मुझे खबर सुन हंसी आई। दुख हुआ और पुरानी यादें ताजा हुई! हंसी इसलिए कि मुसलमान के मुंह से मोहन भागवत को राष्ट्रपिता और राजऋषि जैसे जुमले मिले। जो किसी हिंदू ने कभी नहीं कहा वह एक इमाम ने कहां। दुख इसलिए कि मोहन भागवत और संघ के टॉप पदाधिकारियों को मजार और मसजिद पर मत्था टेकना ही था तो कोई दूसरी मसजिद नहीं हो सकती थी? उन्हे मौलाना इलियासी की अवैध मसजिद ही मिली। तभी आरएसएस और उसके प्रमुख का ऐसी जगह, ऐसे इमाम के यहां जाना कट्टर मुसलमानों की छाती को कितना व कैसा चौड़ा कर गया होगा? मुसलमान अब यह कहे तो गलत नहीं होगा कि देखों मोहन भागवत मसजिद में अमन के कबूतर उडाने आए। नरेंद्र मोदी चीते छोड़ते है और भागवत मसजिद में आ कर कबूतर उड़ाते है।
लोगों को पता नहीं होगा की मोहन भागवत नई दिल्ली के कस्तूरबा रोड के एक चौराहे के सर्कल के बीच जिस मसजिद में गए। वह अवैध है। इसके जिन दो इलियासी भाईयों ने भागवत एंड पार्टी को गले लगाया, उन्हे राष्ट्रपिता कहां उसमे एक भाई शुहेब इलियासी पर हिंदू लड़की से शादी, दहेज हत्या का आरोप है। वह मामला अभी शायद सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर सुनवाई में हैं। दूसरा इमाम भाई मौलाना उमर इलियासी और कथित इमाम संघ की मुसलमानों में साख जीरो है। जामा मसजिद की इमाम, मौलाना मदनी जैसों की प्रतिष्ठा के सामने कुछ नहीं। इनके पिता जमीर इलियासी और इमाम संगठन सरकारी खुफिया एजेंसी आईबी और सत्ता के मुस्लिम ठेकेदारों जैसे किशोरी लाल, एनके शर्मा से संचालित रहा है। मैं इन सबका, मुस्लिम राजनीति का ऐसा खेल इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर पीवी नरसिंहराव के वक्त से देखता आ रहा हूं। गपशप कॉलम में इनके बहुत किस्से लिखे है।
तभी मुझे भारत राष्ट्र-राज्य की अंग्रेज आईबी एजेंसी की वे तमाम करतूते, मूर्खताएं याद हो आई है जो इंदिरा गांधी के वक्त से मैं देखता-बूझता आया हूं और जो आज नरेंद्र मोदी के वक्त में भी होते हुए है।
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मगर पहले, हंसी का कारण। मतलब संघ प्रमुख मोहन भागवत का मसजिद में जा कर राष्ट्रपिता की पगडी पहनना। कृष्ण गोपाल, रामलाल और इंद्रेश की टॉप संघ लीडरशीप के साथ मसजिद की चौखट पर मत्था झुका कर इलियासी भाईयों का कसीदा सुनना। निश्चित ही संघ के इतिहास की एक अनहोनी व अकल्पनीय बात! इसलिए नया इंडिया के अपने स्तंभकार डा वेदप्रताप वैदिक का मासूम भोलेपन में यह सोचना गलत नहीं कि मोहन भागवत से भारत में नई विचारधारा की गंगा फूट पड़ी है! हिंदू-मुसलमान का एकमेक हो जाएगा। आर्यावर्त के एकसूत्र में दक्षिण एसिया बंधेगा। यही असली भारत जोड़ो है। और इस गंगौत्री, इस भारत जोड़ों का उद्गम स्थल है इलियासी की मसजिद!
