चंडीगढ़। प्रख्यात पंजाबियों के व्यापक स्पेक्ट्रम (Broad Spectrum) का प्रतिनिधित्व करने वाले वक्ताओं ने ज्ञानी गुरदित सिंह (Gurdit Singh), जिन्होंने अमर ‘मेरा पिंड’ लिखा था और उनकी पत्नी इंद्रजीत कौर (Indrajit Kaur), जो उत्तर भारत की पहली महिला वाइस चांसलर बनीं, के जीवन पर केंद्री सिंह सभा परिसर में शनिवार को में चर्चा की। सिख विद्वानों और पंजाबी बुद्धिजीवियों ने दो व्यक्तित्वों की 100वीं जयंती मनाई, जो अपने-अपने चुने हुए क्षेत्रों के शिखर पर पहुंचे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पंजाबी साहित्य और धर्म में ज्ञानी गुरदित सिंह का योगदान मील के पत्थर की तरह है। इस अवसर पर इन दोनों व्यक्तित्वों को समर्पित मासिक पत्रिका कौमी सिंह (Qaumi Singh) सभा पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया गया। भाई अशोक सिंह बागरिया (Ashok Singh Bagaria) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे ज्ञानी गुरदित सिंह की पुस्तक ‘मुंडावनी’ और गुरुओं की शिक्षाओं पर उनके शोध ने सिख धार्मिक प्रवचन को स्पष्टता प्रदान की।
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पंजाब (Punjab) के पूर्व डिप्टी स्पीकर बीर देविंदर सिंह (Bir Devinder Singh) ने कहा कि ज्ञानी गुरदित सिंह अपने शोध और लेखन के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध थे। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे उन्होंने सिखों के पांचवें तख्त के रूप में तख्त दमदमा साहिब पर शोध करने और स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सीनियर एडवोकेट मंजीत सिंह खेड़ा (Manjit Singh Kheda) ने कहा कि ज्ञानी गुरदित सिंह वास्तव में अपने लक्ष्यों पर केंद्रित थे और उनमें दृढ़ता थी। उन्होंने केंद्री सिंह सभा की स्थापना और सिंह सभा आंदोलन को पुनर्जीवित करने में प्रमुख योगदान दिया। उन्होंने 1950 के दशक से ज्ञानी गुरदित सिंह के साथ अपने जुड़ाव को याद किया। कमलेश उप्पल, जिन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में थिएटर विभाग (Theater Department) का नेतृत्व किया, ने कहा कि ज्ञानी गुरदित सिंह पंजाबी भाषा, जीवन शैली, रीति-रिवाजों और आध्यात्मिकता के एक कलाकार थे जिसने पंजाब में जीवन को आधार बनाया।
उप्पल ने कहा कि उन्होंने इस प्रतिभा को ‘मेरा पिंड’ के माध्यम से व्यक्त किया, जो पंजाब में धर्मनिरपेक्ष जीवन के लिए एक विश्वकोश बन गया। रंजीत पोवार (Ranjit Powar), एक पूर्व प्रशासक और लेखक, ने युगल की दुर्लभ क्षमता के बारे में बताया, भले ही वे अपने-अपने क्षेत्र की ऊंचाइयों पर पहुंच गए हों। पोवार ने कहा कि दो दिग्गज हस्तियों के बीच अहं का टकराव हो सकता था, लेकिन इसके विपरीत, वे एक-दूसरे के समर्थक थे। पंजाबी विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की निवेदिता सिंह (Nivedita Singh) ने बताया कि किस प्रकार कुलपति के रूप में इंद्रजीत कौर ने गुरुमत संगीत के अकादमिक अध्ययन की नींव रखने के अलावा विश्वविद्यालय में बाबा फरीद चेयर और पंजाबी सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना की। उन्होंने अपने मृदुभाषी तरीके और छात्रों को प्रेरित करने की क्षमता को याद किया।
उच्च शिक्षा की किसी भी डिग्री के बिना, ज्ञानी गुरदित सिंह को सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यूनेस्को ने उनकी किताब ‘मेरा पिंड’ को पुरस्कार से भी नवाजा। ज्ञानी गुरदित सिंह ने ऐसे संस्थानों का निर्माण किया जो उन्हें खत्म कर चुके हैं, जो कई वक्ताओं के बीच एक आम बात थी, जिसमें केंद्रीय गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष शाम सिंह, बलदेव सिंह प्रिंसिपल, श्री गुरु ग्रंथ साहिब विद्या केंद्र, दिल्ली, पत्रकार और लेखक रूपिंदर सिंह, जो ज्ञानी गुरदित सिंह के बेटे हैं और चेतन सिंह, पूर्व निदेशक, भाषा विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय व अन्य लोग शामिल थे। इस अवसर पर जसवीर सिंह श्री द्वारा लिखित उपन्यास ‘शाह सवार’ का भी विमोचन किया गया। (आईएएनएस)