नंबर एक मसला, हिंदू-मुस्लिम-1: भारत का दिमाग, पाकिस्तान का दिमाग, हिंदू का दिमाग और मुसलमान का दिमाग 14-15 अगस्त 1947 के बाद से किस मसले में सर्वाधिक खपा है? अपना मानना है हिंदू बनाम मुसलमान पर! इस उपमहाद्वीप याकि दक्षिण एशिया का दिमाग सन 711-12 में मोहम्मद बिन कासिम के सिंध पर पहले हमले के बाद से अब तक याकि कोई 13 सौ साल के इतिहास में किस ग्रंथि में उलझा, फंसा और खूनखराबा लिए हुए है? तो जवाब है विजेता-आक्रामक इस्लाम बनाम पराजित, रक्षात्मक हिंदू के मसले, उसके मनोविज्ञान में। क्या यह सत्य नहीं है? नोट रखें कि वक्त बिना इतिहास के नहीं होता। गुजरा वक्त है तभी आज है और आने वाला वक्तहै। इतिहास है तो वर्तमान व भविष्य है। मैं और आप वंशानुगत हैं। मतलब बाप-दादाओं-पीढ़ियों-वंश-खानदान के अनुभव, उपलब्धियों, हार-पराजय में गुंथे दिमाग और उसके डीएनए को लिए हुए हैं। इसलिए मोहम्मद बिन कासिम के बाद का 13 सौ साल का सफर हो या आजादी बाद के सात-आठ दशक का सफर हम, दक्षिण एशिया, भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के लोग, उनके दिमागी रसायन का चिरंतन-स्थायी सत्व-तत्व इतिहास का मंथन है, इतिहास का सार है,इतिहास का सर्वकालिक वह संर्दभ है जिसमें हिंदू के लिए मुसलमान समस्या है और मुसलमान के लिए हिंदू समस्या है! तभी भारत और पाकिस्तान भी एक-दूसरे के लिए समस्या हैं!
मेरी यह प्रस्तावना मेरे इस स्वांत सवाल से है कि मैं क्यों मुसलमान पर इतना लिखता हूं? क्या मैं सांप्रदायिक नहीं? पिछले सप्ताह बूढ़ी अम्मा के धरने की सीरिज लिखते हुए, लेखों के शीर्षक ‘मुसलमान जानें सत्य या ‘मुसलमान को धोखा या मुसलमान से धोखे’ जैसे वाक्य गढ़ते हुए दिमाग कुलबुलाया कि मैं कितना मुसलमान, मुसलमान, हिंदू, हिंदू करता हूं! तभी सोचते हुए निष्कर्ष है कि हिंदू बनाम मुसलमान ही तो दरअसल दक्षिण एशिया का नंबर एक मसला, नंबर एक समस्या है!इस मसले ने ही भारत के विकास, भारत की बुद्धि को रोका है तो पाकिस्तान व पूरे दक्षिण एशिया को पृथ्वी का पिछड़ा हुआ इलाका बनाए हुए है।
क्या यह सत्य नहीं है? और यदि है तो हमें मौजूदा वक्त में गुजरे वक्त की यादों, अनुभव, उससे बने डीएनए, रिश्तों और मनोविज्ञान को समझते, बूझते, सत्य स्वीकारते हुए इतिहास की ग्रंथियों, गांठों को ईमानदारी से, हिम्मत से, संकल्प व ताकत से क्या सुलझाना नहीं चाहिए?
पहली जरूरत, नंबर एक जरूरत हकीकत व सत्य स्वीकारने की है। इसमें भी भारत राष्ट्र-राज्य और भारत के लोगों का सत्यवादी होना जरूरत नंबर एक है। हमसत्य मानें कि हिंदू बनाम मुस्लिम में रिश्ता समस्या है और भारत में मुसलमान नंबर एक समस्या है। (फिलहाल यह मुद्दा छोड़ें कि दुनिया की नंबर एक समस्या भी मुसलमान हैं)। कोई ज्ञानी, बुद्धिजीवी मुस्लिम इसे समस्या नहीं, बल्कि मसला या हिंदू को समस्या माने तो यह उसका सत्य है तब भी समस्या निहित है। यदि मोदी का गोदी मीडिया मुसलमान को समस्या बनाए हुए है तो उससे भी दूसरे छोर से हकीकत जाहिर है। इसे बारीकी से समझें कि किसी भी कोण व फलक से सोचें, 15 अगस्त 1947 केबादभारत का सेकुलर आइडिया हो या संघ-मोदी का हिंदू आइडिया दोनों के पीछे, दोनों में चिंता मुसलमान को समस्या मानने या समस्या बनने से रोकने की है। गांधी-नेहरू-पटेल-इंदिरा ने मुसलमानों की चिंता में सेकुलर आइडिया का राग बनाया तो संघ-मोदी-शाह की हिंदू राजनीति का आइडिया भी मुसलमान की चिंता में है। मतलब कॉमन, साझा बात मुसलमान है। सेकुलर विचार ने यह झूठ अपनाया कि हिंदू-मुसलमान में भेद की बात झूठी, अंग्रेजों की फूट डालो, राज करो की नीति का परिणाम है और आजाद भारत इस मसले, इसकी समस्या से मुक्त है या मुक्त रहेगा बशर्ते वह सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया के राग में द्रुत या विलंबित ध्यानावस्था में रहे!
