भोपाल। इलाहाबाद में पुलिस की गिरफ्त में जिस प्रकार जय राम का नारा लगाते हुए तीन हत्यारों ने आतिक और उसके भाई पर गोली बरसाई वह उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के बुल्डोजर संस्क्राति का ही परिणाम है। बिना कानून के मकानों को ढहाना और बदले की भावना से पोलिस का इस्तेमाल भी योगी सरकार की खासियत बन चुकी है। कितना लुंज –पुंज है योगी का शासन कि पुलिस की हिरासत में भी हत्या हो जाती हैं। यह घटना उन 17 पुलिसकर्मियों की नालायकी ही है, जिसके लिए उनका निलंबन कोई इलाज़ नहीं है। बिना पुलिस की मिलीभगत के ऐसी वारदात संभव ही नहीं है। एवं पुलिस का ऐसा रुख बिना किसी प्रशासनिक और राजनीतिक दबाव के संभव नहीं होता।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बिरला मंदिर में गोली मारने वाले नाथु राम गोडसे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था। पर उसे अदालत से ही सज़ा मिली। यह था सत्तर साल का कानून का शासन। उसे किसी ने गोली से नहीं मारा ! श्रीमति इन्दिरा गांधी की हत्या करने वाले बलबीर सिंह को भी गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया गया फिर फांसी की सज़ा हुई। यह था काँग्रेस का न्याय ! राजीव गांधी की हत्या भी तमिल उग्रवादियों ने बम से हत्या की, उस घटना के अपराधियों को सज़ा हुई किसी ने उन लोगों को गोली नहीं मारी ! अदालत में मुकदमा चला और सज़ा हुई। अभी नलिनी एक अभियुक्त को दया याचिका पर रिहाई भी हुई।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो के हत्यारे सुच्चा सिंह को भी नेपाल से गिरफ्तार कर भारत लाया गया। मुकदमा चला और सज़ा हुई। दूसरे मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की भी हत्या हुई एवं उनके हत्यारे आज भी जेल काट रहे हैं। इन घटनाओं का उल्लेख इसलिए ज़रूरी है कि जब ऐसे विशिष्ट लोगोंं की हत्या हुई तब भी पुलिस ने अपना ”वैधानिक काम किया। उन्होने अपने – अपने नेताओं के हत्यारों को भी अदालत के द्वारा जेल के सीखचों में या फांसी के तख्ते तक पहुंचाया।
परंतु भगवाधारी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी का राजनीतिक बड़बोलापन और एक वर्ग विशेष के प्रति उनका आक्रोश कहे या चिड़ जिसके कारण उनका बुलडोजर सिर्फ मुस्लिमों के ही मकान और दुकान पर चलता हैं। उत्तर प्रदेश के अवैध कालोनाइजर जिस प्रकार जमीनों पर अतिक्रमण कर बिल्डिंग और घर तान देते हंै उनके लिए योगी के बुलडोजर के पास शायद अनुमति ही नहीं होती। जैसा कि अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों के भ्रष्टाचर की जांच के लिए सरकार द्वारा मुकदमा चलाने की अनुमति को रोक रखना। वैसे यह बीजेपी शासित राज्यों में आम रिवाज है। मध्यप्रदेश में लोकयुक्त ने 23 अफसरों के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने की अनुमति सालों से नहीं दी गयी है।
आतीक एक सजा-याफ्ता था जिसकी पुलिस की हिरासत में मौत के जिम्मेदार पुलिसजनों के विरुद्ध हत्या के अपराध में सहयोग देने का मुकदमा कानूनी तौर पर चलना चाहिए। परंतु योगी सरकार का ट्रैक रेकॉर्ड देखते हुए ऐसा होगा संभावना कम ही हैं। क्यूंकि गोरखपुर में कानपुर के एक व्यापारी की पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर हत्या की गयी, उसके दोषी सब इंस्पेक्टर को निलंबित कर गिरफ्तार तो किया गया। परंतु मामले को इतना कमजोर कर दिया गया कि उसके खिलाफ कोई आरोप सिद्ध ही नहीं होगा। उधर बीजेपी के लोगों ने कानपुर में म्रतक व्यापारी के परिवार को आर्थिक सहायता देकर उनको भी माना लिया।
कानून और पुलिस की कार्रवाई से वाकिफ लोग इस घटना को मुख्यमंत्री के उस गर्जना से भी जोड़ रहे हैं कि प्रदेश में माफियाओं को जमीन में गाद दूंगा अब आतिक और अशरफ दोनों मुसलमान है उन्हें तो जमीन में ही दफनाया जाएगा। पर जिस तरह से उनकी हत्या को अंजाम दिया गया – उसके राजनीतिक संबंधों से इंकार नहीं किया जा सकता। क्यूंकि हत्यारों द्वारा जय श्रीराम का नारा बुलंद करना और फिर सहज रूप से अपने को सरेंडर करना -काफी अटपटा लगता है। आमतौर पर पुलिस अभिरक्षा में यदि किसी पर हमला होता हैं – तब तैनात पुलिस जन अपने हथियारों का इस्तेमाल करते है। परंतु जिस प्रकार इस हत्यकाण्ड की लाइव स्ट्रीमिंग हुई वह मात्र संयोग नहीं हो सकता। दूसरे एक फोटो में पुलिस वाला जिस प्रकार हत्यारे को पीठ से पकड़ रहा हैं – वह साफ करता हैं कि उसकी नियत मुक़ाबला करने अथवा रोकने की तो नहीं थी।
सरकार द्वारा जिस प्रकार आरोपियों को अपराधी बता कर एङ्कौंटर करती हैं उसकी बेईमानी हैदराबाद में तीन लोगों का इङ्कौंटर की न्यायिक जांच में उजागर हो चुकी है। न्यायालय ने दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। जिसका परिणाम अज्ञात हैं..!
उत्तरप्रदेश पुलिस धरम के आधार पर विष वमन करने वाले गेरुआधारी कथा वाचकों और स्वयंभू महात्माओं के विरुद्ध कानून की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के बारंबार निर्देशों के बाद भी नहीं होती – क्यूंकि शायद वह सरकार को माफिक लगता हैं।
एक खबर यह भी आ रही हैं की काश्मीर के पूर्व गवर्नर सतपाल मालिक द्वरा कारण थापर को दिये गए इंटरव्यू में दावा किया है की पुलवामा कांड के लिए आतंकवादियो से ज्यड़ा केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं। उन्होने दावा किया की उन्होने गृह मंत्री और प्रधान मंत्री से कहा था की सैनिको को इतनी दूर सड़क मार्ग से ले जाना खतरे से खाली नहीं है। अतः सैनिको के लिए वायु सेना के पाँच जहाज इस काम को सुरक्शित रूप से कर सकते हैं। परंतु उन्हे केंद्र ने इस मसले पर छुपा रहने की हिदायत दी थी। गौर तलब है की प्रधान मंत्री ने पुलवामा कांड को लेकर पाकिस्तान पर आरोप लगया था –और लोकसभा चुनावो में पहली बार वोट डालने वाले युवको को शहीद सैनिको की कसं भी दिलाई थी। एक खबर यह भी है की मीडिया में कारण थापर और सतपाल मालिक के साछटकार को जगह नहीं मिले इसकी भी कोशिस किए जाने की बात काही जा रही हैं।