नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने जम्मू कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर केंद्र सरकार से श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। कांग्रेस ने यह सवाल भी उठाया है कि सरकार की ओर से कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस लौटने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि वहां उनकी जान को खतरा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्या हुई है, जिसके बाद कहा जा रहा है कि ऐसे परिवार भी घाटी छोड़ने लगे हैं, जिन्होंने नब्बे के दशक में भी घाटी नहीं छोड़ी थी। हालांकि जिला प्रशासन इससे इनकार कर रहा है।
राज्य में कश्मीरी पंडितों की खराब स्थिति का हवाला देते हुए कांग्रेस पार्टी ने गुरुवार को भाजपा पर निशाना साधा और केंद्र की मोदी सरकार से उसके आठ साल के कार्यकाल के दौरान कश्मीरी पंडितों की दशा पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की। कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्या पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कांग्रेस ने उससे माफी मांगने को कहा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस साल जनवरी से अक्टूबर तक 80 लोगों की हत्या हो चुकी है।
कांग्रेस का कहना है कि लक्षित हत्या के डर से शोपियां जिले के चौधरीकुंड गांव से कश्मीरी पंडितों के 10 परिवार पलायन कर जम्मू चले गए हैं और घाटी लौटने से इनकार कर दिया है। गौरतलब है कि 15 अक्टूबर को गांव में कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट की आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
कांग्रेस पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि 1989 में घाटी से जब कश्मीरी पंडितों का पहली बार पलायन हुआ था तब वीपी सिंह की सरकार थी और भाजपा उसे समर्थन दे रही थी। उन्होंने बताया कि 1986 में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ जब पहला दंगा हुआ था तब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। कश्मीरी पंडितों ने नेशनल स्टेडियम से राजीव गांधी के कार्यालय तक पदयात्रा की थी। राजीव गांधी ने उनकी परेशानियां सुनी और गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार को बरखास्त कर दिया।
पवन खेड़ा ने कहा कि भाजपा सिर्फ जीरो टालरेंस की बातें करती है, लेकिन वास्तव में राजीव गांधी ने उसे कर के दिखाया था। भाजपा पर निशाना साधते हुए खेड़ा ने कहा कि कश्मीर में 70 मंत्री लोगों तक पहुंचने के कार्यक्रम में लगाए गए हैं, लेकिन क्या उनमें से किसी ने भी कश्मीरी पंडितों के शिविर का दौरा किया है। अगर वे कश्मीरी पंडितों के शिविर में नहीं गए तो फिर कैसा संपर्क कार्यक्रम?