बेबाक विचार

नमकः उफ! इतना असहाय, सस्ता हिंदू!

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नमकः उफ! इतना असहाय, सस्ता हिंदू!
हे ईश्वर! हे देवी मां! हम हिंदुओं का इक्कीसवीं सदी में यह वक्त? भारत के 140 करोड़ लोगों की दीनता व निर्धनता का यह कैसा कारूणिक प्रतिनिधि वाक्य कि- मोदी ने हमें राशन दिया, उनका नमक खाई रहे हैं धोखा नहीं देंगे’।… एक बूढ़े दंपति के दीन-हीन चेहरे से अनाज की भिक्षा में अहसान वाली यह भावाभिव्यक्ति और फिर इसके हवाले भारत के प्रधानमंत्री का वोट मांगना! उफ! कैसा है यह देश और हिंदुओं की राजनीति! एक बूढ़ी मां का कारूणिक वाक्य क्या सवाल नहीं बनाता कि 75 साला आजादी से अमृत बना या जहर? 140 करोड़ लोगों में सवा सौ करोड़ लोग यदि पांच किलो गेहूं, दाल व पांच सौ-दो हजार रुपए के धर्मादे पर जिंदगी जी रहे हैं तो इस दीन-हीन, लावारिस भारतीय जिंदगी के हवाले नरेंद्र मोदी को नमक का प्रधानमंत्री बन कर क्या वोट मांगने चाहिए? यह भारत के प्रधानमंत्री, सत्तारूढ़ पार्टी के लिए उपलब्धि, गौरव की बात है या शर्म व रोने का सत्य? Hindu politics narendra modi 21वीं सदी के सन् 22 में एक बूढ़ी मां के ‘नमक’ में बंधे होने और उसके हवाले तमाम हिंदुओं को ‘नमक’ में बांधने की हिंदू राजनीति की ऐसी प्राप्ति क्या हिंदुओं की विश्व गुरूता, गौरव व आजादी के 75 साला सफर का ‘अमृत’ है? भारत की बूढ़ी मां का कहा वाक्य भारत के प्रधानमंत्री के लिए कोटेबल बात होनी चाहिए या शर्म वाली बात? पाठकों को पत्रकार अजित अंजुम के उस वीडियो को जरूर देखना चाहिए, जिसके एक वाक्य को पकड़ कर प्रधानमंत्री मोदी ने हरदोई, उन्नाव की जनसभा में प्रचार किया। अपना आग्रह है पूरा वीडियो देख भारत में जीवन की सच्चाई बूझें। भारत की 140 करोड़ आबादी में कई करोड़ परिवार रोटी, आटे, दवा की भीख याकि बेसिक जरूरत में ताउम्र जिंदगी काट देते हैं लेकिन हिंदुओं के एलिट-प्रभु-पढ़े-लिखे वर्ग को, राष्ट्र-राज्य को सुध नहीं है कि ऐसा 75 वर्षों से लगातार है। आम भारतीय दीन-हीन जीवन और भूख में स्थाई तौर पर जीता हुआ है।   भारत में आजादी के बाद से राशन लगातार मिलता हुआ है। सन् 2010 से बेहद गरीब आबादी को फ्री राशन शुरू हुआ। मोदी सरकार से पहले राशन में अनाज के अलावा चीनी और केरोसीन भी मिलता था। मनमोहन सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना में गरीब की राष्ट्रव्यापी अनाज गारंटी बनवाई थी। हिसाब से यह सब नहीं होना चाहिए था। यदि भारत 75 वर्षों में गरीब को स्वावलंबी, अपने बूते अपना पेट भरने का अवसर नहीं दे पाया है तो अपनी राय में यह कौम, नस्ल, राष्ट्र-राज्य की असफलता है। मैं फ्री अनाज के जन कल्याण को देश का विकास नहीं मानता हूं, बल्कि विकास की असफलता मानता हूं। पचहतर साल बाद भी यदि भारत का आम आदमी, गरीब परिवार अपने पांवों पर खड़ा नहीं है और असहाय लोगों की सामाजिक सुरक्षा महीने की पांच सौ-हजार रुपए की पेंशन से भूखे तरसाते हुए है तो यह हम हिंदुओं के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है। तभी अपनी राय में चुनाव और राजनीति का मुद्दा यह नहीं होना चाहिए कि लोगों को क्या-क्या फ्री बंटे, बल्कि लोगों को कैसे आत्मनिर्भर-अपने पांवों पर खड़ा होने लायक बनवाने का मुद्दा होना चाहिए। Uttar Pradesh prime ministers Read also यूक्रेन संकट और भारत की दुविधा लेकिन 21वीं सदी में भारत किस दिशा में बढ़ा है? मोदी सरकार ने सात सालों में क्या किया है? सिर्फ यह हल्ला बनाया कि देखो, हमने गैस सिलेंडर बांटे, फ्री राशन दिया, फ्री पांच किलो अनाज-मकान दिया, फ्री टीका लगाया आदि, आदि। फ्री-फ्री के इस भाजपाई हल्ले का परिणाम है कि अब पूरे देश में राजनीतिक पार्टियों में कंपीटिशन है कि कौन फ्री राशन, फ्री बिजली-पानी, फ्री फोन, फ्री स्कूटी, फ्री मकान, फ्री लैपटॉप, फ्री वाईफाई, फ्री यात्रा, दो पहिया वाहन चालकों को हर माह एक लीटर पेट्रोल मुफ्त आदि की मुफ्तखोरी बनवाने में अव्वल है। हां, चुनाव 2022 में मुकाबला आजादी के ‘अमृत वर्ष’ में नागरिकों में