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विवादों के लिए याद रहेगा झारखंड गवर्नर रमेश बैस का कार्यकाल

रांची। झारखंड के राज्यपाल (Jharkhand Governor) रमेश बैस (Ramesh Bais) का तबादला महाराष्ट्र हो गया है। झारखंड में दसवें राज्यपाल के तौर पर बैस का करीब एक साल आठ महीने का कार्यकाल राजनीतिक विवादों के लिए याद किया जाएगा। तकरीबन एक दर्जन से भी ज्यादा मौकों पर राज्यपाल रमेश बैस और राज्य की मौजूदा हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार के बीच विवाद, टकराव और परस्पर असहमति के हालात बने।

एक तरफ जहां राज्यपाल ने झारखंड में ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी के गठन के मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण की शिकायत केंद्र तक पहुंचाई, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन ने उनपर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने और राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल पैदा करने के आरोप लगाए।

राज्यपाल रमेश बैस के किसी वक्तव्य, बयान या फैसले से ज्यादा एक महत्वपूर्ण मसले पर उनकी चुप्पी और अनिर्णय ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के लिए सबसे ज्यादा मुश्किलें खड़ी कीं।

यह मसला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम पर पत्थर खदान की लीज आवंटन पर खड़ा हुए विवाद से जुड़ा है। सीएम रहते हुए खदान की लीज लेने पर इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग को लेकर बीते साल फरवरी में भाजपा राज्यपाल रमेश बैस के पास पहुंची थी।

राज्यपाल ने भाजपा की इस शिकायत पर केंद्रीय चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा। इस पर आयोग ने शिकायतकर्ता भाजपा और हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर इस मामले में उनसे जवाब मांगा। दोनों के पक्ष सुनने के बाद चुनाव आयोग ने बीते साल 25 अगस्त को राजभवन को सीलबंद लिफाफे में अपना मंतव्य भेज दिया था।

अनऑफिशियली ऐसी खबरें तैरती रहीं कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को दोषी मानते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है और इस वजह से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी जानी तय है।

राज्यपाल रमेश बैस ने चुनाव आयोग से आए सीलबंद लिफाफे पर चुप्पी साधे रखी और इससे राज्य में सियासी सस्पेंस और भ्रम की ऐसी स्थिति बनी कि सत्तारूढ़ गठबंधन को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति एकजुटता जताने के लिए डिनर डिप्लोमेसी और रिजॉर्ट प्रवास तक के उपक्रमों से गुजरना पड़ा।

चुनाव आयोग की चिट्ठी के अनुसार राज्यपाल की ओर से किसी संभावित प्रतिकूल फैसले की आशंका के चलते हेमंत सोरेन सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत का प्रस्ताव तक पारित करने की मशक्कत करनी पड़ी। इतने सब के बावजूद राज्यपाल रमेश बैस ने चिट्ठी का रहस्य नहीं खोला।

बीते एक साल आठ महीने में एक दर्जन से भी ज्यादा मौके आए, जब राज्यपाल रमेश बैस ने सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर सवाल उठाये हैं।

बीते साल फरवरी महीने में उन्होंने राज्य में ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई सवाल उठाये थे। उन्होंने इस नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी। उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबिधत फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा था।

इस मसले पर राजभवन और सरकार का गतिरोध आज तक दूर नहीं हुआ। इसके अलावा राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड विधानसभा में सरकार द्वारा पारित विधेयकों को विभिन्न वजहों से सरकार को लौटाने के मामले में भी रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित नौ बिल अलग-अलग वजहों से लौटाए।

रमेश बैस ने पिछले साल मई में रांची में हुई सांप्रदायिक हिंसा, जेपीएससी के रिजल्ट से जुड़े विवादों और कानून-व्यवस्था में गिरावट जैसे प्रकरणों पर भी हस्तक्षेप किया था। अलग-अलग विभागों की समीक्षा बैठकों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी उन्होंने राज्य सरकार के विजन से लेकर उसके निर्णयों पर सवाल उठाए थे। (आईएएनएस)

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