों ने जाति का दांव चला है। तभी केंद्रीय कैबिनेट में विस्तार हुआ तो उत्तर प्रदेश से सात मंत्री बनाए गए, जिनमें से छह पिछड़ी जाति के हैं। इसका खूब प्रचार हुआ है और ओबीसी समूहों में नरेंद्र मोदी समर्थन सम्मेलन कराने का ऐलान हुआ। दूसरी ओऱ योगी आदित्यनाथ और उनके समर्थक चुनाव को हिंदुवाद के मुद्दे पर ले जा रहे हैं क्योंकि उनको पता है कि अगर चुनाव को जाति के आधार पर लड़ा गया तो भाजपा को नुकसान होगा और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने की संभावना कम होगी। इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति का चेहरा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हैं। तभी ओबीसी राजनीति में उतरने के खतरे को योगी आदित्यनाथ ने समझा हुआ है। ध्यान रहे 2017 के विधानसभा चुनाव के समय केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश अध्यक्ष थे और एक तरह से वे मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पार्टी को चुनाव लड़ा रहे थे। उस समय योगी आदित्यनाथ न मुख्यमंत्री के दावेदार घोषित थे और न उम्मीदवार चयन से लेकर प्रचार रणनीति तक में मुख्य भूमिका निभा रहे थे। तब बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ा रहे थे और प्रदेश में चेहरा केशव प्रसाद मौर्य का था। योगी को चुनाव के बाद एक खास मकसद से मुख्यमंत्री बनाया गया। इस बार योगी सारी रणनीति बना रहे हैं, एजेंडा तय कर रहे हैं और निश्चित रूप से उम्मीदवार तय करने में उनकी मुख्य भूमिका होगी। उनको पता है कि ओबीसी राजनीति हुई तो टिकट बंटवारे में समझौता करना होगा और चुनाव के बाद की अनिश्चितता बनी रहेगी। Read also हर सवाल का जवाब हिंदुत्व है! UttarPradesh Deputy Chief Minister जाति की राजनीति करने का एक खतरा यह है कि राज्य में ब्राह्मण नाराज बताए जा रहे हैं और जाति की राजनीति होने पर वे अपना पक्ष चुनने के बारे में सोचेंगे। अगर वृहत्तर हिंदुत्व की राजनीति नहीं हुई तो बहुसंख्यक समाज के जातियों में बंटने का खतरा है, जिसका सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को होगा। यह हकीकत है कि उत्तर प्रदेश में जातीय गणित भाजपा के खिलाफ है। उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी हिंदू आबादी ब्राह्मण की है। करीब 11 फीसदी ब्रह्माण भाजपा खास कर योगी से नाराज बताए जा रहे हैं। ब्राह्मणों से थोड़ी कम आबादी यादवों की है, जो लगभग पूरी तरह से सपा के साथ खड़े मिलेंगे। इसके ऊपर जाट आबादी है, जो कृषि कानूनों विरोध में आंदोलित है और किसानों के साथ खड़ी है। दलितों में सबसे बड़ा समूह जाटव का है, जो मायावती के साथ है और बाकी दलित भी भाजपा का पूरी तरह से साथ देंगे इसकी गारंटी नहीं है। राज्य में 16 फीसदी के करीब मुस्लिम हैं, जो हर हाल में भाजपा को हराने के लिए वोट करेंगे। सवर्णों में भूमिहार और कायस्थ भी अलग अलग कारणों से भाजपा या योगी से नाराज हैं। ऐसे में चुनाव अगर जातीय गणित पर होता तो सिर्फ ठाकुर और गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोट के सहारे भाजपा नहीं जीत सकती है। सो, यह तय है कि जाति या विकास के मुद्दा चुनावी एजेंडा नहीं होगा। विकास का जितना भी प्रचार किया जाए अंततः हिंदुत्व का मुद्दा ही असली एजेंडा होगा। हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्मशान-कब्रिस्तान के नैरेटिव के जरिए उठाया था। इस बार प्रधानमंत्री ओबीसी राजनीति कर रहे हैं तो योगी हिंदुत्व का मुद्दा उठा रहे हैं। अयोध्या, मथुरा, काशी, प्रयागराज, विंध्याचल उनका मुद्दा है। इलाहाबाद का नाम बदलने के बाद सुल्तानपुर और अलीगढ़ का नाम बदलना उनका मुद्दा है। उनको पता है कि ऐसे ही मुद्दों से जाति का भेद मिटेगा और बहुसंख्यक हिंदू उनको वोट करेगा। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में 30 फीसदी के करीब आबादी मुस्लिम और यादव की है, जो लगभग पूरी तरह से सपा के साथ होगी। बचे हुए 70 फीसदी हिंदुओं में से सामान्य से ज्यादा ध्रुवीकरण ही भाजपा को चुनाव जिता सकता है। जहां मुस्लिम आबादी कम होती है या उसके साथ कोई और जाति नहीं जुड़ी होती है वहां सामान्य ध्रुवीकरण यानी 40-50 फीसदी हिंदू वोट से भी जीतने की गारंटी होती है। लेकिन जहां 30 फीसदी वोट एक तरफ हो वहां 70 फीसदी वोट में से 60 से 70 फीसदी वोट की जरूरत होती है। इसके लिए बहुत बड़े ध्रुवीकरण की जरूरत है और वह जाति या विकास के नाम पर हो ही नहीं सकता है।
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