बेबाक विचार

घाटी है भारत और शाह की परीक्षा

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घाटी है भारत और शाह की परीक्षा
भारत के आगे धारा- 370 के वक्त और उसके हटने के बाद भी चुनौती है कि कैसे मुस्लिम बहुलता की दलील खत्म हो? तभी अमित शाह और हिंदू राजनीति के आगे यह चुनौती है कि जैसे जम्मू में हिंदू-मुस्लिम साझा चुल्हा है तो वैसे ही जवाहर सुरंग के बाद घाटी में भी हिंदू-मुस्लिम की साझा आबादी की रिहायश बने। ताकि तालिबान हो या पाकिस्तान या इस्लामी देश व दुनिया में कहीं पर भी कश्मीर को ले कर जब विचार हो तो माना जाए कि शेष भारत में जैसे हिंदू-मुस्लिम साथ रहते हैं वैसे घाटी में भी रहते हैं। इसलिए कश्मीर का मसला अलग और खास नहीं, बल्कि भारत में धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने की अनिवार्यता है।  क्या इस पर काम होता हुआ है या सरकार के एजेडे में इसकी प्राथमिकता झलकती है? Truth of Kashmir Valley कश्मीर घाटी का सत्य-18 : कश्मीर घाटी के सत्य में मैंने जुलाई-अगस्त में 17 किस्तों में जो लिखा उसमें वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य के सिनेरियो पर आगे लिखता उससे पहले चंद दिनों में घटनाओं का वह अप्रत्याशित सिलसिला बना है कि आशंका और खौफ दोनों बढ़ गए है। 15 अगस्त को काबुल में तालिबानियों की जीत से घाटी की आबोहवा पर असर से यह सवाल गंभीर हुआ है कि क्या भारत राष्ट्र-राज्य के बस में घाटी को बचाना, उसे मुख्यधारा में घुलाना-मिलाना संभव है? क्या घाटी में हिंदुओं का जा कर बसना संभव है? क्या प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपने कार्यकाल में घाटी की आबादी के चरित्र में परिवर्तन ला सकते है? वहा क्या हिंदू-मुस्लिम का साझा चूल्हा बन सकेगा? दिल्ली में मोदी-शाह का राज कितना ही लंबा-स्थाई हो वह क्या घाटी को इस्लामियत से मुक्त करा उसका तालिबानीकरण रोक सकेगा? धारा-370 भले खत्म हो, श्रीनगर के दफ्तरों में तिरंगा फहराता मिले और जन्माष्टमी पर पूजा जैसे प्रायोजित फोटो सोशल मीडिया में चले लेकिन श्रीनगर में सेना के साये के बावजूद चंद हिंदू परिवार भी क्या बेखौफ जीवन जी सकते है? Truth of Kashmir Valley कश्मीर घाटी का सत्य-17:  घाटी है सवालों की बेताल पचीसी! सबसे गंभीर चिंता कि क्या घाटी बनाम जम्मू क्षेत्र में आज जैसा फर्क है, वैसा भविष्य में पूरे देश में हिंदू बनाम मुस्लिम के अलग-अलग गेटो बनने से हुआ याकि एक तरफ हिंदू मुस्लिम बहुल जम्मू तो दूसरी और जवाहर सुरंग के पार सौ फिसद इस्लामियत में रंगी आबादी जैसे गेटो बने तो क्या होगा?  विभाजकता के ऐसे घाव भारत में जगह-जगह बनें और राष्ट्र-राज्य में फफोलों की तरह यदि फैले तो क्या हिंदूशाही उन सबका प्रबंधन करने में सफल होगी? हिंदुओं की क्या है दीर्घकालीन भविष्यदृष्टि?  