वैक्सीन के असर को लेकर अलग रहस्य है। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, नोडल एजेंसी आईसीएमआर और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के अधिकारी प्रेस कांफ्रेंस करके बता चुके हैं वैक्सीन प्रभावी है, पूरी तरह से सुरक्षित है और इसका साइड इफेक्ट नगण्य है। हालांकि वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों के बीच जुबानी जंग छिड़ी थी तब दोनों ने एक दूसरे की पोल खोली थी। अब खुद सीरम इंस्टीच्यूट ने एक फैक्ट शीट जारी की है, जिसमें उसने इसके साइड इफेक्ट्स की जानकारी दी है। उसने बताया है कि 10 फीसदी लोगों को साइड इफेक्ट महसूस हो सकता है। हालांकि भारत बायोटेक के प्रमुख कृष्णा एल्ला ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा था कि 10 फीसदी साइड इफेक्ट उनकी वैक्सीन में है और दूसरों की यानी सीरम की वैक्सीन में साइड इफेक्ट 60-70 फीसदी है। बाद में आनन-फानन में चमत्कारिक अंदाज में दोनों में सुलह हो गई, लेकिन उनकी बात तो अपनी जगह है!
बहरहाल, सीरम की ओर से फैक्ट शीट के मुताबिक 10 फीसदी लोगों को ठंड, बुखार, तेज बुखार सरदर्द, जोड़ों में दर्द, गले में खराश, थकान, वैक्सीन लगाने की जगह पर दर्द, सूजन आदि हो सकता है। इसी फैक्ट शीट के मुताबिक एक फीसदी लोगों को असामान्य लक्षण दिख सकते हैं। जैसे वैक्सीन लगाने की जगह पर गांठ पड़ना, पेट दर्द, चक्कर आना, भूख नहीं लगना, शरीर पर चकत्ता या दाग होना आदि। अब सवाल है कि परीक्षण के दौरान इन साइड इफेक्ट्स पर क्यों नहीं चर्चा हुई? अगर इतने साइड इफेक्ट्स हैं तो भारत सरकार के अधिकारी इसे नगण्य कैसे बता रहे हैं?
सोचें, इसी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का जब ब्रिटेन में ट्रायल चल रहा था और एक वालंटियर ने किसी समस्या की शिकायत की थी तो इसका ट्रायल रोक दिया गया था। लेकिन भारत में क्या हुआ? भारत में एक वालंटियर ने मानसिक समस्या होने की शिकायत की तो कंपनी ने उसके खिलाफ करोड़ों रुपए का दावा ठोक दिया और चुप करा दिया। इसी तरह भारत बायोटेक की एक वैक्सीन से जुड़ा वालंटियर वैक्सीन लेने के नौ दिन बाद मर गया तो तीन घंटे में जांच करके कंपनी को क्लीन चिट दे दी गई। कहा गया कि उसकी मौत का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं है। यह वैक्सीन, जिसे लगाने वाले वालंटियर की मौत हुई है, उसे भी भारत में इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है, जबकि इसके तीसरे चरण के परीक्षण का डाटा ही नहीं आया है। यह भारत में ही संभव है। इसका असर कितना होगा यह भी रहस्य है। इसकी सीमा 70 से 94 फीसदी तक बताई जा रही है। वैसे भारत में 99 फीसदी से ज्यादा लोगों को कोरोना नहीं हुआ है और जिन एक फीसदी को हुआ उसमें भी 98 फीसदी लोग ठीक हो गए।
भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक। ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।
आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।
संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।