बेबाक विचार

समझे, चीन हमसे कैसा व्यवहार करता है?

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समझे, चीन हमसे कैसा व्यवहार करता है?
चीन कैसे भारत को ट्रीट करता है? कैसे भारत से झगड़ता है? जवाब जानेंगे तो चीन की नियत, उसका भारत के प्रति भाव जहांसमझेंगे वहीं भारत की बेबसी भी। आप अपने घर में रहते हैं। अचानक एक दिन मोहल्ले का गुंड़ा आपके घर में घुस आता है। उसने पहले आपको मारा हुआ है। आप उसे घर से बाहर निकलने को कहेंगे। वह उलटे बैठ जाएगा। बोलेगा यह मेरा घर। तब आप तर्क देंगे- मुझे बाप-दादाओं, अंग्रेजों से घर-इलाका विरासत में मिला हुआ है। यह जन्म से मेरा घर है। गुंड़ा नहीं मानता। वह लठैतों से घर से चौकीदारों को पिटवाता है। घर मालिक हैरान-परेशान। वह रोता है। पड़ोसियों को इकठ्ठा करता है। गांव के चौधरी, अपने ट्रंप को फोन करता है। उनके आगे रोना रोते हुए घर में घुसे की शिकायत करते हुए चेताता है कि फिर हमें मत कहना क्यों लड़े। लेकिन घर मालिक के रोने-धोने, हल्ले, चेतावनी, बंदूक तानने का घर पर कब्जा बनाए गुंड़े पर फर्क नहीं पड़ता। तब मकान मालिक विनती, कूटनीति करता है। दुहाई देता है मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या नहीं किया! तुमसे धंधा किया। तुम्हारी दुकानदारी बढ़वाई। तुम्हें साबरमती के किनारे झूला झुलवाया। तुम्हें डांडिया डांस दिखवाया। इस विनती-कूटनीति पर गुंडा कुछ पसीजा। उसने कहा अच्छा ठीक है। तुम यह मकान छोड़ो। गली के उसे कोने में टेंट डाल कर रहो। इस घर पर ताला लगाते हैं। तुम घर छोड़ो, मैं भी अपनी जगह चला जाऊंगा। बाहर तुम अपना इलाका छोड़ इतने किलोमीटर दूर जा कर रहो। मैं अपनी जगह लौटता हूं। यह है सीमा क्षेत्र में चीन की दादागिरी। भारत गलवान घाटी में था। वहां भारत के सैनिक थे। चीन घुसा। भारत के सैनिकों से आमना-सामना हुआ तो चीनी सैनिकों ने बर्बरता से मारा। भारत ने हाथ-पांव पकड़ने की कूटनीति से मनाया तो चीन ने कहा तुम गलवान घाटी छोड़ो, पीछे हटो। तुम भी हटोगे हम भी हटेंगे। और शांत हो जाओ,चुपचाप धंधा करो। यहीं है रक्षा-सुरक्षा-विदेश नीति में भारत-चीन के परस्पर व्यवहार का सत्व-तत्व। इसे आप भारत की शूरवीरता, कूटनीतिक जीत मानें तो आपको मुबारक! यदि आप यह फील करें मैं बेघर हुआ, मुझे अपनी पुश्तैनी जगह छोड़नी पड़ी, गुंडे से अपमान हुआ तो आप अपमान में घुलते रहिए चीन का कुछ नहीं बिगड़ने वाला। दुनिया ने चीन से पूछा तो उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का सपाट जवाब था- गलवान घाटी पर (याकि भारत के बसे-बसाए घर पर) चीन का सार्वभौम मालिकाना हक है। कमांडर लेवल की वार्ता में जो सहमति हुई थी उसकी भारत की सेना पालना नहीं कर रही। भारत अपनी फ्रंट लाइन ट्रूप को रोके। उसे उकसाने वाला काम न करने दे। सोचें चीन का सन 2020 में भारत से कैसा बरताव हैं? इससे भी शर्मनाक और खून खौला देने वाला चीनी रिएक्शन वह था जब भारत ने चीन के 54 एप्स पर पाबंदी लगाई तो चीन से सुनने को मिला कि भारत का तो चीन में ऐसा कुछ (एप, सामान, चीन