अपने आपसे कितना बड़ा छल है यह! कितना बड़ा झूठ है यह! चाहें तो इसे हकीकत को कालीन के नीचे छुपाने की एप्रोच समझें। मेरी नजरों से अमेरिका की नामी पत्रिका, द एटलांटिक में फरवरी 1958 में फ्रेडरिक एम बेनेट का ‘मुस्लिम एंड हिंदू’ शीर्षक का एक लेख गुजरा है। उसकी इन लाइनों पर जरा गौर करें- मुक्ति से पहले इन दो महान धार्मिक सुमदायों के राष्ट्रवादी पुख्ता तौर पर दावा करते थे कि सांप्रदायिक विद्वेष की बात फालतू है।ब्रितानी राज में अपनाए सूत्र‘बांटों और राज करो’की नीति की बदौलत है। मगर आजादी बाद का इतिहास दो टूक, स्पष्टता से दिखला रहा है (ध्यान रहे लेख1958 में लिखा हुआ) कि मुसलमान और हिंदू का विद्वेष बहुत गहरे जड़ों में पैठा हुआ है। 1947 में सार्वभौमिकता के चार्टर की स्याही सूखी भी नहीं कि पाकिस्तान और भारत दोनों कट्टर दुश्मन देश बन गए हैं। ऐसा होना आश्चर्य वाली बात नहीं। ब्रितानियों के भारत में आने से पहले मुस्लिम मुगल मालिकों और धर्मांतरित हुए मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं में नफरत गहरी पैठी थी तो मुसलमान हिंदुओं के प्रति वह हिकारत लिए हुए थे, जो विजेता हमेशा पराजित, कमजोर के प्रति लिए होता है... इस बैकग्राउंड का तकाजा है जो दिल्ली और कराची के नेता वह साहस, सहनशीलता, स्टेटक्राफ्ट दिखलाएं, जिससे दो महान समुदायों की धड़ेबाजी के वंशानुगत घावों पर मरहम लगे और वे भरें। मगर उलटे हर गुजरता साल घाव को, फ्रिक्शन को बढ़ा रहा है। विभाजन के बाद संपदा बंटवारे के मतभेद से शुरू सिलसिला हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर पर झगड़े में आगे बढ़ा तो अब नदी के पानी को ले कर ठनी हुई है।
सोचें हिंदू बनाम मुसलमान के1958 के ऊपर बताए सत्य पर! अब उसके बाद का सत्य, विचारें। भारत और पाकिस्तान में कई युद्ध, जीत-पराजय, बांग्लादेश निर्माण, आंतकवाद का आपरेशन टोपॉज, दोनों देशों का एक-दूसरे के खिलाफ एटमी हथियारों से लैस हो जाना, सर्वाधिक उच्चे ग्लेशियर सियाचिन तक में आमने-सामने की लड़ाई तो कारिगल लड़ाई, जम्मू-कश्मीर में लगातार अशांति, खून-खराबा तो भारत के भीतर दंगे, मंदिर-मस्जिद आंदोलन, मुंबई में विस्फोट, आंतकी हमले, मस्जिद ध्वंस और नरेंद्र मोदी-अमित शाह व ओवैसी की लीडरशीप का उभरना। मीडिया में दिन-रात हिंदू-मुस्लिम तो गांव-कस्बों-शहरों के मदरसों में इस्लामी धर्मपरायणता में बंधता दिल-दिमाग! सोचें कि 1947 सेनेहरू के 1958 के बीच भी हिंदू–मुसलमान की लड़ाई, नफरत में दो देशों का कट्टर दुश्मन बनते जाना हुआ तो 1958 के बाद जो हुआ है उसका निचोड़ क्या यह नहीं कि भारत और पाकिस्तान, हिंदू और मुसलमान दोनों का जीवन ही 1947 के बाद रिश्तों के इस सत्य में गुजरा है कि हम एक दूसरे की समस्या, एक दूसरे के दुश्मन! परस्पर नफरत का डीएनए लिए हुए हैं!
