Kale Hanuman Mandir Jaipur: भारत में हनुमान जी के मंदिरों की कोई कमी नहीं है, लेकिन कुछ मंदिर अपनी विशेषताओं के कारण अनोखे और अद्वितीय हो जाते हैं।
ऐसा ही एक मंदिर है राजस्थान के जयपुर में चांदी के टकसाल क्षेत्र में स्थित काला हनुमान मंदिर। हाल ही में मकर सक्रांति के मौके पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस ऐतिहासिक मंदिर के दर्शन किए।
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर जब वसुंधरा राजे इस मंदिर में पहुंचीं, तो उनका मंदिर के महंत द्वारा दुपट्टा पहनाकर अभिनंदन किया गया।
इस दौरान मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। माना जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहां पर विराजित हनुमान जी की प्रतिमा काले रंग की है। आम तौर पर, हनुमान जी की प्रतिमा सिंदूरी रंग की होती है, जो उनकी शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है।
लेकिन इस मंदिर में स्थापित काले रंग की बजरंगबली की मूर्ति अपने आप में अद्भुत और दुर्लभ है।
यह प्रतिमा मंदिर को न केवल खास बनाती है, बल्कि इसके पीछे छिपी पौराणिक कहानी भी लोगों की उत्सुकता बढ़ाती है। इस कारण इस मंदिर का नाम काले हनुमान मंदिर पड़ गया।
also read: महाकुंभ 2025 : अमृत स्नान को लेकर श्रद्धालुओं पर हुई पुष्पवर्षा
“लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर,
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।”
ये चौपाई भगवान हनुमान को समर्पित है. इस चौपाई का अर्थ है- हे हनुमान जी, आपके लाल शरीर पर सिंदूर शोभायमान है. आपका वज्र के समान शरीर दानवों का नाश करने वाला है।
स्पष्ट रूप से उनके लाल रंग और शक्तिशाली शरीर का वर्णन करती है। इसके बावजूद इस मंदिर में हनुमान जी की काली प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति मान्यता और आस्था का प्रतीक है, जो भक्तों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने का भरोसा देती है।
कहां है यह मंदिर?
हनुमान जी का यह काली मूर्ति वाला मंदिर जयपुर के हवामहल के पास स्थित है. इस मंदिर को काले हनुमान जी के नाम से जाना जाता है।
जयपुर के हवामहल के पास स्थित काले हनुमान जी का मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।
यह मंदिर न केवल भगवान हनुमान के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी विशेषताएं इसे और भी खास बनाती हैं।
यहां भगवान हनुमान की काली मूर्ति पूर्वमुखी रूप में स्थापित है, जो वर्षों पहले यहां प्रतिष्ठित की गई थी।
वैसे तो यहां रोजाना ही भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन मंगलवार के दिन यहां हनुमान जी के भक्तों की जमकर भीड़ उमड़ती है. मंदिर में हनुमान जी की पूर्वमुखी स्थापित है, जो सालों पहले स्थापित की गई थी।
हनुमान जन्मोत्सव और अन्य त्योहारों पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। लेकिन इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां तेज आवाज में पाठ करना मना है।
जहां अन्य मंदिरों में घंटी-घड़ियाल और जोरदार आरती का माहौल होता है, वहीं इस मंदिर में भक्त शांति और ध्यान के साथ भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।
जयपुर के इस मन्दिर के बारे में जहां तेज आवाज में पाठ करना मना है इस मंदिर में ना तो घंटी घड़ियाल बजाते हैं और ना ही जोर-जोर से भगवान की आरती गाई जाती है।
जहां अन्य मंदिरों में घंटी-घड़ियाल और जोरदार आरती का माहौल होता है, वहीं इस मंदिर में भक्त शांति और ध्यान के साथ भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।
मंदिर में प्रसाद और माला लाना भी मना है बाहर से लाए हुए फूल प्रसाद भी भगवान को नहीं चढ़ाए जाते । प्रसाद फूल बाहर से हीं अर्पण करके भक्तों को वापस दे दिया जाता है। वही मंदिर में डोनेशन भी नहीं लिया जाता है
काले हनुमान जी की कहानी(Kale Hanuman Mandir Jaipur)
देशभर में हनुमान जी के और भी कई मंदिर है जहां उनकी काली रंगी की मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। हर मंदिर के प्रचलित होने के पीछे की एक रहस्यमयी कहानी होती है। काले हनुमान जी मंदिर के स्थापित होने और मूर्ति के काले होने की एक अनोखी कहानी है।
पौराणिक कथाओं में भगवान हनुमान जी का जीवन अद्भुत शक्तियों और प्रेरणाओं से भरा हुआ है। उनके जीवन से जुड़ी ऐसी ही एक कथा है, जिसमें शनिदेव के साथ उनकी भेंट और वरदान का उल्लेख मिलता है।
जब हनुमान जी ने अपने गुरु सूर्यदेव से शिक्षा ग्रहण कर ली, तो उन्होंने अपने गुरु से गुरु दक्षिणा देने की इच्छा व्यक्त की।
इस पर सूर्यदेव ने कहा कि उनके पुत्र शनिदेव उनकी आज्ञा नहीं मानते हैं और अपने पिता से दूरी बनाए हुए हैं। सूर्यदेव ने हनुमान जी से निवेदन किया कि वे शनिदेव को वापस ले आएं। सूर्यदेव ने यह कार्य ही अपनी गुरु दक्षिणा के रूप में मांगा।
गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमान जी शनिदेव के पास पहुंचे। उन्होंने शनिदेव से प्रार्थना की कि वे अपने पिता सूर्यदेव के पास लौट जाएं।
लेकिन शनिदेव ने हनुमान जी की बात सुनने से इनकार कर दिया। जैसे ही शनिदेव ने हनुमान जी को देखा, उनका क्रोध बढ़ गया।
