मध्य प्रदेश

शिवराज का 'इकबाल बुलंद' फैसला प्रशासनिक संदेश 'राजनीतिक'

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शिवराज का 'इकबाल बुलंद' फैसला प्रशासनिक संदेश 'राजनीतिक'
भोपाल। मध्य प्रदेश के नए मुख्य सचिव के तौर पर इकबाल सिंह बैंस के नाम को ही अगले 6 माह के लिए हरी झंडी मिलने के साथ ही एक साथ कई संदेश चले गए.. 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले इकबाल सिंह की 6 मई के लिए सेवा वृद्धि का फैसला प्रशासनिक लेकिन बड़ा वह भी स्पष्ट संदेश पूरी तरह से राजनीतिक ही माना जाएगा.. संदेश चुनाव लड़ने वाले टिकट के दावेदार ..लड़ाने वाले खुद को शिवराज का विकल्प और उत्तराधिकारी मानने वाले ... यही नही चौहान को चुनाव में हराकर जीत का ताज पहनने वालों के लिए भी छुपा है.. जो सिर्फ सोचने को नहीं बल्कि रणनीति समय रहते बदल देने की जरूरत को भी महसूस कराता है.. बेहतर विकल्प का अभाव या सबसे बडे दावेदार अनुराग जैन की दिल्ली में ही ज्यादा उपयोगिता या फिर किसी तीसरे नाम पर मतभेद के साथ सहमति का अभाव ..जो भी स्थिति बनी बड़ा संदेश साफ.. पार्टी का सशक्त शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से शिवराज सिंह चौहान के साथ .. जिसने चेहरा घोषित ना करते हुए भी शिवराज को सामने रखकर चुनाव में जाने के अपने इरादे बता दिए.. इसके संकेत मोदी ने श्री महाकाल लोक के लोकार्पण से लेकर कूनो पार्क में अफ्रीकन चीते छोड़े जाने के वक्त सामने लाई गई तस्वीरों के जरिए दे दिया था.. उसके बाद से ही शिवराज का अंदाज ए बयां हो या फिर मंच साझा कर जनता कार्यकर्ता और हितग्राहियों से संवाद का तौर तरीका बदल लिया था.. गुजरात चुनाव के परिणामों के बाद मध्यप्रदेश में नई सियासी स्क्रिप्ट का सपना सच होने वालों के लिए भी यह प्रशासनिक फैसला बड़ा झटका देकर सामने आया है.. सस्पेंस सिर्फ इकबाल की नई पारी का खत्म नहीं हुआ बल्कि महत्वकांक्षी हो या विरोधी विध्वंसक या फिर समर्थक संदेश अपनी सुविधा से समझ सकते हैं.. विधानसभा चुनाव 2023 अब शिवराज के नेतृत्व में ही होंगे .. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद तीसरा बड़ा और मध्य प्रदेश भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा अब चौहान का ही होगा.. मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की इस जोड़ी के नए सिरे से कदमताल करने के साथ ही संदेश साफ है कि अब वह दिन दूर नहीं जब शिवराज मंत्रिमंडल का पुनर्गठन भी जल्द कर लिया जाएगा.. तो संगठन भी टिकट के क्राइटेरिया पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा..शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेकर सभी को चौंकाया था.. ये वही शिवराज थे जिन्होंने राजनीतिक अस्थिरता के दौरान कभी अपनी ही पार्टी के बाबूलाल गौर की जगह लेकर मुख्यमंत्री की पहली बार शपथ ली थी.. तो कमलनाथ सरकार के तख्तापलट के बाद फिर उपजी राजनीतिक अस्थिरता के दौर में शिवराज ने अपनी अहमियत का बखूबी एहसास कराया.. विरोधियों से ज्यादा अपनी ही पार्टी की घेराबंदी को तोड़कर चौहान ने साबित किया कि चुनौतियों से निपटना और अपने नेतृत्व का लोहा मनवाना उन्हें बखूबी आता है.. अटल- आडवाणी का दौर हो या फिर मोदी - शाह की भाजपा शिवराज ने तमाम अटकलों को निराधार साबित कर सरकार की कमान खुद संभाली कभी पकड़ कमजोर नहीं होने दी और उसे निरंतरता भी दी.. शिवराज को कहां सम्मान देकर खुद झुकना और किसे थका थका कर झुकाना समर्पण के लिए मजबूर कर देना बखूबी आता है.. अपने चौथे कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने समय समय पर लगने वाली अटकलबाजियों पर विराम लगाते हुए अपना इकबाल बुलंद किया है। कहने वाले भले ही उन्हें मिल रहे सियासी मौकों के लिए उनके इकबाल(खुशकिस्मती) को वजह बताएं ..मगर ये उनके सौभाग्य से ज्यादा मध्यप्रदेश में उनके किए गए कामकाज,विकासकार्यों और उनकी छवि का नतीजा है कि लगातार 15 साल सरकार चलाने के बाद भी जनता से उन्हें इकबाल(स्वीकृति) मिलता रहा है। मेहनत की पराकाष्ठा कुछ अलग विश्वस्त कार्यशैली और किस्मत के धनी शिवराज का इकबाल बुलंद है ..