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गपशप

मणिपुर मामले को स्पिन देना आसान नहीं

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इन दिनों हर पार्टी को ऐसे स्पिन डॉक्टर्स की जरूरत होती है, जो किसी भी घटना को दूसरा टर्न दे सके। मूल घटना पर से ध्यान हटा कर उसके दूसरे पहलू पर ध्यान केंद्रित करा दे। अगर मीडिया साथ हो तो ऐसा करना आसान हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी हर समय इस तरह के काम करती है। उसके स्पिन डॉक्टर्स हर घटना को एक नया रूप देते हैं और फिर मीडिया उसी रूप का प्रचार करता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि खुद प्रधानमंत्री ही स्पिन डॉक्टर का काम करते हैं और कई बार पार्टी खुद यह काम करती दिखती है। मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाए जाने की वीभत्स घटना का वीडियो आने के बाद जो दो काम पार्टी की ओर से किए गए हैं उनसे इस बात को समझा जा सकता है।

पहला काम खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। वे संसद के मानसून सत्र में हिस्सा लेने पहुंचे तो पारंपरिक मीडिया इंटरेक्शन में उन्होंने पहली बार मणिपुर का जिक्र किया, जहां पिछले करीब 80 दिन से हिंसा चल रही है। लेकिन साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार का भी जिक्र किया और कहा कि वे सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह करते हैं कि वे अपने राज्य में कानून व्यवस्था को पुख्ता बनाएं। यह विशुद्ध रूप से राजनीतिक बयान था, जिसकी कम से कम उस समय जरूरत नहीं थी। मणिपुर का वीडिया सामने आने के बाद पूरा देश उद्वेलित था उस समय उस मामले के साथ विपक्ष के शासन वाले चुनावी राज्य का जिक् करके राजनीति करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन प्रधानमंत्री ने किया। उसके बाद भाजपा ने इस बात को हाथों हाथ लिया। पूरे दिन भाजपा के नेता इस बात पर बयान देते रहे।

भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सोनिया गांधी मणिपुर पर बोल रही है लेकिन राजस्थान पर चुप हैं। सोचें, क्या यह राजस्थान और मणिपुर की तुलना का समय है? राजस्थान के जोधपुर में बलात्कार की घटना के दो घंटे के भीतर आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए, जबकि मणिपुर की घटना के बारे में जानकारी होने के बावजूद 77 दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। फिर भी भाजपा के नेता मणिपुर से ज्याद छत्तीसगढ़ और राजस्थान पर चर्चा करते रहे। जब संसद में इस बात को लेकर विवाद हुआ कि मणिपुर पर चर्चा नियम 176 के तहत हो या 267 के तब भी भाजपा ने विपक्ष पर ही आरोप लगाया कि वह चर्चा से भाग रहा है। राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि विपक्ष इसलिए चर्चा से भाग रहा है ताकि पश्चिम बंगाल की हिंसा पर जवाब नहीं देना पड़े। सोचें, मणिपुर में हुए एक भयानक अपराध और सिस्टम की विफलता का वीडियो वायरल हो रहा है और खुद प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 140 करोड़ लोगों को दुनिया के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा है और भाजपा के नेता कह रहे हैं कि मणिपुर पर चर्चा होगी तो उसमें पश्चिम बंगाल की हिंसा की भी बात उठेगी! राजस्थान और छत्तीसगढ़ की घटनाओं को भी लाया जाएगा। यह क्या तर्क है? क्या सरकार विपक्ष को यह कह रही है कि तुम्हारे शासन वाले राज्यों में भी अपराध हुए हैं, तुम मणिपुर पर चुप रहो नहीं तो हम तुम्हारे राज्य का मामला उठाएंगे? क्या किसी सभ्य लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में इस तरह की बात सोची भी जा सकती है?

सो, पहले तो प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर के साथ विपक्ष के शासन वाले राज्यों को जोड़ कर अपने नेताओं को प्रेरित किया कि वे इस लाइन पर काम करें कि हमारी कमीज पर दाग है तो तुम भी बेदाग नहीं हो। इसके बाद दूसरा काम भाजपा ने किया। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्विट करके वीडियो की टाइमिंग पर सवाल उठाया गया। कहा गया कि घटना इतने दिन पहले की है तो संसद के मानसून सत्र के ठीक एक दिन पहले कैसे सामने आया है? भाजपा को संसद सत्र से ठीक पहले वीडियो लीक होने में साजिश दिख रही है। यहां टाइमिंग के नाम पर घटना को स्पिन देने में भाजपा खुद ही फंस गई। सोशल मीडिया में स्वंयस्फूर्त तरीके से लोगों ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि तीन मई से मणिपुर में इंटरनेट बंद है अन्यथा यह वीडियो बहुत पहले सामने आया होता। सोचें, साजिश थ्योरी का प्रचार करने से पहले भाजपा ने यह नहीं सोचा कि इससे उसकी सरकार पर सवाल उठेंगे? यह सवाल उठेगा कि जब चार मई की घटना है और 18 मई को एफआईआर दर्ज हुई है तो अभी तक सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की थी? वीडियो इतना भयावह है, जिस पर सारी दुनिया थू थू कर रही है और भाजपा को इस बात की चिंता है कि वीडियो अभी क्यों लीक हुआ, जब संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा था! टाइमिंग पर सवाल उठाने के साथ साथ सरकार का फोकस इस बात पर है किसी तरह से ट्विटर, फेसबुक आदि से यह वीडियो हटवाया जाए। बताया जा रहा है कि सरकार की ओर से सोशल मीडिया कंपनियों को वीडियो हटाने के लिए कहा गया है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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