को नुकसान, घायल बनाने वाली कोई चीज) है ही नहीं, जो हम जवाब में कुछ करें! मतलब चीन को न अपने धंधे में नुकसान होने का डर है और न भारत का एक भी उत्पाद, सामान वहां ऐसा वजूद बनाए हुए है, जिस पर वह पाबंदी की सोचे! सचमुच चीनी नेताओं की भारत के प्रति हिकारत माओ के वक्त में जैसी थी वैसी शिन जिनफिंग के वक्त भी है। वह भारत को कुछ समझता नहीं है। अंग्रेजों से भारत को विरासत में प्राप्त मैकमोहन लाइन सीमा को नहीं मानता है तो सीमा विवाद को सुलटाने की सहमति की व्यवस्था को दशकों से वह ठंड़े बस्ते में डाले हुए है। घोषित तौर पर लद्दाख, अरूणाचल, सिक्किम याकि मंगोलाइड नस्ल के हर इलाके पर उसने दावा ठोका हुआ है। वह बिना लड़ाई लड़े धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ भारत से उसके सैनिक पीछे हटवा रहा है। अपना विस्तार कर रहा है। फिर भले भारत के प्रधानमंत्री बोलते रहें कि विस्तारवाद का जमाना नहीं है। भारत, भारत के प्रधानमंत्री, भारत के विदेश मंत्रालय के अफसरों और भारतीयों व खास तौर पर हिंदुओं ने समझा नहीं है कि चीन हमें क्या समझता है! उसका हमारे लिए क्या मोल है? वह हमारे चरित्र का क्या अर्थ निकाले हुए है? तभी चीन से लड़ाई लड़ने की हमारी रणनीति है ही नहीं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख जा कर बिना नाम लिए चीन से कहा- शांति के लिए भारत की प्रतिबद्धता से यह नहीं माना जाए कि भारत कमजोर है। लद्दाख में प्रधानमंत्री गरजे और उसके बाद के शनिवार के दिन खबर आई किचीन हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उसने आर्मी ड्रिल के नाम पर देपसांग और दौलत बेग ओल्डी में सेना तैनात की है। वह वहां निर्माण भी कर रहा है। शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन में तनाव कम करने के पंच बनने की उत्सुकता जतलाई। उसी दिन लद्दाख क्षेत्र की फारवर्ड पोस्ट पर रक्षा मंत्री राजनाथसिंह, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने सैनिक तैयारियों का जायजा लिया और रक्षा मंत्री ने कहा-भारत कमजोर नहीं है। हमारे स्वाभिमान पर कोई चोट नहीं कर सकता है। दुनिया की कोई ताकत हमारी एक इंच जमीन को छू भी नहीं सकती। भारत दुनिया का इकलौता देश है, जिसने विश्व में शांति का संदेश दिया है। हम अशांति नहीं शांति चाहते हैं। हमारा चरित्र रहा है कि हमने दुनिया के स्वाभिमान पर चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं की। लेकिन कोई हमारे स्वाभिमान पर चोट पहुंचाने की कोशिश करेगा तो मुंहतोड़ जवाब देंगे। क्या लातों के भूत बातों से मानते हैं? यदि चीन और पाकिस्तान का चरित्र लड़ाई लड़ने का है तो भारत में बातों के बजाय घर में घुसे गुंड़े को लात मार खदेड़ने की त्वरित कार्रवाई की हिम्मत होनी चाहिए या नहीं? गुंड़ा यों बदलेगा नहीं मगर वह तब जरूर ठिठकेगा जब उसे अहसास होगा कि भारत 1962 वाला नहीं है। चीन को भी लगे कि भारत उसे वैसे ही ठोक सकता है जैसे 1965, 1971  में पाकिस्तान को ठोका था या एटमी लड़ाई के खतरे के बावजूद भारत