क्योंकि जिन्हें लोग उनकी कमजोरी मानते उसे उन्होंने ताकत में तब्दील कर एक ऐसी लाइन खींच दी है ..जिसे छोटा साबित करना आने वाली पीढ़ी के लिए आसान नहीं होगा.. सही समय पर अपने पत्ते खोलने वाले शिवराज को अच्छी तरह मालूम है कि इस वक्त सबसे बड़ा संकट भरोसे का चाहे फिर वह वल्लभ भवन का गलियारा हो या विधानसभा से लेकर जनता की अदालत.. इसे 2018 विधानसभा चुनाव की चूक को ध्यान में रखते हुए गलती दुरुस्त कर 2023 में नया संदेश देने से जोड़ कर देखा जा सकता है.. इसके लिए बिसात बिछाने की शुरुआत इकबाल सिंह की सेवा वृद्धि से शुरू हो चुकी है.. केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीत कर संदेश संगठन के साथ मध्य प्रदेश भाजपा के दूसरे नेताओं को भी दे दिया..ऐसा नहीं की चीफ सेक्रेटरी के दावेदारों के नाम पर सत्ता संगठन और पर्दे के पीछे संघ में भी डिस्कशन नहीं किया गया होगा.. इस महत्वपूर्ण संदेश को अब टिकट के दावेदारों के साथ प्रशासनिक अमले और संगठन के शिल्पी को भी समझना होगा.. क्योंकि शिवराज की जन हितैषी योजनाओं के साथ मोदी सरकार की प्राथमिकताओं को समय रहते पूरी कर हितग्राहियों को वोट बैंक में तब्दील करने की जिम्मेदारी पार्टी कार्यकर्ता और लोअर ब्यूरोक्रेसी की पहले ही सुनिश्चित की जा चुकी है.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भरोसे में लेकर शिवराज का यह फैसला चुनावी साल में गौर करने लायक है.. जिन्होंने तमाम कयासों के बीच अपने पत्ते नहीं खोले.. अनुराग जैन को दिल्ली से भोपाल भेजे जाने पर सहमति नहीं बन पाने के कारण इकबाल का रास्ता खुल गया.. यह कहना गलत नहीं होगा कि बदलती बीजेपी और बदलते राजनीतिक परिदृश्य में सुलेमान जैसे वैकल्पिक नाम पर सहमति नहीं बन पाने और पहले से ही बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे टीम मोदी के भरोसेमंद अनुराग जैन से दिल्ली की बढ़ती अपेक्षाओं के कारण इकबाल सिंह की एक और पारी खेलने की मुराद भी पूरी हो गई... भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद इकबाल की पहली पोस्टिंग 21 जनवरी 1993 को सीहोर जिले में हुई थी.. यह वह जिला है जिसका प्रतिनिधित्व शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश विधानसभा में करते हैं.. शिवराज ने विधानसभा का पहला चुनाव सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा क्षेत्र से 1990 में जीता था.. सीहोर के अलावा खंडवा, गुना, भोपाल के कलेक्टर रह चुके इकबाल सिंह मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव, प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव की भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं.. मुख्य सचिव बनने से पहले कृषि ,उद्यानिकी, ऊर्जा ,विमानन ,पंचायत एवं ग्रामीण विकास संसदीय कार्य के अलावा आबकारी आयुक्त में काम कर चुके हैं ..जुलाई 2013 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर संयुक्त सचिव तो उन्हें अगस्त 2014 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विशेष आग्रह के साथ केंद्र से मध्यप्रदेश बुला लिया था.. 2018 विधानसभा चुनाव में कमलनाथ की सरकार बनने के साथ ही इकबाल सिंह को राजस्व मंडल ग्वालियर भेज दिया गया था.. लेकिन 2020 में कांग्रेस की सरकार गिर जाने के बाद जब मुख्यमंत्री की शपथ शिवराज सिंह चौहान ने ली .. तब गोपाल रेड्डी को हटाकर इकबाल सिंह को चीफ सेक्रेट्री बना दिया गया था.. बदलती बीजेपी में नरेंद्र मोदी को यदि मध्य प्रदेश में आज भी अनुभवी शिवराज पर भरोसा है.. तो शिवराज ने भी अनुभवी नौकरशाह इकबाल पर अपना भरोसा जताया.. संदेश साफ चुनौतियां समय के साथ न सिर्फ बदल चुकी बल्कि ज्यादा भी हो चुकी है.. ऐसे में अनुभव ही जीत का रास्ता दिखा सकता है..
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