शनिदेव ने अपने क्रोध में आकर हनुमान जी पर अपनी वक्र दृष्टि (कुदृष्टि) डाल दी। शनिदेव की दृष्टि का प्रभाव ऐसा होता है कि जिस पर वह पड़ती है, उसका जीवन कठिनाइयों और दुखों से भर जाता है।
हनुमान जी का काला रंग
शनिदेव की वक्र दृष्टि का प्रभाव हनुमान जी पर पड़ा, और उनका रंग काला पड़ गया। लेकिन, हनुमान जी पर शनिदेव की दृष्टि का कोई अन्य नकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ।
उनकी शक्ति और दृढ़ता ने शनिदेव को हरा दिया। हनुमान जी की भक्ति, शक्ति और समर्पण से शनिदेव अत्यंत प्रसन्न हुए।
उन्होंने वचन दिया कि जो भी भक्त शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा, उस पर शनिदेव की वक्र दृष्टि का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह वरदान हनुमान जी के भक्तों के लिए एक विशेष आशीर्वाद बन गया।
यह कथा हनुमान जी की गुरु भक्ति, साहस और परोपकार को दर्शाती है। शनिदेव से जुड़े इस प्रसंग के कारण ही शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
भक्त इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और उनकी कृपा से अपने जीवन के कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।(Kale Hanuman Mandir Jaipur)
हनुमान जी और शनिदेव की इस कथा के पीछे छिपा संदेश यह है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना और समर्पण किसी भी बाधा को दूर कर सकता है। यह कहानी हनुमान जी की शक्ति और उनके भक्तों पर उनकी असीम कृपा का प्रतीक है।
लंका दहन की जुड़ी कथा
जयपुर में स्थित काले हनुमान जी का मंदिर न केवल अपनी अनोखी मूर्ति और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और वास्तुकला से जुड़े पहलू इसे एक खास पहचान देते हैं।
यह मंदिर हनुमान जी के काले स्वरूप, रघुनाथ जी के चित्रण, और 12 राशियों व 9 ग्रहों को समर्पित संरचना के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान हनुमान ने लंका दहन किया, तो सोने की लंका जलने से निकले रासायनिक धुएं ने उनके शरीर को काला कर दिया।
इस कारण से उनका स्वरूप काला हो गया। इस मंदिर में हनुमान जी के उसी काले स्वरूप की पूजा होती है।
मंदिर की प्रतिमा में एक और दिलचस्प दृश्य दर्शाया गया है—अहिरावण द्वारा भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल ले जाने का चित्रण। यह मूर्ति न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हनुमान जी की अद्भुत शक्ति और साहस को भी उजागर करती है।
रघुनाथ जी का मंदिर
मंदिर के भीतर रघुनाथ जी का भी एक मंदिर स्थित है। यहां भगवान राम और सीता के साथ भगवान विष्णु विराजते हैं। यह मंदिर इस मायने में अद्वितीय है कि इसमें भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के पारंपरिक स्वरूप के बजाय भगवान विष्णु को राम और सीता के साथ पूजा जाता है।
रघुनाथ जी की प्रतिमा में सीता स्वयंवर के दौरान भगवान राम द्वारा शिव धनुष भंग का दृश्य दर्शाया गया है। इस स्वरूप को राम और विष्णु का एकल रूप माना गया है, जो भगवान की अद्वितीय दिव्यता का प्रतीक है।
मंदिर की संरचना और ज्योतिषीय महत्व
मंदिर के 12 दरवाजे 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह डिज़ाइन इस मंदिर को ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाता है। मंदिर के अंदर 9 खाने हैं, जो 9 ग्रहों को समर्पित हैं।
यह संरचना यह दर्शाती है कि यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक बल्कि खगोलीय और ज्योतिषीय महत्व भी रखता है। मंदिर में कुल 84 खंभे हैं, जो इसकी भव्यता को और भी बढ़ाते हैं। इन खंभों पर intricate नक्काशी और अद्वितीय चित्रण किए गए हैं।
मंदिर का इतिहास
मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह के पुत्र ईश्वरी सिंह ने करवाया था। कहा जाता है कि यह मंदिर पहले एक महल था, जिसमें बाद में भगवान हनुमान और रघुनाथ जी की मूर्तियां स्थापित की गईं।
इस मंदिर का सारा चित्रण प्रसिद्ध महाकाव्य ‘ईश्वर विलास’ में किया गया है। इसे कवि कलानिधि भट्ट ने लिखा था। यह महाकाव्य मंदिर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को बखूबी दर्शाता है।
यह मंदिर न केवल भक्ति और आस्था का केंद्र है, बल्कि यह वास्तुकला, पौराणिकता, और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां आने वाले भक्त हनुमान जी और रघुनाथ जी की पूजा कर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद पाते हैं।
अगर आप जयपुर के इस मंदिर में जाएं, तो आप न केवल इसकी भव्यता का अनुभव करेंगे, बल्कि इसकी गहरी पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी महसूस करेंगे। यह मंदिर हर दृष्टि से एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अद्भुत स्थल है।
धागा बांधने से जुड़ी मान्यता
काले हनुमान मंदिर को लेकर एक अनोखी मान्यता है कि यहां से बजरंगबली के आशीर्वाद से बना चमत्कारी नजर का डोरा, जिसे बनवाने के लिए विदेश तक से लोग यहां आते हैं.
मंदिर में नजर का यह डोरा विशेष रूप से बच्चों के लिए बनता है, जिससे बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहता है. साथ ही साथ लोग अपने बच्चों को यहां दूर-दूर से हनुमानजी के दर्शन कराने के लिए लाते हैं.