देवभूमि उत्तराखंड की चार धाम यात्रा में केदारनाथ धाम का विशेष स्थान है। यह पवित्र स्थल वह है जहाँ सृष्टि का आरंभ और अंत एक साथ प्रतीत होते हैं। हिमालय की गोद में स्थित यह मंदिर भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति का साक्षात अनुभव कराता है। माना जाता है कि इस तीर्थ यात्रा से न केवल जीवन में आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि मृत्यु के बाद मोक्ष भी सुनिश्चित हो जाता है।
शिव पुराण में वर्णित है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार भी केदारनाथ धाम की यात्रा करता है, वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवलोक की प्राप्ति करता है।
केदारनाथ मंदिर के दर्शन के बाद वहां स्थित पवित्र कुंडों का जलपान करने से व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। केदारनाथ धाम की महिमा, उसकी अध्यात्मिक ऊर्जा और महत्व का विस्तृत वर्णन शिव महापुराण में मिलता है, जो इसे संपूर्ण भारतवर्ष के श्रद्धालुओं के लिए एक अनिवार्य तीर्थ बनाता है।
केदारनाथ धाम के दीपक का रहस्य
हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह अनेक रहस्यों को भी अपने भीतर समेटे हुए है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह तीर्थस्थल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे पंच केदार का भी हिस्सा माना जाता है।
मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों के वंशज महाराज जनमेजय ने करवाया था, और कालांतर में इसका पुनर्निर्माण आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया। यह स्थल शिवलोक कहलाता है और यहां का हर पत्थर भी शिव तत्व का आभास कराता है।
केदारनाथ मंदिर साल में छह महीने श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है और छह महीने बर्फबारी और भीषण सर्दी के कारण केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन इसके भीतर स्थित एक दिव्य रहस्य हर किसी को हैरान कर देता है — वह दीपक, जो सदियों से जलता आ रहा है।
जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, तब भी यह दीपक अनवरत जलता रहता है। न तो बर्फबारी, न तूफान और न ही ऑक्सीजन की कमी इस दीपक को बुझा पाई है। वैज्ञानिक तौर पर इसका कोई प्रमाणित उत्तर नहीं मिल पाया है कि बिना देखभाल के यह दीपक कैसे जलता रहता है। परंतु स्थानीय लोग और श्रद्धालु इसे भगवान शिव की लीला मानते हैं।
बंद मंदिर में भी बजती है घंटियां…
इतना ही नहीं, जब मंदिर बंद होता है, तब कई बार वहां से घंटियों की आवाजें सुनाई देती हैं — जैसे कोई आरती या पूजा हो रही हो। लोककथाओं और शिव पुराण की मान्यताओं के अनुसार, जब मंदिर बंद रहता है, तब देवतागण स्वयं वहां पूजा करते हैं। यानी, जब छह महीने मनुष्य शिव की आराधना करते हैं, तो बाकी छह महीने देवता स्वयं वहां उपस्थित होकर शिव पूजन करते हैं।
यह रहस्य केदारनाथ धाम की दिव्यता और चमत्कारों को और अधिक गहराई देता है। आज भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि आखिर यह दीपक किस शक्ति से जलता है, लेकिन श्रद्धा रखने वालों के लिए यह कोई सवाल नहीं, बल्कि शिव की कृपा का जीवंत प्रमाण है। यही कारण है कि केदारनाथ धाम न केवल एक तीर्थ है, बल्कि आस्था, चमत्कार और दिव्यता का जीवंत संगम भी है।
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