तभी वाह! क्या बात है। कोई सीखे हम हिंदूओं से मुंगेरीलाल के सपनों में जीना! तभी हिंदुओं के इतिहास में सत्ता द्वारा भोली हिंदू प्रजा व डा वैदिक, और संघ के भोले मोहन भागवत को बहलाना, झूठ में जीना कितना सहज और आसान है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोवाल ने संघ और उनके हिंदू भारत को वैसे ही उल्लू बनाया है जैसे राजीव गांधी, बूटासिंह और तब के आईबी चीफ कभी मंदिर-मसजिद के शिलान्यास जैसे फार्मूले निकलवाते थे या कभी अली मिंया से लेकर इमाम बुखारी और मदनी को पटाते थे। फुरफुरी पैदा करके आशा की किरणे चमकाते थे।
सोचे, हम हिंदू हजार साल क्यों गुलाम रहे है और हिंदुओं के संकल्पों और आईडिया में डफरपन, मुंगेरीलाल वाली एप्रोच कैसे बनती आई है? इसकी वजह का रियल सत्य है कि लोग हमेशा सत्ता और कोतवालों, पुलिस, अंग्रेजों की आईबी याकि जासूसी एजेंसियां मतलब सीबीआई, रॉ, आईबी के झांसों में, नौकरी लोलुप एप्रोच में रही है। इसका अनुभव मैं इंदिरा गांधी के वक्त से ले कर मोदी सरकार, ताजा मोहन भागवत के प्रकरण तक में बूझता हूं। मैं भारत के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (पुलिस और आईबी के पुराने अफसर) अजीत डोवाल से कभी प्रभावित नहीं रहा। बावजूद इसके मैं उनके ईमानदार अफसर के इंप्रेसन में सोचता था कि वे राष्ट्रवादी-सत्यनिष्ठ और राष्ट्र चौकीदार के सचमुच चौकीदार होंगे। मगर वे भी क्योंकि कोतवाल परंपरा के आईपीएस है तो जैसे हिंदुओं के राजाओं के वक्त था, नेहरू के वक्त था वैसा ही उनकी नौकरीनिष्ठा से मोदी के आठ सालों का अनुभव हुआ है। कौम व प्रजा पहले नहीं बल्कि नौकरी दाता राजा प्रथम। उसे खुश-बेफिक्र रखों। याद करें मुगल हमलावर दिल्ली के पचास-सौ किलोमीटर दूर जब पहुंचते थे तो दरबारी मंत्री हिंदू राजा को क्या कहता था? हुकूम चिंता नहीं करें। पांच सौ घोडे आ रहे है, आप तो ईश्वर के अवतार है, अपनी हाथियों की सेना है। मगर जब गौरी-गजनवी पहुंच जाते थे तो क्या होथा था। हाथी बिगड़ जाते थे। तख्त पर सुल्तान बैठ जाते थे। राजे-रजवाड़े और दरबारी, कोतवाल उन्ही के मनसबदार हो जाते थे।
आजाद भारत के इतिहास में भी ऐसा दो बार हुआ है। सन् 1960 में अक्साई चीन में चीन की सेनाएं चुपचाप भारतीय इलाकों में घुसते हुए थी, कब्जा करते हुए थी तो अजीत डोवाल के ही पूर्ववर्ती आईबी चीफ बीएन मलिक प्रधानमंत्री मोदी को रिपोर्ट देते थे कि हुकुम, सब ठिक है। चंद जगह, चंद चाईनीज सैनिक बेकार के बंजर इलाकों में घूम रहे है। और याद करें भारत ने तब कितनी जमीन गंवाई। कोई साठ साल बाद मलिक की परंपरा में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने अपना क्या इतिहास बनाया? सीमा के भीतर, भारत के सैनिकों की नियमित पेट्रोलिंग के इलाकों में चाईनीज घुस आए, कई जगह छोटे ही सही अपने कब्जे बनाए। मगर अजीत डोवाल ने राजा नरेंद्र मोदी और राजा ने प्रजा को क्या जानकारी दी हुई है? सब ठिक है। कब्जा हुआ ही नहीं। और इस भरोसे में हम हिंदू, हमारे भोले डा वैदिक, संघ व मोहन भागवत यह पूछने की हिम्मत भी नहीं रखते कि हुकूम तब सीमा को ले कर चीन से भला क्या और क्यों बात हो रही है? वह आक्रामक है या नहीं?
