नई दिल्ली। राज्यपालों के कामकाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि विधानसभा से पास होने के बाद विधेयक ज्यादा समय तक लंबित नहीं रहना चाहिए, राज्यपालों को उन पर जल्दी फैसला करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को यह टिप्पणी की। गौरतलब है कि गैर भाजपा शासन वाले कई राज्यों ने इस बात की शिकायत की है। तमिलनाडु सरकार ने तो केंद्र को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें कहा गया है कि विधेयकों पर राज्यपाल की मंजूरी की एक निश्चित समय सीमा तय की जाए।
बहरहाल, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपालों को विधेयकों पर फैसला लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। उन पर बैठे रहने की बजाए, जितनी जल्दी हो सके, फैसला लेना चाहिए। अदालत ने कहा- संविधान के अनुच्छेद 200 (1) का जिक्र और ‘जितनी जल्दी हो सके’ शब्द का एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य है। इसे संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने तेलंगाना सरकार की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन को विधानसभा से पारित 10 विधेयकों को मंजूरी देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
राज्यपाल की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब कोई भी बिल पेंडिंग नहीं है। तुषार मेहनता ने अदालत के आदेश में चीफ जस्टिस की टिप्पणी का जोरदार विरोध किया लेकिन इसके बावजूद इस टिप्पणी को आदेश का हिस्सा बनाया गया। गौरतलब है कि ऐसा ही मामला पंजाब में भी आया था, जब राज्यपाल ने पंजाब मंत्रिमंडल के सदन की बैठक बुलाने के आग्रह को मंजूरी नहीं थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले ये मंजूरी दे दी गई थी। तमिलनाडु सरकार की ओर से समय सीमा तय किए जाने के प्रस्ताव का केरल से लेकर दिल्ली सरकार तक ने समर्थन किया है।