नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने में बने राजद्रोह कानून पर केंद्र सरकार का रुख बदल गया है। सरकार ने इस पर यू-टर्न लेते हुए कहा है कि वह इस कानून पर फिर से विचार करने को तैयार है। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में इस कानून पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि यह कानून समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इसे बनाए रखने जरूरत है। दो दिन के भीतर अपना रुख बदलते हुए सरकार ने कहा है कि आजादी के अमृत महोत्सव की भावना के अनुरूप सरकार इस कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिए तैयार है।
गौरतलब है कि अंग्रेजों ने आजादी के लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों पर कार्रवाई के लिए यह कानून बनाया था। इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में हैं, जिन पर सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा था कि इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सर्वोच्च अदालत दिशा-निर्देश दे सकती है लेकिन कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं है। लेकिन सोमवार को सुनवाई के दौरान सरकार ने अपनी राय पूरी तरह से बदल दी। माना जा रहा है कि सरकार इस कानून के प्रावधानों को निरस्त कर सकती है।
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। दो दिन पहले सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के राजद्रोह कानून का बचाव किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नए हलफनामे में केंद्र ने कहा है- आजादी का अमृत महोत्सव की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए यानी देशद्रोह कानून के प्रावधानों का पुनरीक्षण और पुनर्विचार करने का फैसला किया है।
सरकार ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं के आधार पर मामले में फैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से समीक्षा की प्रतीक्षा करने का आग्रह किया। राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग और इसको लेकर केंद्र और राज्यों की चौतरफा आलोचना से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है।
बहरहाल, शनिवार को केंद्र ने राजद्रोह कानून और संविधान पीठ के 1962 के फैसले का बचाव करते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखने की बात कही थी। सरकार ने कहा था कि यह कानून करीब छह दशकों तक समय की कसौटी का सामना किया जा चुका है और इसके दुरुपयोग के उदाहरणों को लेकर कभी भी इस पर पुनर्विचार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
Tags :sedition law