नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीनेशन को लेकर एक अहम फैसला दिया है। अदालत ने दो टूक अंदाज में कहा है कि वैक्सीनेशन को अनिवार्य नहीं किया जा सकता। हालांकि अदालत का यह आदेश आने तक देश में 190 करोड डोज वैक्सीन दी जा चुकी है। बहरहाल, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को वैक्सीनेशन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह संविधान से मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत व्यक्ति की शारीरिक अखंडता को बिना अनुमति नहीं भंग की जा सकती है। ऐसे में देश में वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कुछ राज्य सरकारों ने जो शर्तें लगाईं या बिना वैक्सीन लगवाए लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंधित किया वह सही नहीं है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कोरोना टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों का डाटा सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि वह संतुष्ट है कि मौजूदा वैक्सीन नीति को अनुचित और स्पष्ट रूप से मनमाना नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार सिर्फ नीति बना सकती है और जनता की भलाई के लिए कुछ शर्तें लगा सकती है। इससे पहले कोरोना वैक्सीनेशन पर 17 जनवरी 2022 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र ने अपने हलफनामा में कहा था कि देश भर में कोरोना वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं है, न किसी पर वैक्सीन लगवाने का कोई दबाव है।
वैक्सीन के लिए बाध्य नहीं कर सकती सरकार
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