कैसे होगा प्रबंधन? जाहिर है ताकत से, सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस बंदोबस्तों से प्रबंधन होगा! तभी भविष्य के सिनेरियो में यह सकंल्प जरूरी है कि घाटी में सुरक्षा बलों की जब चौकसी है, कंट्रोल है तो पहली प्राथंमिकता हिंदुओं को वापिस लौटा कर हिंदू बस्तियों. आबादी को बसाने की होनी चाहिए। हिंदू पंडितों को, भारतीयों का बसना येनकेन प्रकारेण संभव बनाया जाए। फिर भले इजराइल की तरह जोर-जबरदस्ती से हिंदू बसावट बने। यदि यह काम नहीं होता है और घाटी इस्लामियत का गेटो बनी रहती हैं, दिन-रात, सालो-सालों उन पर निगरानी व सीमा पार से घुसपैठियों के आते जाने का सिलसिला चलता रहता है तो भारत कितने साल, कितने दशक ऐसे घाटी संभाले रहेगा? और किस कीमत पर? ये सवाल अफगानिस्तान में तालिबानी राज बनने के बाद अब जीवन-मरण के है। मोदी सरकार और गृह मंत्री अमित शाह सच्चाई से कितना ही मुंह मोडे, सत्य न बोले लेकिन अफगानिस्तान अब जिहादी लड़ाकों की स्थाई छावनी है और वहां से सर्वाधिक खतरा कश्मीर घाटी को है। यों पिछले महिने ऊरी क्षेत्र में हुई घुसपैठ की पूरी तस्वीर साफ नहीं हुई है और श्रीनगर में छोटे लड़के द्वारा पीछे से गौली चलाकर पुलिसजन को मारने-भागने के नए ट्रेंड, अनंतनाग में बरघशिखा भवानी के मंदिर में तोडफोड व हिंदुओं को निशाना बनाने के नए खतरे के ओर-छोर मालूम नहीं है लेकिन मौटे तौर पर जान ले कि तालिबानी राज से चरमपंथी अलगाववादियों के मंसूबे खौफनाक हो गए है। दुनिया अफगानिस्तान को भले अछूत रखे पर पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई और अफगानिस्तान में अफीम की खेती की तरह फलते-फूलते आईएस, अल कायदा, हक्कानी, तालिबानी आदि तमाम खानबदोश लड़ाको का रूट कश्मीर घाटी की और होगा। तभी सवा महिने में घाटी में चुनौती बदल गई है। जुलाई तक गृह मंत्रालय, सेना और श्रीनगर का आला तंत्र तिरंगा फहरवा कर माहौल खुशगवार बना रहा था अब वह अनिवार्यतः दिन-रात तालिबानी खतरे की चिंता में होगा। घुसपैठियों और घाटी के चरमपंथियों पर खौफ बनाने, उन्हे कसने के तौर-तरीके सोचे जा रहे होंगे। भारत राष्ट्र-राज्य के तमाम आला रणनीतिकार, सेना-सुरक्षा बलों के प्रमुख याकि घाटी में मोर्चा संभाले चेहरे ऊपर से कितने ही ‘नार्मंल’ दिखे, सब अंदर ही अंदर अगस्त से इस सत्य में जीते हुए होंगे कि वापिस वहीं खतरा! Truth of Kashmir Valley कश्मीर घाटी का सत्य-16: नब्बे का वैश्विक दबाव और नरसिंह राव यह होना था और आगे लगातार रहेगा। सन् 1947 से ले कर आज तक, धारा-370 के पहले और उसके हटने के बाद भी लगातार भारत की नंबर एक गलती रही और है जो सैनिक बल के बावजूद घाटी की आबादी की बुनावट में हिंदुओं की वहा ज़ड़े नहीं बनने दी, जड़े नहीं जमने दी। वहां जो हिंदू थे उनको भी भारत सुरक्षा नहीं दे पाया। न तब उनकी दुबारा बसावट हुई और न अब है। हां, जम्मू-कश्मीर के शेख अब्दुला से ले कर मेहबूबा मुफ्ती को खुश करने के लिए भारत के नेताओं ने धारा-370 से विशेष दर्जा देने और मोदी सरकार द्वारा उस दर्जें को खत्म करने के इतिहास में सेकुलर और हिंदूवादी किसी नेता का यह संकल्प कभी नहीं बना कि घाटी में जब इतनी