विषयांतर हो गया हैं। मुस्लिम प्रसंग पर लौटे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सन् 2024 के चुनाव मिशन का तानाबाना बुनते हुए है। उन्हे संघ परिवार पर सौ फिसद पकड चाहिए। साथ ही कुछ नए वोटों का जुगाड जरूरी है। सो उनके हालिया तीन कामों पर गौर करें। सर्वप्रथम उन्होने भाजपा के संसदीय बोर्ड से गडकरी जैसे उन चेहरों को बाहर निकलवाया जो सन् 2024 तक की सियासी-आर्थिक बरदबादियों से उनकी लीडरशीप पर प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर चर्चा या संघ परिवार की चिंताओं को उठाएं। दूसरा काम, हाल में रायपुर में संघ पदाधिकारियों की बैठक में जेपी नड्डा को वापिस पार्टी अध्यक्ष बनवाने की सहमति का हुआ। तीसरा काम विजयवाड़ा की कार्यकारिणी बैठक में गरीब-पिछड़े मुसलमानों के वोट लेने के लिए पार्टीजनों को कहां। निश्चित ही मुसलमान को बांट कर रिच आउट का आईडिया अजीत डोवाल और विदेश मंत्री जयशंकर की हुकुम को यह समझाने से भी है कि दुनिया में बदनामी बढ़ रही है और हुकूम आप तो जादूगर है। गरीब मुसलमान भी आपका राशन, नमक खाता है तो इमामों का एक संगठन है और मुसलमानों को पटाने, हैंडल करने का हम लोगों का पुराना अनुभव है तो वोटों की नई रणनीति बनाते है।
आईडिया क्लिक हुआ! एक तीर से कई निशान। सत्य है कि पिछले आठ वर्षों में मुस्लिम संगठन पीएफआई तेजी से बढा है। नफरत की आबोहवा में हिंदू एक तरफ गोलबंद है तो मुसलमान और खासकर गरीब, पसमांदा में पीएफआई चुपचाप फैला है। इससे देवबंद, बरेलवी याकि मदनी और अली मिया की विरासत के जितने भी पुराने संगठन है, उनका असर घटा है। तभी अर्से से पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई संभावना बनी हुई थी। उधर मोहन भागवत अपने भोलेपन में अखंड भारत, हिंदू व मुसलमान दोनों के एक डीएनए की नई विचारधारा की गंगौत्री के भागीरथ बनने के सपने पहले से ही देखते हुए थे।
सो रोडमैप बना। इधर पीएफआई पर छापे, गृह मंत्री अमित शाह का बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल, पूर्णियां आदि जा कर हिंदू वोटों में जान फूंकना और उधर मोहनजी की पहले फारवर्ड याकि असराफ मुसलमान प्रतिनिधि चेहरों से गुफ्तंगू करवाना और फिर मसजिद, मजार और मदरसे मे जा कर उनका डीएनए से
डीएनए मिलाना।
और हासिल क्या? वही जो स्क्रीप्ट थी। मैं नहीं मानता कि हिंदी के जिन शब्दों, जिस भाषा में मोहन भागवत के लिए जुमलों का इस्तेमाल हुआ वैसी मौलाना इलियासी की हिंदी होगी। उस नाते बतौर ‘राष्ट्रपिता' मोहन भागवत को संबोधन से डोवाल-मोदी से जहां संघ आलाकमान खुश तो भक्त हिंदुओं में उलटे उनका मोदी के मुकाबले ग्राफ का गिरना! कुछ भी हो ऐसे कभी प्रधानमंत्री मोदी तो मसजिद नहीं गए। जाहिर है अपने आप भक्तों में मोदी बनाम मोहन भागवत की तुलना होगी और सत्ता सर्वोच्च न कि सगंठन!
इसलिए जो है, जो हुआ है वह हम लोगों के दिल्ली दरबार और भोली प्रजा और भोले लोगों का भोला अनुभव है। भोला छल है। सत्ता की वर्चस्वता में किसी का राष्ट्रपिता भी हो जाना है। दिल्ली की सत्ता ऐयारी से क्या-क्या नहीं हो जाता? 97 साला सगंठन के चरित्र निर्माण के बाजे बजने से लेकर राष्ट्रपिता बनने तक!
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