पटना। बिहार में करीब तीस-पैंतीस साल पहले एक वह भी दौर था, जब जानकारों द्वार प्रवासी पक्षी (Migratory Bird) के आने के दावे को मजाक उड़ाया जाता था। लेकिन, आज बिहार में पक्षियों की गणना (Census) हो रही है और इस साल तो 75 स्थलों पर एशियाई जल पक्षी की गणना की योजना बन रही है।
जानकार बताते हैं कि उस दौर में भूले-भटके बाहर से कोई पक्षी बिहार के किसी हिस्से में आते थे तो उन्हीं की बातें यहाँ के डाटा में नजर आती थी या फिर ब्रिटिश काल के गजेटियर में कुछ पक्षियों का जिक्र मिलता था, तब बिहार-झारखंड एक ही हुआ करता था।
बिहार में 90 के दशक की शुरूआत से मंदार नेचर क्लब के बैनर तले पक्षियों के जानकार अरविन्द मिश्रा के नेतृत्व में बिहार के चुनिंदा पक्षी स्थलों का अध्ययन शुरू किया गया, जिनमें भागलपुर की गंगा और इसके कोल-ढाब, जमुई के नागी-नकटी, कटिहार के गोगाबील और साहिबगंज (झारखण्ड) की उधवा झील (Udhwa Lake) प्रमुख थे। मिश्रा बताते है कि तब वन्य-जीवों की श्रेणी में बड़े जानवरों को ही गिना जाता था। आज भी वन विभाग के प्रशिक्षुओं को जैव-विविधता के प्रमुख जीव पक्षियों के बारे में कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता।
कहा जाता है कि बिहार में दो-तीन दशकों से पक्षियों के क्षेत्र में बदलाव आया है। सरकार की नजर भी पक्षी आश्रयणियों पर पड़ी और इसकी महत्ता भी बढ़ी। स्थानीय लोगों के प्रयास से बिहार के पक्षी आश्रयणियों को देश के महत्वपूर्ण पक्षी स्थलों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पुस्तक में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा सन 2004 में शामिल किया गया।
बिहार सरकार ने भी सन 2013-14 में बर्डस इन बिहार पर पुस्तकें प्रकाशित की। वर्ष 2015 में विश्व का एकमात्र गरुड़ सेवा एवं पुनर्वास केंद्र भागलपुर में बनाया गया तथा 2020 में देश का चौथा बर्ड रिंगिंग सेंटर बिहार के भागलपुर में स्थापित हुआ। मिश्रा बताते है कि 90 के दशक के शुरुआती काल से ही मंदार नेचर क्लब वेटलैंड्स इंटरनेशनल के एशियाई जल पक्षी गणना में भाग लेता रहा है।
स्टेट कोऑर्डिनेटर मिश्रा बताते हैं कि 2022 में बिहार में एशियाई जल पक्षी गणना का कार्य ऐतिहासिक रहा जिसे राज्य के मुख्य वन्य-प्राणी प्रतिपालक प्रभात कुमार गुप्ता और गया के वन संरक्षक सुधाकर सथियासीलन की अगुवाई में वन विभाग के सहयोग से किया गया।
इस गणना में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। बिहार की अनेक संस्थाओं और संस्थानों ने उनके सदस्यों के साथ ही निजी तौर पर पक्षियों में रूचि रखने वाले लोगों के साथ ही वन विभाग के तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों तथा स्तानीय लोगों ने सैकड़ों की संख्या में भाग लिया। इस दौरान 67 स्थलों पर जल पक्षियों की गणना के साथ उन जलाशयों की स्थिति, उनकी उपयोगिता, उन जलाशयों और पक्षियों पर मंडराने वाले खतरों की भी निगरानी की गई।
भागलपुर और जमुई में प्रशिक्षित बर्ड गाइड्स ने भी इसमें हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि अभी बिहार के 300-400 युवा और बुजुर्ग बर्ड वाचिंग से जुड़े हैं जो भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है। इस वर्ष करीब 100 स्थलों पर एशियाई जल पक्षी गणना की योजना बन रही है।
मिश्रा कहते है कि पक्षी प्रमियों की बढ़ती संख्या और उनमें पनपती रूचि के कारण अब बिहार में पक्षियों की ऐसी-ऐसी प्रजातियां भी सामने आ रही है, जिनकी हम पहले कल्पना भी नहीं करते थे। बिहार की धरोहर अब दुनियां को भी दिखने लगी है। इनमें फालकेटेड डक, बैकाल टील, ईस्टर्न ओर्फियन वार्बलर, गूजेंडर, ब्राउन हॉक आउल और येलो थ्रोटेड स्पैरो जैसे अनेक पक्षी शामिल हैं।
मुख्य वन्य-प्राणी प्रतिपालक प्रभात कुमार गुप्ता बताते हैं कि नये साल में एशियन वाटर बर्डस सेंसस के तहत प्रवासी और घरेलू जलीय पक्षियों की जनगणना होगी। यह जनगणना बिहार के दो दर्जन से अधिक जिलों में होगी। यह जनगणना मिनिस्ट्री ऑफ इनवायरॉनमेंट फॉरेस्ट एंड क्लाइमेंट चेंज द्वारा होगा। यह कार्य दूसरी बार कराया जा रहा है। इसके पहले यह जनगणना वर्ष 2022 के जनवरी-फरवरी में कराया गया था, जिसका अच्छा परिणाम आया था। (आईएएनएस)