ने कारगिल में सीमित लड़ाई लड़ कर पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर किया था। भारत-चीन के मौजूदा टकरावसे चीन तनाव में नहीं है। वह भारत के विरोध, रोने-धोने को समस्या नहीं मानता। वह दुनिया से समस्या हुई बतला भी नहीं रहा। इसलिए क्योंकि वह भारत के घर में घुस कर, उससे घर खाली करवा कर मजे में है। सर्व भूमि गोपाल की प्रवृत्ति में चीन यदि भारत से अक्साई चीन, गलवान घाटीं, पैंगोग झील व देपसांग आदि एक-एक कर खाली कराता रहा तो उसकी क्या समस्या, उसका क्या तनाव?उसे पता है भारत लड़ेगा नहीं तो उसका विस्तारवाद आगे बढ़ता हुआ। क्या इस नियत, इस उद्देश्य, इस मनोभाव को भारत और भारत के हम नागरिक समझते है? नहीं, कतई नहीं। भारत के हम लोग अभी भी उस मानसिकता में जीते हैं कि हिमालय वह दीवाल है, वह बाधा है, जिससे चीन पार पा कर भारत में कब्जा नहीं बढ़ा सकता। औसत हिंदू को चीन इसलिए दुश्मन नहीं समझ आता है क्योंकि इतिहास में हिमालय सचमुच हमारा रक्षक था। ठीक विपरीत इस्लाम याकि पश्चिती सीमा, खैबर पार से हुए आक्रमणों का हिंदू अनुभव है इसलिए पाकिस्तान को दुश्मन समझना सहज-नैसर्गिक है। पर अब हम 21 वीं सदी में हैं। इसका यथार्थ चीन की पताका है। चीन न केवल सिल्क मार्ग याकि व्यापार के अपने वैश्विक रास्ते बना कर पूरे एशिया, अफ्रिका, यूरोप की और बढ़ रहा है बल्कि वह इस्लाम के साथ अपना साझा व सभ्यतागत एलायंस बनाता लगता है। आने वाले वक्त में संभव है कि यदि उसका पश्चिमी- लोकतांत्रिक देशों से टकराव हुआ तो वह इस्लाम के साथ वह गठजोड़ बनाए। उसमें उसका निर्णायक-अहम पार्टनर पाकिस्तान है और रहेगा। हमेशा के लिए याद रखें कि पाकिस्तान और चीन भारत के संदर्भ में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और लद्दाख में चीन अपने जो रास्ते, अपना जो इंफास्ट्रक्चर बना रहा है और उससे अफगानिस्तान, ईरान, इराक में वह जैसे आगे प्रभाव क्षेत्र बनाएगा वह भारत के लिए चुनौती व खतरा दोनों है। इससे अलावा मध्य एशिया में चीन का जो तानाबाना बना है वहभी चीन का इस्लाम से साझा बनवाएगा। यह न सोचें कि चीन के शिनज्यांग प्रांत के उइघर मुसलमानों पर जुल्म के चलते दुनिया की इस्लामी जमात भड़की रहेगी। उलटे पाकिस्तान-ईरान-सऊदी अरब सबके साथ साझा बना कर चीन आगे जम्मू-कश्मीर और भारत के मुसलमानों के मुद्दे पर वे पैंतरे चल सकता है,  जिससे वह इस्लामी जमात का चहेता, संरक्षक समझा जाए। यह सिनेरियो डरावाना है। तभी समझ नहीं आएगा कि चीन से लड़ें तो कैसे लड़ें? जवाब में पहली और निर्णायक बात है कि चीन को भारत पहले समझे। भारत अपनी रीति-नीति, चाल-चेहरे-चरित्र को चीन के संदर्भ में वैसा ही बनाए जैसे पाकिस्तान को ले कर है। पाकिस्तान की सीमा का एक्सटेंशन मानते हुए चीनी सीमा पर भी भारत की सेनाएं हथियार लिए हुए रहें और वह गोलीबारी में वैसी ही बेधड़क रहें, जैसे नियंत्रण रेखा पर होती है। जाहिर है तब बात भारत की लीडरशीप के फैसलों पर चली जाती है। इस पर कल।
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