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राजद्रोह कानून पर रोक

ByNI Desk,
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राजद्रोह कानून पर रोक
नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने के बने राजद्रोह कानून पर आखिरकार विराम लग गया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बड़े फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए पर रोक लगा दी। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि जब तक केंद्र सरकार इस कानून के सभी पहलुओं पर गौर करती है तब तक यह कानून स्थगित रहेगा और इसके तहत कोई नया मुकदमा नहीं दर्ज किया जाएगा। इससे पहले केंद्र सरकार ने इस कानून के बारे में यू-टर्न लेते हुए कहा था कि वह इस पर पुनरीक्षण और पुनर्विचार के लिए तैयार है। सरकार के बदले रुख के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि सरकार के पुनरीक्षण की समय सीमा क्या होगी और उस बीच इस कानून की क्या स्थिति रहेगी? उसके एक दिन बाद बुधवार को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक उचित मंच अंग्रेजों के राज में बने इस कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई एफआईआर दर्ज नहीं की जाए। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की एक पीठ ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा- आईपीसी की धारा 124ए मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है। अदालत ने इसके साथ ही इस कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार की अनुमति भी केंद्र सरकार को दे दी। अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए जुलाई के तीसरे सप्ताह की तारीख तय की और कहा कि उसके सभी निर्देश तब तब लागू रहेंगे। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस कानून से प्रभावित कोई भी पक्ष संबंधित अदालतों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से कहा कि वे मौजूदा आदेश को ध्यान में रखते हुए मामलों पर विचार करें। सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा- हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र और राज्य नई एफआईआर दर्ज करने, आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे। गौरतलब है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और कुछ अन्य ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। इस पर सुनवाई के दौरान पहले तो केंद्र सरकार ने इस कानून को बनाए रखने की बात कही थी। लेकिन दो दिन बाद ही उसने आजादी के अमृत महोत्सव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भावना का हवाला देते हुए कहा कि वह इस पर पुनरीक्षण और पुनर्विचार के लिए तैयार है। सरकार के रुख बदलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगा दी।
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