तो समस्या होने का सत्य दो टूक है। हिंदू के लिए मुसलमान समस्या है तो मुसलमान के लिए हिंदू समस्या है। इस समस्या का अगला सत्य यह है कि पाकिस्तान ने अपने यहां कि समस्या मतलब हिंदू का निपटारा कर दिया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश इस्लामी बन गए हैं तो अपने-आप हिंदू वहां वैसे ही जीवन जी रहा है, जैसे इस्लाम चाहता है। पाकिस्तान ने अंदरूनी हिंदू समस्या को जन्म के साथ ही हिंदुओं को भगा कर या उन्हें दोयम दर्जे का बना कर निपटा दिया। सो पाकिस्तान में अंदरूनी शांति। उसने घर ठीक कर लिया और फिर सीमा पर हिंदू हिदुस्तान की समस्या को निपटाने के लिए लड़ाई में अपने को झोंके हुए है। जबकि भारत में भारत राष्ट्र-राज्य ने, भारत के नेताओं ने अपने आपसे छल करते हुए माना ही नहीं कि अंदरूनी और बाहरी दोनों मोर्चे पर मुस्लिम समस्या है। न दुनिया से उसने यह समस्या बताई और न अपने बूते, अपनी ताकत, बुद्धि, पुरूषार्थ से बहुसंख्यक हिंदू आबादी ने मुसलमान की समस्या सुलझाई, निपटाई।हम इस झूठ में जीए हैं और जी रहे हैं कि समस्या कहां है, जो निपटाया जाए! मतलब भारत व पाकिस्तान जुड़वां भाई तो घर में हिंदू और मुसलमान का जीना साझा, साझी विरासत, साझा चुल्हे वाला! ऐसा सोचना नेहरू-इंदिरा के वक्त भी था तो मोदी-शाह के वक्त का (इसलिए क्योंकि आज आग भड़का कर, समस्या को हवा दे कर गृह युद्ध की और ले जाने की एप्रोच है न कि निपटारे की।) भी यहीं सत्य है।
उफ! कैसा गंभीर और भयावह सत्य है यह! पूरा भारत राष्ट्र-राज्य1947 में भी अपने तीस करोड़ लोगों के साथ बाहरी और अंदरूनी दोनों मोर्चे में हिंदू बनाम मुस्लिम की समस्या लिए हुए था तो 130 करोड़ लोगों की आबादी का2020 का आज का भारत भी घर के भीतर मुस्लिम समस्या लिए हुए है तो उधर सीमा पर भी मुस्लिम समस्या उर्फ पाकिस्तान को लिए हुए है! ऐसा पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नहीं है। ये इस्लाम के धर्मावलंबी इकरंगी झंडा लिए हुए हो गए हैं। इन देशों के भीतर हिंदुओं से कोई चुनौती नहीं है, जो वहां मुसलमान चिंता करें हिंदू की! जबकि भारत में आज यह रोना है कि मुसलमान की आबादी तेजी से बढ़ रही है। वह 2011 में 2.45 प्रतिशत की रफ्तार लिए हुए थी (1.82 प्रतिशत हिंदू वृद्धि दर के मुकाबले)। जहां 1951 से2017 के बीच हिंदू आबादी साढ़े तीन प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी वहीं मुसलमान की पांच प्रतिशत की रफ्तार से। तब मुसलमान कुल आबादी में दस प्रतिशत थे जबकि2011 में वे 14.5 प्रतिशत थे!
इस तरह का कोई रोना याकि समस्या पाकिस्तान में नहीं है। वह राष्ट्र हिंदू समस्या से पूरी तरह मुक्त है जबकि भारत राष्ट्र-राज्य अपनी सार्वभौमता की स्याही सूखने से पहले से ले कर आज तक इस समस्या से जूझ रहा है कि पाकिस्तान को कैसे हैंडल करें तो उसका हिंदू नागरिक भी जूझ रहा है कि मुसलमान को कैसे हैंडल करें! न नेहरू-इंदिरा समाधान निकाल पाए तो न नरेंद्र मोदी-अमित शाह निकाल पा रहे हैं। उलटे इनसे समस्या और अनियंत्रित होने की तरफ बढ़ी है, बढ़ रही है! तभीनतीजा और सत्य है जो भारत में विकास की वह रफ्तार बनी ही नहीं, जो दुनिया के सभ्यतागत देशों में बनी!
तो कहां पहुंचे? भारत का न बढ़ पाना, न बन पाना हिंदू बनाम मुस्लिम की समस्या की वजह से है! तभी भारत पर सच्चा विचार करना है, हिंदू-मुस्लिम दोनों का भला करना है तो अनिवार्यतः हिंदू-मुस्लिम के बियाबान, इतिहास, मनोभाव को विचारना होगा और सत्य जान निडरता, निर्भीकता से हल निकालना होगा। इसलिए मेरा हिंदू बनाम मुसलमान पर फोकस बनाना, सोचना, लिखना जायज है। क्या नहीं? (जारी)
भारत में सब कुछ अटका है हिंदू-मुस्लिम पर!
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