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क्या मजदूर सप्लाई करने की फैक्टरी बनेगा?

संभव है भारत दुनिया को मजदूर सप्लाई करने वाला नंबर एक देश बने। आखिर अभी भी प्रवासियों की संख्या के लिहाज से भारत दुनिया का नंबर एक देश है। दुनिया के अलग अलग देशों में रहने वाले प्रवासियों की भारत की संख्या दो करोड़ के करीब है। भारत से बाद सबसे ज्यादा प्रवासी मेक्सिको के हैं। आम धारणा है कि भारत के प्रवासी दुनिया में तकनीक के क्षेत्र में झंडे गाड़ रहे हैं। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है, जो तकनीक के क्षेत्र में बड़ा नाम कर रहे हैं। बड़ी आबादी मजदूरी करने जा रही है- जिसमें कुशल और अकुशल मजदूर दोनों हैं।

यदि  अप्रवासी भारतीयों की अलग अलग देशों में संख्या देखें तो सबसे ज्यादा भारतीय संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई में हैं। यूएई में करीब 35 लाख भारतीय हैं। इसके बाद 28 लाख भारतीय अमेरिका में हैं। सऊदी अरब में भी प्रवासी भारतीयों की आबादी 25 लाख के करीब है। अभी हाल में कतर में फुटबॉल का विश्व कप हुआ है। उसके आयोजन की तैयारी पिछले 10 साल से चल रही थी। वहा  बड़ी संख्या में भारतीय मजदूर वहां काम कर रहे थे। उन्होंने कैसी अमानवीय स्थितियों में काम किया यह बाद में दुनिया को मालूम हुआ। खाड़ी के देशों में कई जगह भारतीय मजदूरों को बुरे हालातों का सामना करना पड़ता है। जहां वे काम करते हैं वहां उनका पासपोर्ट रख लिया जाता है और गुलामों की तरह काम कराया जाता है। ज्यादातर देशों में भारत के सस्ते मजदूरों की जरूरत बढ़ी और बढ़ सकती है।

दरअसल दुनिया के अनेक देशों में आबादी का बढ़ना रूक गया है। वहा अब बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है। कामकाजी आबादी घट रही है। ऐसे में भारत के लोगों के लिए अवसर हैं। लेकिन वह भी कब तक? दुनिया के जितने विकसित देश हैं, उनके यहां आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और मशीन लर्निंग के ऐसे ऐसे प्रयोग हुए हैं, ऐसी तकनीक डवलप होते हुए है कि बेहद जटिल कामकाज से लेकर रोजमर्रा के कामकाज में इंसान की जरूरत कम होती जा रही है। अनेक विकसित देशों ने अपने यहां लोगों को घर बैठा कर वेतन देने के मॉडल पर काम शुरू किया है क्योंकि उनको लोगों की जरूरत ही नहीं है। आने वाले बरसों में दुनिया के आठ सौ करोड़ लोगों में से कोई तीन सौ करोड़ लोग अप्रासंगिक हो जाएंगे। उनकी कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें सबसे बड़ी आबादी भारत की होगी। भलातब क्या होगा?

यदि मौजूदा ट्रेंड को ध्यान में रख कर विचारे तो संभव है अगले 20-30 साल तक दुनिया में भारत के कुशल, अकुशल मजदूरों की और पेशेवरों की जरूरत रहेगी। उसके बाद क्या होगा? भारत की नीतिगत कमियों और देश में सामाजिक व धार्मिक विद्वेष बढ़ने की वजह से भारत में विदेशी कंपनियों के कारोबार की संभावना घट रही है। पिछले तीन चार साल में कम से कम छह अमेरिकी कंपनियां भारत में अपना कामकाज बंद करके लौटी हैं। कोरोना के बाद चीन से कंपनियों ने अपना कारोबार समेटा लेकिन भारत में आने की बजाय वे पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में जा रही हैं। भारत का अपना निर्माण सेक्टर नहीं बढ़ रहा है, जिसमें रोजगार की सबसे ज्यादा संभावना रहती है। उसकी बजाय सेवा क्षेत्र बढ़ेगा, जिसमें रोजगार की सीमित संभावना है। शहरीकरण बेतहाशा बढ़ रहा है। 2030 तक 60 करोड़ और 2050 तक 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगे लेकिन वे क्या कर रहे होंगे, इसका किसी को अंदाजा नहीं है। या तो बेगारी करें या टाइमपास और धर्मादे, फ्री राशन से जैसे-तैसे टाईमपास।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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