बेबाक विचार

अमित शाह का वर्ष!

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अमित शाह का वर्ष!
हां, कोई माने या न माने अपना मानना है कि आजाद भारत के इतिहास में सन् 2019 बतौर अमित शाह वर्ष याद रहेगा। नरेंद्र मोदी का दोबारा चुनाव जीतना, भेड़ जनादेश या आर्थिकी के रसातल जैसी बातें सामयिक इतिहास का रूटिन हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म होना, उसका पुनर्गठन और संविधान में ‘मुस्लिम’ शब्द पर भेदभाव का एक कानून जुड़ना कभी न भुलाई जा सकने वाली बात है। और यह सब जब अमित शाह की बदौलत है, उनके जीवन का अविस्मरणीय कर्म है तो आजाद भारत के इतिहास और भविष्य में बनने वाले इतिहास के रेफरेंस में अमित शाह और 2019 बतौर पर्याय आगे याद रहेंगे। वे प्रधानमंत्री बनें या न बनें और बनें तब भी उस वर्ष से बड़ा 2019 का वर्ष उनका माना जाता रहेगा। संभव है कि भविष्य में इस वर्ष को बुरे वक्त का प्रारंभ बिंदु भी माना जाए। मगर फिलहाल कि हकीकत जम्मू कश्मीर से 370 की समाप्ति और नागरिकता संशोधन कानून भारत राष्ट्र राज्य का इतिहासजन्य टर्निंग प्वाइंट है। इन दो फैसलों से आगे जो होना है, जिस अंधेरी या सुनहरी सुरंग में भारत का प्रवेश है उससे अंत में जो भी मंजिल बने उसमें 2019 और अमित शाह एक दूसरे के पर्याय रहेंगे। हिसाब से देखा जाए तो 2019 में अमित शाह ने जो कर दिया है उसके बाद उनके लिए करने को कुछ नहीं है। उनके नाम के आगे बतौर गृह मंत्री 2019 का वर्ष वह सब कुछ लिख दे रहा है, जिससे अधिक संभव भी नहीं है। आजाद भारत की हिंदू राजनीति के इतिहास में नरेंद्र मोदी को नोटबंदी के लिए, सर्जिकल-फर्जिकल स्ट्राइक, बरबादी के लिए याद किया जाएगा तो अमित शाह को अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून (तीन तलाक, सावरकर नैरेटिव, एनआरसी आदि भी) को लेकर। सवाल है क्या भारत ने 2019 में इक्सीसवीं सदी का सरदार पटेल पाया? यह फालतू बात है। भाजपा का कोई चेहरा गांधी, नेहरू नहीं हो सकता तो सरदार पटेल या इंदिरा गांधी भी नहीं हो सकता। कांग्रेस और भाजपा के विचार ऋषि अलग हैं, वंश व जन्मकुंडली अलग है इसलिए मोदी-शाह में गांधी-पटेल के चेहरे ढूंढने की तुक ही नहीं है। मगर हां, हिंदू कुल में अमित शाह ने 2019 में वीर सावरकर को जरूर याद करा दिया है। यह सोचा व कहा सकता है कि सन् 2019 में अमित शाह ने वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना संभव नहीं थी। उनका चुटकियों में अनुच्छेद 370 खत्म कराना और भारत को हिंदुओं की नेचुरल शरण भूमि, पुण्य भूमि करार देना बहुत दुस्साहसी काम है! अलग मसला है कि अमित शाह के दुस्साहस का अंत नतीजा क्या निकलेगा, आगे क्या होगा? जवाब वक्त देखा और उसमें अपना मानना है कि अमित शाह भी बिना रोडमैप के हैं। वे भी अहंकार में चूर-चूर हैं। अहंकार से क्या बनता है, इसे हम लोग नोटबंदी के इतिहास वर्ष 2016 के बाद से देख रहे हैं। सोचें, बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का सबसे धमाकेदार वर्ष कौन सा है तो वह अकेला 2016 का नोटबंदी वर्ष है। उस फैसले के पीछे काले धन को खत्म करने का मकसद सौ टका सही था लेकिन जिनके पास काला धन (अफसर-सेठ-नेता) था उन्हें नहीं मारा, बल्कि आम जनता को उन्होने लाइन में लगाया और आर्थिकी के अनौपचारिक छोटे धंधों को मारा। वे बिना रोडमैप के फिर गोलपोस्ट बदलते गए और पूरी आर्थिकी चौपट राजा की हो गई। बावजूद इसके अभी भी अपनी जिद्द में समझदार, पढ़े-लिखे याकि हार्वर्ड वाले अर्थशास्त्रियों की बजाय हार्ड वर्क के गधों से आर्थिकी के सुधरने का अहंकार पाले हुए हैं! वैसा अहंकार 2019 और अमित शाह के फैसलों के साथ भी खिलता दिख रहा है। मतलब अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून में अमित शाह ने अनहोनी कर दिखाई लेकिन आगे क्या? बहरहाल, अभी 2020 या आगे की सोचने की जरूरत नहीं है। खत्म होते वर्ष पर अभी इतना ही सोचना बहुत है कि अमित शाह की हिम्मत, उनके निश्चय और भारत राष्ट्र-राज्य से चुटकी में फैसला कराने की काबिलियत के प्रदर्शन का वर्ष 2019 था या नहीं!
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