भोपाल। मध्य प्रदेश के दमोह विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी को विपक्षी कांग्रेस से कहीं ज्यादा चुनौती अपनों से होने का अंदेशा बना हुआ है। दमोह विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से दल बदल करके आए राहुल लोधी को उम्मीदवार बनाने का लगभग फैसला कर ही लिया। मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान तो इसकी घोषणा भी कर चुके हैं, जिससे पार्टी के स्थानीय नेताओं में नाराजगी है।
पूर्व मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया और उनका परिवार तो पार्टी के निर्णय से खुश नहीं हैं और बड़े फैसले तक की तैयारी में है। मलैया के समर्थक जहां बैठकें कर नाराजगी जता रहे हैं तो उनके बेटे सिद्धार्थ मलैया की भी सक्रियता बढ़ गई है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिया गया है।
दमोह में मतदान 17 अप्रैल को हेागा और मतगणना दो मई को। इसके साथ ही यहां सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस से दल बदल कर आए राहुल लोधी को भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने के फैसले के बाद से इस क्षेत्र की सियासी हलकों में उथलपुथल है। राहुल लोधी ने पिछले चुनाव यानि की वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मलैया को शिकस्त दी थी। मलैया भाजपा के उम्मीदवार थे।
भाजपा की ओर से चुनावी जमावट की जा रही है। कार्यकर्ताओं को दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री चौहान और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा दमोह का दौरा भी कर चुके हैं। इसके ठीक विपरीत मलैया परिवार की सक्रियता भी बढ़ी है। जयंत मलैया ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस के लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं और एक सप्ताह बाद वे अपना रुख साफ करेंगे, अभी पार्टी में हैं।
एक तरफ जहां मलैया का यह बयान सियासी तौर पर बड़े मायने रखने वाला है तो दूसरी ओर उनके बेटे सिद्धार्थ की भी सक्रियता बढ़ी हुई है। अपने समर्थकों के साथ उनका मेलजोल बढ़ा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकांे का मानना है कि आगामी विधानसभा के उप-चुनाव में मलैया की भूमिका अहम रहने वाली है। इसकी वजह है, वे वर्ष 2018 से पहले लगातार छह बार विधानसभा का चुनाव जीते, पिछला चुनाव हार गए।
मलैया का अपना वोटबैंक है, अगर वे बगावत नहीं करते हैं और शांत ही बैठ जाते हैं तो पार्टी के लिए नुकसान तय हैं। वहीं अगर वे चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा की जीत में बड़ा रोड़ा बन सकते हैं। यह बात भाजपा भी जानती है, इसलिए पार्टी की ओर से मलैया को चुनाव लड़ने से रोकने और पार्टी के पक्ष मे सक्रिय रहने के प्रयास करेगी। चुनाव न लड़ने के एवज में मलैया परिवार को बड़ी जिम्मेदारी भी मिल सकती है।
वहीं कांग्रेस की बात की जाए तो पार्टी के पास फिलहाल ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है जिसके सहारे वह चुनावी वैतरणी को पार कर सके। यही कारण है कि कांग्रेस की नजर भाजपा के असंतुष्टों पर है। कांग्रेस में जो चेहरे चर्चा में हैं उनमें कई पुराने नाम हैं। नया चेहरा पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है, मगर कांग्रेस इस तरह के फैसले करने में हिचकती रही है।
दमोह में भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा अपनों से चुनौती का अंदेशा
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