जमीन खाली है तो उसे जम्मू के ही लोगों या शेष भारत के हिंदुओं को बांट कर वहा की आबादी बुनावट को बदले। धारा-370 का दर्जा देने के वक्त भी सुऱक्षा और मुसलमान को खुश करना प्राथमिकता थी तो धारा-370 हटने के बाद भी सुरक्षा की चिंता नंबर एक है। इस नाते जरा विचार करें कि इजराइल ने अपने यहां की समस्या में क्या किया? उसने सुरक्षा प्राथमिकता के साथ-साथ समानांतर इलाके और आबादी की बुनावट- आबोहवा बदलवाने की लगातार जद्दोजहद रखी! मतलब गृह मंत्रालय में यदि सुरक्षा पर फोकस है तो उसके साथ हर दिन, लगातार समांनातर फोकस इस एजेंडे पर भी हो कि कश्मीर घाटी की आबादी और इलाके के चरित्र को जैसे भी हो बदले। Truth of Kashmir Valley कश्मीर घाटी का सत्य-15:  एथनिक क्लींजिंगः न आंसू, न सुनवाई! क्यों? क्या इस कसौटी में गृह मंत्री अमित शाह कुछ करते हुए है? जम्मू-कश्मीर के मामले में बतौर गृह मंत्री अमित शाह र्निविवाद दबंग साबित है। उन्होने अपनी विचारधारा और हिंदू राजनीतिक दर्शन के चेहरे-मोहरे के नाते वह किया जिससे एक देश, दो संविधान की विसंगति खत्म हुई। जम्मू-कश्मीर सचमुच भारत के संविधान को लागू करने वाला हुआ। तभी बतौर गृह मंत्री अनुच्छेद 370 खत्म करवाने का पांच अगस्त 2019 का उनका काम संघ परिवार, हिंदू राजनीति का अपूर्व-ऐतिहासिक दिन था। उस दिन एक देश में दो संविधान और 1947 के बाद जम्मू कश्मीर को ले कर हुई गलतियों का झेलम में अस्थि-विसर्जन था! बावजूद इसके, धारा-370 हटने के बाद भी इतिहास का जिन्न तो जस का तस है! घाटी कहां बदलती हुई है? सन् 1947 में कश्मीर घाटी जो थी उससे अधिक क्या वह आज इस्लामियत में रंगी हुई नहीं है? इस सच्चाई का अर्थ है कि आबादी में मुस्लिम बहुलता और उसकी वजह से भारत की धर्मनिरपेक्षता, सनातनी हिंदू के सर्वधर्म समभाव को इस्लाम का ठेंगा। भारत की एकता-अखंडता को खतरा और सैन्य बल की भारी तैनाती के साथ संसाधनों की भयावह बरबादी के बावजूद स्थायी नासूर! जाहिर है अनुच्छेद 370 के खत्म होने और जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन से समस्या की जड़, बुनावट, प्रकृति का निदान नहीं है। भारत के आगे तब भी चुनौती थी और आज भी है कि कैसे मुस्लिम बहुलता की दलील खत्म हो? तभी अमित शाह और हिंदू राजनीति के आगे यह चुनौती है कि जैसे जम्मू में हिंदू-मुस्लिम साझा चुल्हा है तो वैसे ही जवाहर सुरंग के बाद घाटी में भी हिंदू-मुस्लिम की साझा आबादी की रिहायश बने। ताकि तालिबान हो या पाकिस्तान या इस्लामी देश व दुनिया में कहीं पर भी कश्मीर को ले कर जब विचार हो तो माना जाए कि शेष भारत में जैसे हिंदू-मुस्लिम साथ रहते हैं वैसे घाटी में भी रहते हैं। इसलिए कश्मीर का मसला अलग और खास नहीं, बल्कि भारत में धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने की अनिवार्यता है। क्या इस पर काम होता हुआ है या सरकार के एजेडे में इसकी प्राथमिकता झलकती है? इस पर कल। (जारी)  
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