भूख व भिक्षा, मुफ्त और मुफ्तखोरी बढ़वाने का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदूशाही दुनिया को यह अहसास कराते हुए है कि हिंदुओं का मोल, उनकी गरिमा, उनका जीवन बहुत सस्ता है। ‘नमक’ जितना सस्ता। हिंदू जन ‘आटे’ के बदले वोट का आशीर्वाद देते हुए हैं और प्रधानमंत्री उस आशीर्वाद के हवाले उत्तर प्रदेश के घर-घर हिंदुओं से यह आशीर्वाद मांगते हुए हैं कि देखो मैंने आटा बांटा, बदले में उस बूढ़ी मां ने आशीर्वाद दिया तो वैसा ही आशीर्वाद तुम लोग भी मुझे दो। मैंने तुम्हे आटा दिया तुम मुझे वोट दो! यह है मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया में भिक्षाम् देही और लेही का हिंदू राजनीतिक दर्शन। भूल जाएं इस बात को कि अजित अंजुम के उस वीडियो में बूढ़ी मां के कहे वाक्यों में से प्रधानमंत्री ने एक ही वाक्य का इस्तेमाल किया है। प्रधानमंत्री ने यूपी की हरदोई और उन्नाव की जनसभा में आंखों में आंसू लाते हुए बूढ़ी मां के केवल ‘नमक खाने’ के वाक्य का हवाला दिया और अपने को ‘नमक का प्रधानमंत्री’ बतलाया। जबकि बूढ़े दंपति ने प्लास्टिक की थैली में भीख में मांगा आटा, इलाज कराने-दवा लाने के लिए भीख, लड़कन के पास कुछ काम नहीं होने, प्लास्टिक पन्नी की झोपड़ी में जिंदगी गुजारने की सच्चाई भी बोली। उन सच्चाइयों को सुन प्रधानमंत्री व्यथित और रोए नहीं। बूढ़ी मां के कहे में केवल एक वाक्य (‘मोदी राशन देवे’ और ‘उसके नमक में धोखा नहीं करेंगे’) को प्रधानमंत्री ने लपका और अनजाने दुनिया को दिखलाया कि भारत राष्ट्र-राज्य में सार्वजनिक-राजनीतिक चतुराई किस स्तर पर जा पहुंची है। अपनी राय में महामारी काल में जीवन कैसा मुश्किल हुआ है, यह बूढ़े दंपत्ति के कहे का लब्बोलुआब है। मैं नहीं मान सकता कि उन दोनों बुजुर्गों को मोदी से पहले राशन नहीं मिला। लेकिन यह सत्य संभव है कि पिछले सात सालों में आम आदमी का जीना जैसा मुश्किल हुआ है व रोजी-रोटी के अवसर जैसे खत्म हुए हैं तो उन दोनों बुजुर्गों को महीने में पच्चीस किलो राशन सचमुच डूबते को तिनके का सहारा था। उनके बेटे काम नहीं कर रहे हैं और भीख के अलावा जिंदा रहने का दूसरा तरीका नहीं तो फ्री राशन होगा ही खत्म होती सांसों के लिए प्राणवायु! तभी फ्री, फ्री के मोदी सरकार के प्रोपेगेंडा, नैरेटिव में बूढ़े कानों में यह बात पैठी कि मोदी राशन दे रहा है तो हमने नमक खाया है, धोखा नहीं देंगे।  बूढ़ी मां और क्या बोलती? जिसके नाम से, जिसकी फोटो से भिक्षा बंट रही है भला उसके प्रति भोली बूढ़ी मां क्यों न अहसानमंद हो। उसे कैसे यह इतिहास याद या यह भान होगा कि कोई नेहरू गरीब को राशन बांटने की व्यवस्था बना गया था। कोई मनमोहन सिंह खाद्य सुरक्षा योजना में एक-दो रुपए किलो अनाज की गारंटी बना गया था और यदि महामारी में 80 करोड़ लोग फ्री का अनाज ले कर पेट भर रहे हैं तो ऐसा होना किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के चलते नहीं है, बल्कि हमारे अपने बूते है। यह राजा की मेहरबानी नहीं है, बल्कि उसका हक है, जिसका निश्चय हम सब भारतीय लोगों के सामर्थ्य और आजादी के बाद के निश्चय से है। पर एक भोली, सरल, सनातनी हिंदू मां और एक चतुर प्रधानमंत्री! देखो, देखो वह मां कह रही है उसने मेरा नमक खाया है और धोखा नहीं देगी। वह मुझे वोट देगी! तुम लोग भी मुझे आशीर्वाद, वोट दोगे या धोखा करोगे? मैंने रोटी दी, तुम मुझे वोट दो। मैंने सुरक्षा दी तुम मुझे वोट दो। मैंने शौचालय दिया, मैंने फ्री बिजली दी, मैंने पैसा बांटा मुझे वोट दो। तब भारत में लोकतंत्र का चुनावी पर्व अब सन् 2022 में भिक्षा बनाम वोट लेने-देने का क्या बहीखाता नहीं हो गया? इस बहीखाते में मनुष्य जीवन की गरिमा, गौरव और अवसरों की बात नहीं है, बल्कि आटा देने, पाखाना करवाने, चूल्हा चलवाने, पानी देने, बिजली देने की छोटी-छोटी भिक्षा देने का यदि हिंदू गौरव और हिंदू विश्वगुरूता है तो ईश्वर ही हिंदुओं का मालिक। दुनिया में ऐसे सस्ते वोट और सस्ते नेता क्या कहीं हैं?
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