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लाट साहब के अनोखे जुलूस के लिए प्रशासन सतर्क

शाहजहांपुर। शाहजहांपुर में होली (Holi) पर ‘लाट साहब’ (‘Lat Saheb’) का अनोखा और अजीबोगरीब जुलूस निकाले जाने का रिवाज हर साल लोगों के कौतूहल का विषय बनता है। इस साल भी इस जुलूस के लिए तैयारियां जोरों पर हैं और इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन बहुत एहतियात बरत रहा है।

‘लाट साहब’ का जुलूस शाहजहांपुर शहर कोतवाली क्षेत्र के फूलमती देवी मंदिर से शुरू होता है। लाट साहब के तौर पर एक व्यक्ति को चुना जाता है लेकिन उसकी पहचान गुप्त रखी जाती है। जुलूस संपन्न होने के बाद उसे तरह-तरह के पुरस्कारों और नकदी से नवाजा जाता है।

लाट साहब का जुलूस काफी दिलचस्प और अनोखा होता है। इसमें काले लिबास पहने ‘लाट साहब’ की पहचान छुपाने के लिए उसे हेलमेट पहनाया जाता है। शहर स्थित देवी मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद लाट साहब भैंसा गाड़ी पर डाले गए तख्त पर विराजमान होते हैं। उनके साथ चलने वाले होरियारे उन्हें झाड़ू से बने पंखे से हवा करते हैं। इतना ही नहीं, वे होलिका माता का जयकारा करते हुए लाट साहब को जूते भी मारते हैं।

किसी नाटक के भव्य और यथार्थपूर्ण मंचन सा लगने वाला यह जुलूस जब कोतवाली के अंदर प्रवेश करता है तो कोतवाल परंपरागत रूप से लाट साहब को सलामी देते हैं। उसके बाद लाट साहब कोतवाल से पूरे वर्ष हुए अपराधों का ब्यौरा मांगते हैं तो कोतवाल उन्हें एक शराब की बोतल तथा नगद धनराशि इनाम में देते हैं।

यह जुलूस कोतवाली क्षेत्र से शुरू होकर चार किलोमीटर का सफर तय करता हुआ थाना सदर बाजार क्षेत्र तक जाकर लौटता है। यह बड़े लाट साहब का जुलूस होता है। शहर में लाट साहब के छह अन्य जुलूस भी निकलते हैं जो अलग-अलग मोहल्लों में आयोजित किए जाते हैं।

स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रभारी डॉक्टर विकास खुराना ने इस जुलूस के इतिहास के बारे में रविवार को बताया कि रोहिलखंड के नवाब अब्दुल्ला खान बहादुर रोहिल्ला ने वर्ष 1730 में शाहजहांपुर में हिंदू-मुस्लिमों के साथ मिलकर होली खेली थी। फिर हिंदुओं के आग्रह पर नवाब ऊंट पर बैठकर किले के बाहर निकले तो दोनों धर्मों के लोगों ने नारा लगाया कि नवाब साहब आ गए।

इसी घटना की याद में हर साल होली पर एक जुलूस निकाले जाने का रिवाज शुरू हुआ। बाद में इसे लाट साहब का जुलूस का नाम दे दिया गया। उन्होंने बताया कि नवाब अब्दुल्ला खां अंग्रेजों के कट्टर विरोधी थे। वर्ष 1857 की क्रांति के बाद तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के इशारे पर खां की याद में निकाले जाने वाले इस जुलूस का स्वरूप बदल दिया गया और समय के साथ यह और विकृत होता चला गया। आज आलम यह है कि इस जुलूस में लाट साहब को जूते तक मारे जाते हैं। अपनी तरह के इस अकेले और अजीबोगरीब जुलूस की चर्चा पूरे देश में होती है।

इस बार भी लाट साहब के जुलूस के लिए तैयारियां जोरों पर हैं और पुलिस प्रशासन इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए बहुत एहतियात बरत रहा है। जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह ने बताया कि लाट साहब के जुलूस के लिए 12 जोनल मजिस्ट्रेट, 13 सेक्टर मजिस्ट्रेट, 24 उप सेक्टर मजिस्ट्रेट एवं 87 स्टैटिक मजिस्ट्रेट बनाए गए हैं। स्टैटिक मजिस्ट्रेट संवेदनशील स्थानों पर तैनात रहेंगे। बाकी मजिस्ट्रेट पूरे जुलूस मार्ग पर तैनात किए जाएंगे।

अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) त्रिभुवन ने बताया कि लाट साहब के विभिन्न जिलों के रास्तों में पड़ने वाली सभी मस्जिदों को प्लास्टिक से पूरी तरह ढक दिया गया है। इसके अलावा जुलूस मार्ग में निकलने वाली छोटी-छोटी गलियों को भी अवरोधकों से बंद कर दिया जाएगा। पूरे जिले में धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई है।

पुलिस अधीक्षक एस. आनंद ने बताया कि लाट साहब के जुलूस के लिए उन्होंने प्रशासन से पांच पुलिस क्षेत्राधिकारी स्तर के अधिकारियों, एक कंपनी रैपिड एक्शन फोर्स, एक कंपनी पीएसी, 200 थाना प्रभारी निरीक्षक तथा 800 कांस्टेबल की मांग की है। इसके अलावा स्थानीय अभिसूचना इकाई द्वारा संदिग्ध लोगों तथा उपद्रवियों को भी चिन्हित किया जा रहा है। उपद्रवियों पर पैनी नजर रखी जाएगी किसी भी कीमत में हम माहौल खराब नहीं होने देंगे। (भाषा)

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