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बिहार में प्राथमिकता गठबंधन की है

बिहार में चाहे भाजपा हो या कांग्रेस और राजद, जदयू सबकी प्राथमिकता गठबंधन की है। सब किसी न किसी समय चोट खाए हुए हैं इसलिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। पिछली बार यानी 2019 में राजद ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था और लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। उससे पहले यानी 2014 में जदयू ने अकेले लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उसे सिर्फ दो सीटें मिली थीं। भाजपा ने 2015 में बिना जदयू के विधानसभा का चुनाव लड़ा था और उसको कुल 54 सीटें मिली थीं। उपेंद्र कुशवाहा ने पिछली बार भाजपा का साथ छोड़ कर राजद के साथ लड़ा और लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाए थे। सो, सभी पार्टियां अपने अपने अनुभव के आधार पर गठबंधन को प्राथमिकता दे रही हैं। सबको ऐसा गठबंधन बनान है, जिसमें वे चुनाव जीत सकें।

तभी राजद नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी के तमाम नेताओं को दो टूक मैसेज दिया है कि उनको गठबंधन के बारे में कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है। तेजस्वी ने कहा कि न नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनने की जल्दी है और न खुद उनको बिहार का मुख्यमंत्री बनने की जल्दी है। तेजस्वी ने महागठबंधन में कोई गड़बड़ी नहीं है और सब कुछ ठीक चल रहा है। सो, उन्होंने नीतीश कुमार की राह निष्कंटक कर दी है। गठबंधन पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन जदयू के नेता खतरा महसूस करने लगे हैं। उनको लग रहा है कि अगर भाजपा ने मान लिया कि नीतीश अब उसके साथ नहीं आएंगे राजद की तरह ही जदयू नेताओं और उनके करीबियों पर भी केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसेगा। तभी कहा जा रहा है कि नीतीश के सबसे करीबी तीन नेता उनके ऊपर दबाव बनाए हुए गठबंधन तोड़ने का।

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